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डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम: विज्ञान, विनम्रता और विचारों के प्रतीक



चौधरी शौकत अली चेची
15 अक्टूबर — यह वह दिन है जब भारत एक ऐसे महान सपूत को याद करता है, जिसने सीमित संसाधनों से उठकर विज्ञान की ऊंचाइयों तक भारत का नाम विश्व में रोशन किया।
“मिसाइल मैन ऑफ इंडिया” के नाम से प्रसिद्ध डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम न केवल एक वैज्ञानिक थे, बल्कि एक ऐसे राष्ट्रपति भी रहे, जिन्होंने अपनी सादगी, सोच और दृष्टिकोण से हर भारतीय के दिल में विशेष स्थान बनाया।
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संघर्षों से सफलता तक की प्रेरक यात्रा

डॉ. अब्दुल कलाम का पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम था। उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम शहर के धनुषकोडी गांव में हुआ। वे एक सामान्य परिवार से थे — पिता जैनुलाबुद्दीन नाव चलाने का काम करते थे और माता आशिअम्मा एक गृहिणी थीं।

संघर्षों के बीच पले-बढ़े कलाम ने 1954 में तिरुचिरापल्ली से भौतिक विज्ञान में स्नातक किया और इसके बाद मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की।

1958 में उन्होंने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) में प्रवेश लिया और 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) से जुड़ गए, जहां वे एसएलवी-III (Satellite Launch Vehicle) के परियोजना निदेशक बने। यह भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान था, जिसने देश को अंतरिक्ष शक्ति बनने की दिशा में अग्रसर किया।
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भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक

1982 में डीआरडीओ में पुनः शामिल होकर कलाम ने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलों के सफल परीक्षणों का नेतृत्व किया, जिससे उन्हें ‘मिसाइल मैन’ की उपाधि मिली।
1989 में अग्नि मिसाइल के सफल परीक्षण ने भारत को एक नई सामरिक ताकत प्रदान की।

1992 से 1997 तक वे रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार रहे और 1999 से 2001 तक भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कार्य किया।
1998 के परमाणु परीक्षणों में उनकी प्रमुख भूमिका ने भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया।

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राष्ट्रपति के रूप में जनता के दिलों के ‘कलाम’

2002 से 2007 तक उन्होंने भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। वे पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्हें जनता ने वास्तव में “जनता का राष्ट्रपति” कहा।
उनका सादा जीवन, सरल आचरण और युवाओं के प्रति लगाव ने उन्हें करोड़ों भारतीयों का आदर्श बना दिया।

संयुक्त राष्ट्र ने उनके योगदान के सम्मान में 15 अक्टूबर को “विश्व छात्र दिवस (World Students Day)” घोषित किया — यह उनके युवाओं के प्रति समर्पण की वैश्विक मान्यता है।
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विज़न 2020 और शिक्षा के प्रति समर्पण

1998 में प्रस्तुत ‘टेक्नोलॉजी विज़न 2020’ उनकी वह योजना थी जिसमें उन्होंने भारत को अगले 20 वर्षों में एक विकसित राष्ट्र में परिवर्तित करने का सपना देखा था।
इस विज़न में कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा और तकनीकी नवाचार को विकास के प्रमुख स्तंभ बताया गया था।

उन्होंने देशभर के विश्वविद्यालयों में व्याख्यान दिए और कहा —
> “सपना वह नहीं जो आप नींद में देखते हैं, सपना वह है जो आपको सोने नहीं देता।”

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विरासत और प्रेरणा

27 जुलाई 2015 को आईआईएम शिलांग में व्याख्यान देते समय उन्हें हृदयाघात हुआ और वहीं उनका निधन हो गया।
वे अंत तक देश और युवाओं के लिए कार्यरत रहे।

उनकी आत्मकथा ‘विंग्स ऑफ फायर’ (1999) आज भी लाखों युवाओं को प्रेरित करती है।
उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान — पद्म विभूषण (1990) और भारत रत्न (1997) से सम्मानित किया गया।
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94वीं जयंती पर श्रद्धांजलि

भारत रत्न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की 94वीं जयंती (योम-ए-पैदाइश) पर समूचा देश उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करता है।
वे केवल एक वैज्ञानिक नहीं, बल्कि एक विचार थे — एक ऐसी सोच जो आज भी भारत के हर युवा में जीवित है।

> “आपका भविष्य आपके सपनों पर निर्भर करता है, इसलिए अपने सपनों को सच करने के लिए जागिए।” – डॉ. कलाम

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✍️ लेखक परिचय:

चौधरी शौकत अली चेची
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, किसान एकता (संघ)
राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ता
राजनीति और समाज के बीच सेतु के रूप में ग्रामीण विकास, शिक्षा और युवाओं की भागीदारी को लेकर सक्रिय।
वर्तमान में उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव के रूप में कार्यरत।


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⚖️ कानूनी अस्वीकरण (Legal Disclaimer):

यह लेख लेखक चौ. शौकत अली चेची के व्यक्तिगत विचारों, अध्ययन और अनुसंधान पर आधारित है। इसमें व्यक्त विचार लेखक के स्वयं के हैं और आवश्यक नहीं कि यह किसी संगठन, संस्था या राजनीतिक दल की आधिकारिक नीति या मत को प्रतिबिंबित करते हों। इस लेख में दी गई सभी ऐतिहासिक या वैज्ञानिक जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से ली गई है, जिसकी पुष्टि संबंधित अभिलेखों से की जा सकती है।