BRAKING NEWS

6/recent/ticker-posts


 

शहीद- ए- आजम भगत सिंह के जीवन पर कुछ बिंदु


चौधरी शौकत अली चेची
शहीद ए आजम भगत सिंह के जीवन  पर कुछ बिंदु इस प्रकार हैं। देश की आजादी के लिए हमारे सभी समुदाय के लाखों पूर्वजों ने कुर्बानियां  दी जो इतिहास के पन्नों में अलग-अलग नामो से दर्ज हैं।
 सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर अश्वनी कृष्ण पक्ष सप्तमी को भी प्रचलित है ,लेकिन कुछ साक्ष के अनुसार जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले की जरवाला तहसील के बंगा गांव पश्चिमी पंजाब भारत में हुआ था। 23 वर्ष की उम्र में ब्रिटिश शासन ने 23 मार्च 1931 लाहौर जेल में भगत सिंह, राजगुरु ,सुखदेव को धोखे से मध्य रात्रि 23 व 24 मार्च को फांसी लगा दी थी।
भगत सिंह ने दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में पढ़ाई की एवं नेशनल कॉलेज से बीए किया। यह दोनों लाहौर पाकिस्तान में स्थित है । एक सिख परिवार में इनका जन्म हुआ ,उनके पिता सरदार किशन सिंह सिंधु एवं माता विद्यावती कौर थी ,जो किसान परिवार से थे । भगत सिंह के जन्म पर पिता किशन सिंह जेल में थे। चाचा अजीत सिंह बहुत बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने भारतीय देशभक्त संगठन भी बनाया था । इसमें शामिल सैयद हैदर रजा थे ,अजीत सिंह के खिलाफ 22 केस दर्ज थे । इन से बचने के लिए ईरान भेजना पड़ा। भगत सिंह के भाई बहन एवं सभी परिवार वाले क्रांतिकारी थे । बचपन से ही परिवार में देशभक्ति देखी शिक्षा के साथ नाटकों में एक्टर का किरदार निभाते थे । युवाओं में देशभक्ति  का जोश भरते थे।  
1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह बहुत दुखी थे एवं महात्मा गांधी जी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन का उन्होंने खुलकर समर्थन किया । भगत सिंह खुलेआम अंग्रेजों को ललकारा करते थे और गांधी जी के कहे अनुसार ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे। चोरी चोरा में हुई हिंसात्मक गतिविधि के चलते गांधी जी ने असहयोग आंदोलन बंद कर दिया, उसके बाद भगत सिंह उनके फैसले से खुश नहीं थे । उन्होंने गांधी जी की अहिंसा वादी बातों को छोड़ दूसरी पार्टी ज्वाइन  की, सुखदेव थापर भगवती चरण आदि लोगों से मिलकर आजादी की लड़ाई में कूद गए।

1926 में नौजवान भारत सभा में भगत सिंह को सेक्रेटरी बना दिया गया । 1928 में उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ज्वाइन कर ली, जो चंद्रशेखर आजाद ने बनाई थी। पूरी पार्टी ने मिलकर 30 अक्टूबर 1928 को भारत में आए साइमन कमीशन का विरोध किया, उनके साथ लाला लाजपत राय भी द साइमन वापस जाओ का नारा लगाते हुए लोग लाहौर रेलवे स्टेशन पर ही खड़े रहे। इसके बाद वहां लाठी चार्ज कर दिया गया, जिसमें लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हुए और उनकी मृत्यु हो गई। राय की मृत्यु के पश्चात भगत सिंह को आघात लगा और अंग्रेजों से बदला लेने की ठानी ,मौत के जिम्मेदार ऑफिसर को मारने का प्लान बनाया । भूल से असिस्टेंट पुलिस अधिकारी को मार डाला । भगत सिंह को लाहौर से भागना पड़ा, ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह को ढूंढने के लिए चारों तरफ जाल बिछा दिया। भगत सिंह ने पहचान छुपाने के लिए बाल एवं दाढ़ी कटवा दी ,देश भक्ति के लिए सब कुछ न्योछावर करने की ठान रखी थी।
 चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव आदि एक साथ मिल चुके थे । अंग्रेजी शासन को डराने के लिए एवं जगाने के लिए  सितंबर 1929 को ब्रिटिश सरकार की असेंबली खाली हाल में बम ब्लास्ट कर दिया। मोहम्मद इकबाल के लिखे  इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए भगत सिंह ,राजगुरु ,सुखदेव ने आत्म समर्पण कर दिया। जेल के अंदर भी अंग्रेज पुलिस की यातनाएं सही। देश की आजादी के लिए भूख हड़ताल, मौन धारण ,देश भक्ति की किताबें लिखी आदि कार्य किया और अंत तक हार नहीं मानी।
 देश के गद्दारों ने  अंग्रेजों से गंदे लालच में काफी संपत्ति एकत्रित की एक की झूठी गवाही पर हुई थी भगतसिंह और साथियो को फांसी। 

शहीद ए आज़म भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने लाहौर स्थित न्यायालय में एक आवेदन दर्ज करके मामले में जल्द सुनवाई की गुहार लगाई। कुरैशी ने अपनी याचिका में कहा कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव स्वतंत्रता सेनानी थे, और उन्होंने अविभाजित भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी।

कुरैशी ने कहा कि यह एक राष्ट्रीय महत्व का विषय है  उन्होंने पुनर्विचार के सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए शहीद भगत सिंह की सजा रद्द करने की भी गुहार लगाई और कहा कि सरकार को भगत सिंह को सरकारी पुरस्कार से सम्मानित करना चाहिये। कुरैशी ने कहा कि भगत सिंह को पहले आजीवन कैद की सजा हुई थी, लेकिन बाद में एक और झूठे मामले में उन्हें मौत की सजा सुना दी गई। कुरैशी ने कहा कि भगत सिंह आज भी न केवल सिखों के लिए बल्कि मुसलमानों के लिए भी सम्मानित हैं और पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना दो बार उनको श्रृद्धान्जली दे चुके थे।
26 अगस्त, 1930 को अदालत ने भगत सिंह को ब्रिटिश दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6एफ तथा आईपीसी की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिद्ध किया। 7 अक्तूबर, 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई। इसके बाद भगत सिंह की फांसी की माफी के लिए प्रिवी परिषद में अपील दायर की गई परन्तु यह अपील 10 जनवरी, 1931 को रद्द कर दी गई। इसके बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पं. मदन मोहन मालवीय ने वायसराय के सामने सजा माफी के लिए 14 फरवरी, 1931 को अपील दायर की कि वह अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मानवता के आधार पर फांसी की सजा माफ कर दें। भगत सिंह की फांसी की सज़ा माफ़ करवाने हेतु महात्मा गांधी ने 17 फरवरी 1931 को वायसराय से बात की फिर 18 फरवरी, 1931 को आम जनता की ओर से भी वायसराय के सामने  सजा माफी के लिए अपील दायर की । भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उनकी सजा माफ की जाए।
23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह  सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई । फाँसी पर जाने से पहले  जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए  जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले  अब चलो।
फाँसी पर जाते समय  तीनों गा रहे थे –मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे।मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला॥ फाँसी के बाद कहीं कोई आन्दोलन न भड़क जाये। इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किये फिर इसे बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गये जहाँ घी के बदले मिट्टी का तेल डालकर ही इनको जलाया जाने लगा। गाँव के लोगों के विरोध से  डरकर अंग्रेजों ने इनकी लाश के अधजले टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंका और भाग गये। गाँव वालों ने  मृत शरीर के टुकड़ो कों एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया।
कोर्ट में भगत सिंह का केस लड़ने वाले वकील स्वतंत्रता सेनानी और वकील आसफ अली का जन्म साल 1888 में 11 मई को हुआ था। यह अमेरिका में भारत के पहले राजदूत थे। अली ओडिशा के गवर्नर भी रह चुके हैं। लेजिस्लेटिव असेंबली में शहीद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के बम फेंकने के केस में भी अली ने उनका बचाव कोर्ट में किया। भगत सिंह के अभिभावक उनके चाचा अजीत सिंह की पत्नी और अरुणा आसफ अली थे जब उन्हें अदालत में लाया गया तब भगत सिंह बटुकेश्वर दत्त ने इंकलाब जिंदाबाद और साम्राज्यवाद मुर्दाबाद का नारा लगाया। 1928 में उन्होंने अरुणा गांगुली से शादी की कई  लोगों की त्योरियां चढ़ गई  थी क्योंकि अली मुस्लिम थे और अरुणा हिंदू. एवं अरुणा इनसे उम्र में  21 साल छोटी होने के बावजूद दोनों ने एक-दूसरे के साथ रहने का फैसला किया। 1935 में इनका चुनाव सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में मुस्लिम नेशनलिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में हुआ। स्वि‍ट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया और वैटिकन में भारत के राजदूत भी रहे। इनकी मृत्यु के बाद भारत सरकार ने इनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया। 8 अप्रैल 1929 को बम फेंके जाने के मामले में चले ट्रायल  की शुरुआत 7 मई 1929 को हुई, जिसमें ब्रिटिश सरकार की तरफ से राय बहादुर सूर्यनारायण ने सरकार का पक्ष रखा। शहीद ए आज़म भगत सिंह 28 सितंबर 2024 में 116वीं जयंती के उपलक्ष में सत सत नमन।

लेखक:- चौधरी शौकत अली चेची,राष्ट्रीय उपाध्यक्ष,भाकियू (अंबावता) एवं पिछड़ा वर्ग उ0 प्र0 सचिव (सपा) है।