इस्लाम धर्म में शब- ए- बारात यानी शब का अर्थ रात, बारात का अर्थ बरी होना माना जाता है
होलिका जलकर राख हो गई और भगवान विष्णु की कृपा से भक्त पहलाद का बाल बांका नहीं हुआ। वहीं भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप को वरदान का पालन करते हुए सिंह जैसा रूप धारण कर अपने घुटनों पर रखकर सूर्य छुपने से पहले दरवाजे के बीच में अपने लंबे नाखूनों से चीर कर मौत के घाट उतार दिया। इन्हीं उद्देश्यों से होली रंगों का त्यौहार के रूप में मनाते हैं।
चौधरी शौकत अली चेची
----------------------------भारत देश ही नहीं विश्व में भी त्यौहारों को मनाने का खास महत्व माना गया है। त्यौहारों को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। बुद्धिजीवियों के अलग.अलग मत हैं कि बलिदान त्याग, सद्भावना,आपसी सौहार्द यानी द्वेष भावना को समाप्त कर अमन चैन,तरक्की भाईचारे का पैगाम देते हुए अनूठी परंपराओं की याद ताजा की जाती है। भारत में मुख्य रूप से हर जाति, धर्म के त्यौहार इसी उद्देश्य से मनाए जाते हैं। इस बार यह संयोग ही है कि रंग और उमंग का त्यौहार होली आज है और साथ ही शब- ए- बारात का त्यौहार भी है। इस्लाम धर्म में शब- ए- बारात यानी शब का अर्थ रात, बारात का अर्थ बरी होना माना जाता है। मुस्लिम विद्वानों का मानना है कि अल्लाह के प्यारे रसूल सल्लल्लाहो आलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तालाह से बढ़कर दूसरा कोई नहीं है। रहमतों की रात नेकीयों का साथ गुनाहों से निजात दिलाने वाली होती है। यह रात बेहद फजीलत वाहली मानी जाती है। इस रात पूरे विश्व के मुसलमान अल्लाह की इबादत करते हैं। भारत, ईरान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश आदि में शब- ए- बारात कहा जाता है। इस रात में इबादत, तिलावत, सखावत होती है। मस्जिदों और कब्रिस्तानो में रौनक ज्यादा दिखाई देती है। शहरों में जुलूस निकाले जाते हैं घरों में भी अलग माहौल दिखाई देता है। नमाज, कुरान, तस्वी, दरूद शरीफ पूरी रात पढ़कर गुनाहों की माफी मांगी जाती है। सभी के लिए तरक्की, अमन, चैन और भाईचारे की दुआ की जाती है। अपनी हैसियत के हिसाब से खैरात की जाती है। कब्रिस्तानो में मोमबत्तियां जलाकर पर्दा कर चुके लोगों की मगेफिरत के लिए दआएं की जाती हैं।ं अल्लाह के प्यारे नबी ने फरमाया चार रातों में अल्लाह खैर खूब बहाता है, ईद उल अजहा की रात, ईद उल फितर की रात, हज की रात 15 वी तारीख की रात और शब ए बारात अहम माना गया है क्योंकि इसमें नेकी, गुनाह, रिजेक और जिंदगी का लेखा.जोखा जिम्मेदार फरिश्तों व मलकुल मौत तक पहुंचता है। अब बात करते हैं कि रंगों और उमंग के त्यौहार होली के बारे में। भारतीय संस्कृति में दीपावली के बाद होली दूसरा बडा त्यौहार माना जाता है। होली का त्यौहार फाल्गुन मास पूर्णिमा मनाया जाता है। पुर्णिमा की रात्रि में होलिका दहन किया जाता है, जौ, मटर और गेंहू की बालियां भूनी जाती हैं और प्रसाद के तौर पर एक दूसरे को बांटने की परपंरा है। दूसरे दिन नई साल चेत्र मास के पहले दिन रंग की होली का त्यौहार मनाया जाता है। नाच, गाना, बजाना बड़ी धूमधाम से किया जाता है। सभी मिलकर एक दूसरे के गले मिल गुलाल लगाते हैं। पकवान आदि मिल बैठ कर खाते हैं। होली त्यौहार मनाने की डबल खुशी किसानों को होती है। इस मौके पर फसल पक कर तैयारी तक पहुंच जाती है। बसंत ऋतु, सर्दी छोड़कर गर्मी मौसम में प्रवेश होता है। होली का त्यौहार मनाने की सदियों से चली आ रही परंपरा प्रसिद्ध है। मुगल काल में भी होली मनाने का जिक्र किया गया है। अकबर का जोधा बाई के साथ, जहांगीर का नूरजहां के साथ, शाहजहां शासन में उर्दू ए गुलाबीया नाम से जाना गया। बहादुर शाह जफर के समय श्रीकृष्ण लीलाओं का वर्णन है। सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया, अमीर खुसरो और बहादुर शाह जफर जैसे सूफी और कवियों ने भी होली पर सुंदर रचनाएं लिखी हैं। अजमेर शहर में ख्वाजा मुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर गाई जाने वाली होली प्रसिद्ध है। भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नाम की राक्षसी का वध
किया, बरसाने की होली 14 दिन तक मनाई जाती है, जिसे लठमार होली कहा जाता है। प्राचीन काल में विवाहित महिलाएं परिवार की समृद्धि के लिए उपासना पूजा कर मनाया जाता था। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था, इसे मनुवादी तिथि कहते हैं। गोबर के भर बोलिए बनाए जाते हैं, जिनमें छेद कर मूंज की रस्सी में बांधकर महिलाएं अपने भाइयों के ऊपर से उतारकर जलती हुई होलिका में फेंक देती है, ताकि साल भर तक किसी बुरी नजर का साया न सताए। जौ की बालियों को भूनकर लोग अपने घरों की तरफ दौड़ते हैं मिल बांट कर एक दूसरे को खिलाते हैं, ताकि सालभर तक बरकत बरकरार रहे। वहीं कहावत यह भी है कि भगवान शिव ने पार्वती को पत्नी स्वीकार किया और कामदेव के भस्म हो जाने पर पत्नी रति देवी लाकर शंकर भगवान से कामदेव को गुहार लगाकर जीवित कराया। कामदेव का जीवित होने वाला दिन होली वाला दिन था। आज भी रति विलाप को लोकगीत के रूप में गाया जाता है। किवदंति यह भी चली आ रही है कि राजा पृथु के समय में ढूंढी नामक एक कुटिल राक्षसी थी पृथु ने ढूंढी के अत्याचारों से छुटकारा पाने के राजपुरोहित से उपाय पूछा ढूंढी को देवताओं से बहुत सारे वरदान प्राप्त थे। ढूंढी अबोध बच्चों को खा जाती थी, फाल्गुन मास पूर्णिमा के दिन लकड़ी आदि इकट्ठा कर जलाकर मंत्र पढ़ें तालियां बजाए शोर मचाए ढूंढी नजदीक आए तो उसके ऊपर कीचड़ आदि मारे उसके पीछे दौड़े वह मर जाएगी। दूसरी ओर यह भी प्रचलित है कि एक युग में राजा हिरण कश्यप का शासन था। अहंकार में अपने आप को भगवान मानता था। हिरण्यकश्यप को वरदान था घर मरू ना बाहर दिन मरू, ना रात, अस्त्र से मरू ना शस्त्र से। हिरण्यकश्यप के घर भक्त पहलाद ने जन्म लिया, जो भगवान विष्णु की पूजा करता था। हिरण कश्यप अपने बेटे की इस बात से बहुत नाराज था। प्रह्लाद को मारने के बहुत सारे उपाय किए मगर सफलता नहीं मिली। हिरण कश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती। हिरण कश्यप के कहने से होलिका भक्त प्रहलाद को गोदी में लेकर शीतल चीर ओढ़ कर लकड़ियों के ढेर पर बैठ गई और आग लगा दी गई। शीतल चीर का दुरुपयोग किया मगर होलिका जलकर राख हो गई और भगवान विष्णु की कृपा से भक्त पहलाद का बाल बांका नहीं हुआ। वहीं भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप को वरदान का पालन करते हुए सिंह जैसा रूप धारण कर अपने घुटनों पर रखकर सूर्य छुपने से पहले दरवाजे के बीच में अपने लंबे नाखूनों से चीर कर मौत के घाट उतार दिया। इन्हीं उद्देश्यों से होली रंगों का त्यौहार के रूप में मनाते हैं।
लेखकः. चौधरी शौकत अली चेची भारतीय किसान यूनियन ( बलराज) के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष हैं।