चौधरी शौकत अली चेची
होली मनाने का मुख्य उद्देश्य बुद्धिजीवियों ने अपने अलग-अलग मत पेश किए हैं । होली त्यौहार फागुन मास को रात्रि में समय अनुसार होलिका दहन किया जाता है। नई साल चेत्र मास के पहले दिन रंग की होली त्यौहार मनाया जाता है । नाच गाना बजाना बड़ी धूमधाम से किया जता है। सभी मिलकर एक दूसरे के गले मिल गुलाल लगाते हैं। पकवान आदि मिल बैठ कर खाते हैं। होली त्यौहार मनाने की डबल खुशी किसानों को होती है। इस मौके पर फसल पक कर तैयारी तक पहुंच जाती है, लेकिन कहीं-कहीं बेमौसम बरसात व आग फसल को बर्बाद कर अन्नदाता की डबल खुशी गम में बदल जाती है । बसंत ऋतु सर्दी छोड़कर गर्मी मौसम में प्रवेश होता है। खुशी में एक दूसरे पर केमिकल डालना नशेवाली वस्तुओं का प्रयोग करना खुशी के त्यौहार पर प्रसन्न चिन्ह लगा देता है।
बुद्धिजीवियों द्वारा त्योहार मनाने के अनेक उद्देश्य दर्शाए गए हैं । होली त्यौहार मनाने का कोई निश्चित समय सामने नहीं आया सदियों से चली आ रही परंपरा प्रसिद्ध है। मुगल काल में भी होली मनाने का जिक्र किया गया है। अकबर का जोधा बाई के साथ ,जहांगीर का नूरजहां के साथ, शाहजहां शासन में उर्दू ए गुलाबीया नाम से जाना गया। बहादुर शाह जफर के समय श्रीकृष्ण लीलाओं का वर्णन है। सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया, अमीर खुसरो और बहादुर शाह जफर जैसे मुस्लिम संप्रदाय का पालन करने वाले कवियों ने भी होली पर सुंदर रचनाएं लिखी हैं। अजमेर शहर में ख्वाजा मुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर गाई जाने वाली होली प्रसिद्ध है। भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नाम की राक्षसी का वध किया। बरसाने की होली 14 दिन तक मनाई जाती है, जिसे लठमार होली कहा जाता है । प्राचीन काल में विवाहित महिलाएं परिवार की समृद्धि के लिए उपासना पूजा कर मनाया जाता था, इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था, इसे मनुवादी तिथि कहते हैं ।
गोबर के भर बोलिए बनाए जाते हैं, जिनमें छेद कर मूंज की रस्सी में बांधकर महिलाएं अपने भाइयों के ऊपर से उतारकर जलती हुई होलिका में फेंक देती है ,ताकि साल भर तक किसी बुरी नजर का साया न सताए । जौ की बालियों को भूनकर लोग अपने घरों की तरफ दौड़ते हैं, मिल बांट कर एक दूसरे को खिलाते हैं, ताकि सालभर तक बरकत बरकरार रहे। यह भी प्रचलित है कि शिव ने पार्वती को पत्नी स्वीकार किया और कामदेव के भस्म हो जाने पर पत्नी रति देवी को लाकर शंकर भगवान से कामदेव को गुहार लगाकर जीवित कराया। कामदेव का जीवित होने वाला दिन होली वाला दिन था आज भी रति विलाप को लोकगीत के रूप में गाया जाता है।
तर्क यह भी है राजा पृथु के समय में ढूंढी नामक एक कुटिल राक्षसी थी। पृथु ने ढूंढी के अत्याचारों से छुटकारा पाने के राजपुरोहित से उपाय पूछा। ढूंढी को देवताओं से बहुत सारे वरदान प्राप्त थे । ढूंढी अबोध बच्चों को खा जाती थी, फाल्गुन मास पूर्णिमा के दिन लकड़ी आदि इकट्ठा कर जलाकर मंत्र पढ़ें ,तालियां बजाए ,शोर मचाए, ढूंढी नजदीक आए तो उसके ऊपर कीचड़ आदि मारे उसके पीछे दौड़े वह मर जाएगी।
एक युग में राजा हिरण कश्यप का शासन था, अहंकार में अपने आप को भगवान मानता था। हिरण्यकश्यप को वरदान था घर मरू, न बाहर, दिन मरू न रात, अस्त्र से मरू न शस्त्र से, हिरण्यकश्यप के घर भक्त पहलाद ने जन्म लिया जो भगवान विष्णु की पूजा करता था। हिरण कश्यप अपने बेटे की इस बात से बहुत नाराज था। प्रह्लाद को मारने के बहुत सारे उपाय किए ,मगर सफलता नहीं मिली। हिरण कश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती । हिरण कश्यप के कहने से होलिका भक्त प्रहलाद को गोदी में लेकर शीतल चीर ओढ़ कर लकड़ियों के ढेर पर बैठ गई और आग लगा दी गई। शीतल चीर का दुरुपयोग किया होलिका जलकर राख हो गई । भगवान विष्णु की कृपा से भक्त पहलाद का बाल बांका नहीं हुआ और भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप को वरदान का पालन करते हुए सिंह जैसा रूप धारण कर अपने घुटनों पर रखकर सूर्य छुपने से पहले दरवाजे के बीच में अपने लंबे नाखूनों से चीर कर मौत के घाट उतार दिया। इन्हीं उद्देश्यों से होली रंगों का त्योहार के रूप में मनाते हैं ।
लेखक:- चौधरी शौकत अली चेची,उo प्रo सचिव (सपा) एवं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष,भाकियू (अंबावता) है।