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लूट सके तो लूट:--- करोड़ों- अरबों रुपए नेता ही कर जाते हैं ,चट

चौधरी शौकत अली चेची
सत्यवादी हरिश्चंद्र कहलाने वाले देश और जनता को खुलेआम लूटने वाले सत्ता और पावर का सुख भोगने वाले झूठ गुमराह नफरत के सहारे तानाशाही रवैया से राजनेताओं  का सच डाटा पढ़ कर  लगभग 90% देशवासी आश्चर्य चकित रह जाएंगे तथा भ्रष्टाचार मे लूट की कोई सीमा ही नहीं है, समझना आसान है, डाकू किसे कहते हैं ?
भारत में कुल 4120 MLA और 462 MLC हैं ।  कुल 4,582 विधायक, एक विधायक का प्रीति वेतन भत्ता एक महीना  में लगभग ₹200000 खर्च होता है । कुल जोड़ 91 करोड़ 64 लाख रुपया प्रति माह हर वर्ष लगभग  1100 करोड़ रूपये।
देश में लोकसभा एवं राज्यसभा लगभग 776 सांसद  हैं। इनका वेतन भत्ता हर महीने ₹500000 मिलता है। इन सांसदों का हर महीने का कुल वेतन 38 करोड़ 80 लाख रुपए है एवं हर वर्ष इन सांसदों  को 465 करोड़ 60 लाख रुपया वेतन भत्ता मिलता है। भारत के विधायकों एवं सांसदों पर देश का हर वर्ष  15 अरब 65 करोड़ 60 लाख रुपया खर्च होता है। ये इनके मूल वेतन भत्ते की ही बात है । इनके आवास, रहने, खाने, यात्रा भत्ता, इलाज, विदेशी सैर सपाटा  आदि का का खर्च भी जोड़ा जाए जो लगभग 30 अरब रुपए सांसद एवं विधायकों पर हर वर्ष खर्च हो जाते हैं ।
एक विधायक या  मंत्री को दो बॉडीगार्ड और एक सेक्शन हाउस गार्ड  कम से कम 5 पुलिसकर्मी और  7 पुलिसकर्मी की सुरक्षा मिलती है। 7 पुलिस का वेतन लगभग (25,000 रूपये प्रति माह  1 लाख 75 हजार रूपये होता है।
 4582 विधायकों की सुरक्षा का सालाना खर्च 9 अरब 62 करोड़ 22 लाख हर वर्ष होता है। सांसदों के सुरक्षा पर प्रति वर्ष 164 करोड़ रूपये खर्च होते हैं। Z श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त नेता, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए लगभग 16000 जवान अलग से तैनात हैं। हर वर्ष कुल खर्च लगभग 776 करोड़ रुपए बनता है। सत्ताधीन नेताओं की सुरक्षा पर हर वर्ष लगभग 20 अरब रूपये खर्च होते हैं। हर वर्ष नेताओं पर लगभग 50 अरब रूपये खर्च होते हैं।
मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल पर लगभग 40 -40 लाख रुपए हर महीने खर्च होते हैं । देश के प्रधानमंत्री पर 24 घंटे में लगभग 162 लाख रुपए खर्च होते हैं । इन सभी खर्च के अलावा   भूतपूर्व नेताओं के पेंशन, पार्टी के नेता, पार्टी अध्यक्ष , उनकी सुरक्षा आदि का खर्च शामिल नहीं है, उसे भी जोड़ा जाए तो कुल खर्च लगभग 125 अरब  रुपए सालाना बनेगा और आश्चर्य यह भी है हर 5 साल में चुनाव के दौरान लगभग 130 अरब रुपए खर्च हो जाते हैं ,जो रकम राजनीतिक पार्टियों व नेताओं एवं सरकारी खजाने से खर्च होता है। जबकि चुनाव आयोग ने विधानसभा प्रत्याशी को चुनाव आयोग ने 40 लाख रुपए खर्च करने की लिमिट दी है एवं लोकसभा प्रत्याशी को 95 लाख खर्च करने की लिमिट दी है। वोटर दारू की बोतल, शूट ,साड़ी ,मिठाई का डिब्बा, चंद रुपए  जाति धर्म में अपने वोट को बेच देते हैं यह पैसा प्रत्याशियों के पास आता कहां से है ? गंभीर सवाल है भ्रष्टाचार की मुख्य जड़ यहां से भी उत्पन्न होती है।
समझना चाहिए हम प्रति वर्ष नेताओं पर लगभग 125 अरब रूपये से भी अधिक खर्च करते हैं, बदले में गरीब एवं सामान्य लोगों को झूठ गुमराह नफरत तानाशाही के सिवा क्या मिलता है । लोकतंत्र किसे कहते हैं समझना मुश्किल है 
 125 अरब रुपया हम भारतवासियों से ही टैक्स, वैट स्टांप, टोल टैक्स, रोड टैक्स आदि के द्वारा वसूल कर सरकारी खजाने में जमा किया जाता है ।
 सर्जिकल स्ट्राइक तो यहां भी बनता है भारत में दो कानून अवश्य बनने चाहिए
(1) चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध
नेता केवल  ( टी वी) के माध्यम से प्रचार करें खर्च आधे से भी कम हो जाएगा।
(2) नेताओं के वेतन भत्तो पर प्रतिबंध फिर मालूम होगा की देशभक्ति किसे कहते हैं।
 सभी देशवासियों को जागरूक होना पड़ेगा । इस फिजूल खर्ची के लिए बुलंद आवाज में जाति और धर्म से ऊपर उठकर देश और जनता की तरक्की के लिए बड़े आंदोलन की जरूरत है।
मा0 प्रधानमंत्री ,मा0 मुख्यमंत्री जी से  निवेदन है फिजूल खर्च रेवड़ी देना सभी योजनाएं बंद कर दी जाएं। संसद भवन जैसी कैंटीन हर 10 किलोमीटर पर देश के कोने-कोने में सरकार की तरफ से खोल दी जाए। 29 रूपये में भरपेट खाना मिलेगा । 80% लोगों को घर चलाने का झगड़ा ख़त्म न सिलेंडर लाना, न राशन पूरा घर परिवार खुश हर तरफ खुशियां। फिर हम कहेंगे सबका साथ सबका विकास प्रधानमंत्री को नहीं कहना पड़ेगा कि आत्मनिर्भर बनो
 आश्चर्य चकित बात है पूरे भारत में एक ही जगह ऐसी है जहाँ खाने की चीजें सबसे सस्ती है इंडियन पार्लियामेंट कैंटीन, चाय ₹1 ,सुप ₹1.50 , दाल 1.50 ,खाना 2.00, चपाती 1.00 ,चिकन 24.50, डोसा  ₹4.00, बिरयानी 8.00, मच्छी 13.00 विचार करिए क्या यह सबसे गरीब लोग हैं। इन  गरीबों की पगार है ₹500000 महीना वह भी बिना इनकम टैक्स के  जो आदमी 30 या 32 रूपये रोज़ कमाता है, क्या वो ग़रीब नहीं है इन सभी बातों को समझने की जरूरत है ,ताकि कानून का पालन एवं नियम ईमानदारी से चल सकें।
सोने की चिड़िया कहा जाने वाला भारत देश अंग्रेजों ने क्यों कंगाल किया और आज हमारे देश में क्या अंग्रेजी शासन की यादें ताजा हो रही हैं ? संत कबीर जी का दोहा समंदर की गहराई को नापता ही आ रहा है, काल कर सो आज कर आज करे सो अब पल में परले होएगी फेर करेगा कब ?

लेखक:---  चौधरी  शौकत अली चेची,राष्ट्रीय उपाध्यक्ष 
भाकियू (अंबावता) है।