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जनता से दूर हो गए थे सत्ता के नशे में चूर सत्ताधीश


असलम परवेज 
2005मे जैसे राजद   के नेता सत्ता के घमंड में चुर थे की  इस बार भी सत्ता में हम ही आएंगे लेकिन हुआ  उसका उल्टा विपक्षीय दलों ने जंगल राज्य का नारा बुलंद  देकर कर लालू यादव को सत्ता से बे दखल कर दिया और राजद का  मजबुत कीला ढह  गया ।

ठीक उसी तरह 2025 में नितीश कुमार  और उनका  एनडीए घमंड में चुर है । नीतीश तेजस्वी या चिराग पासवान हो सबका अपना अपना जलवा है ये सब बिहार में सत्तासीन तो होना चाहते हैं लेकिन कोई किसी के साथ चलने को तैयार नही है । जिस तरह कांग्रेस तथा कथित  क्षेत्रीय दलों पसन्द नही करती ठीक उसी तरह  भाजपा भी छोटे छोटे क्षेत्रीय कट्टर हिंदुत्व विचार धारा वाली संगठनों और राजनीतिक दलों से परेशान है । 
         1989 में जो राजनीतिक दल किया कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए भाजपा के साथ एक मंच पर आए थे उसमें से अधिकांश दल कांग्रेस के साथ या अलग लड़ कर भाजपा को सत्ता से बेदखल करने की रणनीति बना रहे है । पिछले कई चुनावों में देखने को यह मिला कि गठबंधन के बावजूद भी विपक्ष भाजपा को सत्ता से बेदखल करने में सफल नही हो सका । इसके कारणों की जब पता लगाने की कोशिश की गई तो पता लगा कि राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर गठबंधन तो हो गया लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर बेईमानी और गुटबाजी जमकर होती रही और वोट बटवारे के  वजह से ही ज्यादा सीटो पर भाजपा की जीत हुई । कई जगह तो महागठबंधन के नेताओं ने ही एक दूसरे को हराने काम किया जैसे गैर कांग्रेसी विपक्ष  नही चाहता कि न तो कांग्रेस दुबारा सत्ता में आये और नही देश कोई मुस्लिम लीडरशिप मजबूत हो अगर अगर कांग्रेस भी मजबूत हो गई  , तो भी इनसे मुस्लिम वोट कट जाएगा और मजलिस मजबूत हुई तब इनके हाथ से मुस्लिम वोट जाएगा और यही वजह है कि गठबंधन के बावजूद भी ये पार्टियां भाजपा  को नही हरा पाती ।

● विपक्ष के पास न तो भाजपा जैसा संगठन है  न ही चुनावी रणनीति 
   1989 के बाद जब गैर कांग्रेसी सरकारे आयी सबने सत्ता की मलाई काटने में ही  अपनी दिलचस्पी दिखाई लेकिन भाजपा ने अपने संगठन को मजबूत करने के लिए कही धर्म तो कही जातिवाद का जमकर इस्तेमाल किया यही नही पिछड़े दलित वर्ग के उन नेताओं को अपने साथ लिया जो उपेक्षित थे , उन्हें भाजपा ने हर तरह से उनका साथ दिया साथ ही साथ भाजपा पिछड़े वर्ग और दलित वोटरों के बीच मुसलमानो को उनका दुश्मन बताने में सफल रही । 

साथ ही साथ  भाजपा इनके दिलों में मुसलमानो के खिलाफ जहर भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और यह भी समझने में सफल रही कि आज भारत मे मुसलमानो के वजह से हिन्दू खतरे है । लेकिन मुसलमानो के वोट के बल पर सत्ता में शीर्ष पर पहुँचने वाले नेताओं ने अपने समाज को यह समझने का काम नही किया कि न तो पहले मुसलमान उनका दुश्मन था न अब है । अगर पिछड़े  और दलित वर्ग के नेता सिर्फ सपना एक महीना अपने समाज को म
समझाने में लगा दे तो भाजपा भी सत्ता से दूर हो जाएगी औऱ आज जो देश मे नफरत का माहौल है वह भी समाप्त हो जाएगा ।
बीते समय मे जितने भी मोब्लॉन्चिंग या साम्प्रदायिक दंगे हुए मुसलमानो के खिलाफ कोई उच्च वर्गों के लोग इनके खिलाफ नही आये मुसलमानो के खिलाफ संघ  ने हमेशा ही दलित व पिछड़े वर्ग  के युवाओं का ही इस्तेमाल किया । 

 ● AIMIM से गठबंधन क्यो नही करती तथा कथित सेक्युलर पार्टियां ? 

 ओवैसी की पार्टी AIMIM को पिछले कई चुनावों से कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों द्वारा अछूत बना कर रख दिया गया उनको अपने आप को सेक्युलर कहने वाले दल गठबंधन का हिस्सा क्यो नही बनाते  ? 
इसका सीधा जबाब  है कि एक तो इन लोगों ने यह मान लिया है कि देश का मुसलमान भाजपा को हराने के लिए इन्हें ही वोट देगा मुसलमानो को न तो कोई अपने बुनियादी मसलों से कोई मतलब है न अपने बच्चों के भविष्य की चिंता है इनका एक ही मकसद है भाजपा को हराना लेकिन शायद यह भूल गए हैं कि वक़्त के तमाचों ने मुसलमानो को अपनी सोच बदलने पर मजबूर कर दिया । एक तरफ मोब्लॉन्चिंग और दूसरी तरफ मुसलमानो के घरों की असंवैधानिक तरीके से बुलडोजर से गिराने की कारवाई और सेल्युलर नेताओं की चुप्पी ने मुसलमानो को अपना सोच   तरीका  बदलने पर मजबूर होना पड़ा ।

 खास कर उत्तर प्रदेश व बिहार में मजलिस का ग्राफ तेजी से बढ़ा है यह सब इन फर्जी सेक्युलर नेताओ की चुप्पी से हुआ उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव  और मायावती बिहार में तेजस्वी यादव , नीतीश कुमार और चिराग पासवान मुसलमानो की आवाज़  मजबूती से उठाते तो आज देश का मुसलमान किसी ओवैसी की आवाज़ नही सुनता ।
लेखक:- असलम परवेज सामाजिक चिंतक ,विचारक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।