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यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्मः ------------- यज्ञ जीवन का हमारे श्रेष्ठ सुन्दर कर्म है। यज्ञ का करना कराना आर्यों का धर्म है।।

 ।। ओ३म् ।।

 

 


0 महेंद्र कुमार आर्य

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यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्मः

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यज्ञ जीवन का हमारे श्रेष्ठ सुन्दर कर्म है।

 यज्ञ का करना कराना आर्यों का धर्म है।।

यज्ञ शब्द देव पूजा , संगतिकरण,दान अर्थ वाली यज्ञ धातु से नङ् प्रत्यय होकर निष्पन्न हुआ है, जिसमें देव पूजा, संगतिकरण दानादि भावों की प्रेरणा निहित है। शतपथ ब्राह्मण में यज्ञो वै श्रेष्ठतम कर्मः अर्थात यज्ञ संसार का श्रेष्ठतम् कर्म है यज्ञ की महिमा, वेद, उपनिषद,ब्राह्मण ग्रन्थ,मनुस्मृति, गीता आदि सभी शास्त्रों में प्रतिपादित की गई है।

अथर्ववेद में कहा गया है .

उतिष्ठ ब्रह्मणस्वते देवान यज्ञेन बोधय।

आयु प्राण प्रजां पशुं कीर्ति यजमानं च वर्धय।

हे ज्ञानी उठ ! यज्ञ के द्वारा अपने अन्दर देवभावों को जगा दो। अपनी आयु,प्राण,प्रजा,पशु, कीर्ति,सब यज्ञ करने वालों को बढ़ा दो। इसी प्रकार ऐतरेय ब्राह्मण में भी उल्लेख है कि यज्ञोऽपि तस्मै जनतायै कल्पते अर्थात जनता के सुख के लिए यज्ञ होता है। श्रीमद्भगवद्गीता में कथन है कि यज्ञ शिष्टाशिनः सन्तो मुण्यते सर्व किल्विषैः अर्थात यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ पुरुष पापों से छूट जाते हैं। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने  आर्योद्देश्य रत्नमाला में यज्ञ की परिभाषा करते हुए लिखा है . जो अग्निहोत्र से लेके अश्वमेधपर्यन्त व जो शिल्प व्यवहार पदार्थ विज्ञान, जो कि जगत के उपकार के लिए किया जाता है, उसे यज्ञ कहा जाता है। महर्षि ने पंच महायज्ञ विधि की रचना की। इन पंचयज्ञों के करने से मनुष्य अपने नित्य,नैमित्तिक, प्रायश्चित्य उपासना आदि के द्वारा अपना कल्याण कर सके। शथपथ ब्राह्मण में भी कहा गया है कि सर्वस्यात् पाण्नो निर्मुच्यते य एवं विद्वानग्नि होत्रं जुहोति.अर्थात अग्निहोत्र अनुष्ठान से प्राणी अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

मनुस्मृति में पंच यज्ञों का विशद् वर्णन किया गया है।

 

ऋषियज्ञं देव यज्ञं भूतवज्ञं च सर्वदा।

 यज्ञं पितृयज्जं च यथाशक्ति न हापयेतु।

अर्थात उक्त पंचयज्ञों को ग्रहस्थ यथाशक्ति कभी न छोड़े।

अध्यापन ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञस्तुतर्पणम्।

होमोदेवी बलिर्भातो नृयज्ञोऽतिथि पूजनम्। मनतु०.3.46

अर्थात स्वाध्याय,संध्योपासना करना ब्रह्मयज्ञ माता.पिता आदि की सेवा भोजन आदि से तृप्त करना पितृ यज्ञ,कीट.पतंग,पक्षियों,असहाय आदि को भोजन देना बलिवैश्वदेव यज्ञ, विद्वान अतिथि की सेवा आदर सत्कार कर, भोजन देना अतिथि यज्ञ, चे पंच यज्ञ कहे जाते हैं।

पंचैतान्यों महायज्ञान हापयति शक्तितः

स गृहेवसन् नित्यं सूनादोषैर्न लिप्यते । मनु.3.47

जो गृहस्थी इन पांच यज्ञों को यथाशक्ति नहीं छोड़ता, वह घर में रहता हुआ चूल्हे आदि में हुए हिंसा के पापों को प्राप्त नहीं होता है।

देवताऽतिथिभृत्यानां पितृणामात्मनश्च यः।

न निर्वपति पंचानामुच्छव्सत्न स जीवति. मनु,3.48.

अर्थात जो इन पंचयज्ञों को नहीं करता,यह सांस लेता हुआ भी वस्तुत जीवित नहीं है वरन् मरे हुए व्यक्ति के समान है।

 

अग्निहोत्र ( यज्ञ) से लाभ

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1-अग्निहोत्र (यज्ञ) से वायु,वृष्टि.जल की शुद्धि होकर वृष्टि द्वारा संसार को सुख  प्राप्त होना,अभीष्ट वायु का श्वांस.स्पर्श.खान.पान से आरोग्य,बुद्धि,बल, पराक्रम बढ़ाकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का अनुष्ठान पूरा होता है। इसलिए इसको देवयज्ञ कहते हैं।

2- दुर्गन्धयुक्त वायु और जल से रोग, रोग से प्राणियों को दुख और सुगन्धित वायु तथा जल से आरोग्य और रोग के नष्ट होने से सुख प्राप्त होता है।

3- जब तक इस होम को करने का प्रचार रहा, तब तक आर्यावर्त देश रोगों से रहित और सुखों से पूरित था, अब भी प्रचार हो तो वैसा ही हो जाए। सुवृष्टि और वायुशुदधि होम .हवन से होती है। इसलिए होम करना चाहिए।

4-जहां होम यानी यज्ञ होता है, वहां से दूर देश में स्थित पुरुष की नास्का से सुगन्ध ग्रहण होता है, वैसे सुगन्धि का भी इतने ही से समझ लो कि अग्नि में जला हुआ पदार्थ सूक्ष्म होके फैलकर वायु साथ दूर देश में जाकर दुर्गन्ध की निवृत्ति करता है।

5- पुष्प, इत्र आदि की सुगन्ध का वह सामर्थ्य नहीं है कि गृहस्थ वायु को निकालकर शुद्ध वायु का प्रवेश करा सके, क्योंकि उसमें भेदक शक्ति नहीं है।

6- सुगन्धादियुक्त चार प्रकार के द्रव्यों को अच्छी प्रकार संस्कार करके अग्नि में होम करने से जगत का अत्यंत उपकार होता है।

7- जो यज्ञ को छोड़ता है,ईश्वर उसे भी दुख के लिए छोड़ देता है जो ईश्वर की आज्ञा को पालता है,वह सुखों से युक्त होता है। जो ईश्वर आज्ञा को छोड़ता है, वह राक्षस हो जाता है।

 

क्या होती है यज्ञ की शक्ति

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जर्मनी के एक वैज्ञानिक,जो कैमिस्ट्री,बॉटनी, मेडिसिन, रेडियोलॉजी के ज्ञाता हैं तथा जर्मन विश्वविद्यालय में पढ़ाते भी हैं, लिखते हैं.स्वयं अग्निहोत्र का परीक्षण करने के बाद मैंने पाया कि सचमुच अग्निहोत्र के आचरण द्वारा मानो आपके हाथ में प्रदूषण के विरुद्ध एक अद्भुत अस्त्र आ जाता है। उक्त वैज्ञानिक जर्मनी की एक कैंसर इंस्टीट्यूट के संचालक भी हैं। पूना के फायुसन कालेज के जीवाणु शास्त्रियों ने एक प्रयोग किया । उन्होंने । 36 »22»14 घनफुट के एक हाल में एक समय का अग्निहोत्र किया। परिणामस्वरूप आठ हजार घनफुट वायु में कृत्रिम रूप से निर्मित प्रदूषण का 77.5 प्रतिशत हिस्सा खत्म हो गया। इतना ही नहीं, इसी प्रयोग से उनहोंने पाया कि एक समय के ही अग्निहोत्र से 96 प्रतिशत हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं। यह सब यज्ञ की लाभदायक गैसों से ही संभव हुआ।

 

पर्यावरण प्रदूषण.समाधान केवल यज्ञ

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नदी, नहरें, तालाब, झीलें, कुएं जो सिंचाई के महत्वपूर्ण साधन हैं क्लोराइड्स पेस्टिसाइड्स व अन्य अनेक प्रकार के जहरीले रसायनों से भयंकर दृषित हो गए हैं। परिणामस्वरूप इनका पानी उत्तम फसल उत्पन्न करने में असमर्थ है। प्रदूषण के कारण ही प्रकृति का वर्षाचक्र यानी मानसून अनिश्चित व असंतुलित हो गया है। साथ ही कहीं.कहीं पर तो वर्षा का पानी इतना अम्लयुक्त यानी एसिडिक होता है कि अच्छी फसलों को भी नष्ट कर देता है। जंगलों की अन्धाधुन्ध कटाई, नदी,नालों, तालाबों, खेतों में फेंकी जाने वाली गंदगी या कूड़े कपड़े के कारण पौधों को कार्बन डाइआक्साइड का ग्रहण करने तथा पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन को छोड़ने की प्रक्रिया मन्द होती जा रही है। इसका समाधान केवल यज्ञ ही है।

 

ओजोन रक्षाकवच में छेद चिंतनीय.उपचार केवल यज्ञ

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पृथ्वी की सतह से ऊपर आकाश में विद्यमान वायुमण्डल में नाइट्रोजन,आक्सीजन,कार्वनडाइआक्साइड, ओजोन आदि गैसों के मिश्रण से बनी अनेक पते होती है, ऐसा वर्णन वेदों में भी आया है। ओजोन की परत पृथ्वी तल से ऊपर 24 से 48 हजार किलोमीटर के बीच पायी जाती है। यह परत सभी प्राणियों के लिए महत्वपूर्ण है। यह ओजोन नामक गैस की परत सूर्य तथा ब्रह्माण्ड के अन्य नक्षत्रों से आने वाली शक्तिशाली घातक परबैगनी किरणों गानी अल्ट्रावायलट रेसें को पृथ्वी पर आने से रोकती हैं। साथ ही पृथ्वी पर से अंतरिक्ष की ओर जाने वाले ताप विरिण यानी इन्फ्रारेड रेडियेशन को वापस पृथ्वी पर भेजकर जीवों को रक्षा में सहायता करती है। करोड़ों वर्षों से यह वायु की परत प्राणियों की इसी प्रकार दोहरी रक्षा कर रही है सन् 1985 में वैज्ञानिकों ने एक परीक्षण में पाया कि अन्टार्कटिका महाद्वीप अर्थात दक्षिणी ध्रुव के हिम प्रदेश के ऊपर लगभग 30 किलोमीटर में ओजोन परत में एक बड़ा छेद हो गया है, वहां ओजोन की मात्रा में 20 प्रतिशत की कमी हो गई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर होने वाली कुछ रासायनिक क्रियाओं से पर्यावरण में फैलने वाले प्रदूषण के कारण ही ओजोन नामक परत में छिद्र हुआ है। क्लोरोफ्लोरो कार्वन नामक रासायनिक तत्व का प्रयोग इस परत में छिद्र होने में बड़ा कारण है। रेफ्रिजरेटरों, वातानुकूलित संयंत्रों दुर्गन्धनाशक पदार्थों, प्रसाधनों, फास्ट फूड को ताजा रखने वाले साधनों आदि में ग्रीन हाउस गैसों का प्रयोग किया जाता है। यदि इसी गति से ओजोन नामक परत में छिद्र होते रहे तो पराबैगनी किरणों को रोक पाना संभव नहीं होगा और इसका परिणाम यह होगा कि लोग विभिन्न प्रकार के रोगों.कैसर आंत के ट्यूमर आदि भयंकर रोगों से ग्रस्त होंगे और पेड़.पौधे भी प्रभावित होंगे। इसका समाधान भी केवल यज्ञ है।

 

आश्चर्यजनक किन्तु सत्य

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मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड के कारखाने से गैस रिसाव के समय की एक महत्वपूर्ण घटना प्रस्तुत है . पहली घटना-2 दिसम्बर 1984 की मध्य रात्रि में अपनी पत्नी त्रिवेणी 36 वर्षीय को उल्टी करते सुन श्री एस.एल- कुशवाहा 45 वर्ष की नींद रात्रि डेढ़ बजे खुल गई। श्री कुशवाहा अध्यापन का कार्य करते हैं । शीघ्र ही वह और उनके बच्चे खांसने लगे,उनकी आंखों में जलन होने लगी, सभी का दम घुटने लगा। घर से बाहर निकले तो देखा कि हाहाकार मचा है। वे सब भीड़ के साथ भागने की सोच ही रहे थे कि त्रिवेणी ने कहा कि हम सब अग्निहोत्र क्यों न करें। उस पूरे परिवार ने यज्ञ किया और 20 मिनट के अन्दर ही एमआईसी यानी मिक गैस का दुष्प्रभाव समाप्त हो गया। दूसरी घटना.33 वर्षीय श्री एम-एल- राठौर अपनी पत्नी, चार बच्चों, मां तथा भाई के साथ भोपाल रेलवे स्टेशन के निकट रहते थे उस क्षेत्र में दर्जनों व्यक्ति गैस के विष के फलस्वरूप मर गए। राठौर विगत 5 वर्षों से नित्य यज्ञ करते रहे हैं अपने पूरे परिवार के साथ वह यज्ञ करने लगे। मंत्रों के समाप्त होने पर त्र्यथ्रकं यज्ञ शुरू कर दिया। जिससे इस परिवार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यह सत्य घटना अखबारों में छपी व श्री राठौर का साक्षात्कार दिखाया गया।

 

सर्वश्रेष्ठ कर्म. विदेशों में भी देहरी पर

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भारतवर्ष से पृथक विश्व के अनेक देशों में अग्निहोत्र का प्रचलन काफी बढ़ा है। वे देश है अमेरिका,चिली, पोलैण्ड, जर्मनी, मारीशस इत्यादि। अमेरिका में छठे दशक में नया युग नामक एक आन्दोलन चला। अमेरिका के पश्चिमी और पूर्वी समुद्र तटवर्ती क्षेत्र में अग्निहोत्र करने वालों की संख्या अधिक है अमेरिका अकेला ऐसा देश है,जो इस बात पर गर्व कर सकता है कि उस देश में 9 सितम्बर 1978 से अखण्ड यज्ञ दिन रात चल रहा है। मैरीलैण्ड बाल्टीमोर में जिस जगह इस यज्ञ का आयोजन है उसका नाम है अग्निहोत्र प्रेस फार्म। वाशिंगटन स्थित व्हाइट हाउस से मोटर द्वारा उस स्थान तक मात्र एक घण्टे में पहुंचा जा सकता है। मैडिसन वर्जीनिया में प्रथम वैदिक यज्ञशाला का निर्माण हुआ। इसका उद्घाटन 22 सितम्बर 1973 को हुआ। इस स्थान तक वाशिंगटन डी. सी. डेढ घण्टे में पहुंचा जा सकता है। यह यज्ञशाला पर्वतीय क्षेत्र में है, जिसे सबसे कम प्रदूषित क्षेत्र माना जाता है। यज्ञशाला के निर्माण के बाद पाश्चात्य जगत में अग्निहोत्र का प्रचलन बढ़ा है। वहां नित नये प्रकार के प्रयोग. अनुसंधान यज्ञ की महत्ता पर हो रहे हैं। यह यज्ञशाला मात्र एक कमरा होता है, जिसमें लोग शान्त मौन रहते है। और प्रतिदिन सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय यज्ञ होता है। यहां किसी चीज की पूजा नहीं होती है, न कोई पुजारी होता है। ऐसी सैकड़ों यज्ञशालाएं विश्वभर में स्थापित हैं। अमेरिका में होम द्वारा चिकित्सा की विधि बहुत प्रसिद्ध हो रही है। अमेरिकी मनोवैज्ञानिक कुमारी पैट्रिशिया,जो कैलिफोर्निया से पर्यावरण सम्बन्धी इन्कोलाजिक पत्रिका की सम्पादिका भी हैं, ने बताया कि अमेरिका में दिनोंदिन यज्ञ के प्रति निष्ठा. श्रद्धा बढ़ रही है। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी. सी में अग्निहोत्र विश्वविद्यालय की स्थापना हो चुकी है। यज्ञ ही पर्यावरण प्रदूषण से होने वाले विनाश से विश्व को बचा सकता है।

आइए, हम सब यज्ञ करें।

कृतिः.मानव कल्याण निधि

लेखकः- .प0 महेंद्र कुमार आर्य, पूर्व प्रधान. आर्य समाज मंदिर सूरजपुर, ग्रेटर नोएडा, जिलाः. गौतमबुद्धनगर हैं।