BRAKING NEWS

6/recent/ticker-posts


 

अंग्रेजों ने सबसे ज्यादा मुसलमानों को ही फांसी के फंदे पर लटकाया, भारत के लिए 26 जनवरी की तारीख बेहद खास



चौधरी शौकत अली चेची 
 26 जनवरी का महत्वपूर्ण मुख्य उद्देश्य कुछ  बिंदुओं को समझने की कोशिश करते हैं । गणतंत्र दिवस तीन राष्ट्रीय पर्व में से एक है। जब हम सभी अंग्रेजों की गुलामी में थे, आजादी की जंग में हमारे पूर्वज संघर्ष करते रहे, बलिदान देते रहे। 31 दिसंबर 1929 को मध्य रात्रि में राष्ट्र को स्वतंत्र बनाने के लिए लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में प्रस्ताव पारित कर घोषणा कि यदि अंग्रेज सरकार 26 जनवरी 1930 तक भारत को उप निवेशक पद प्रदान नहीं करेगी तो भारत अपने को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा।
26 जनवरी 1930 को कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा कर अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ कर दिया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लाहौर में रवी नदी के किनारे पर पहली बार सर्व सहमति से तिरंगा झंडा फहराया और निर्णय लिया कि प्रति वर्ष 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाएगा और सभी स्वतंत्र सेनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे।
26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा।
26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ और संसदीय रूप के साथ एक संप्रभुता शाली समाजवादी लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत देश सामने आया।
भारतीय तिरंगे का संदेश राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच की पट्टी का श्वेत धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है ,निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। सफ़ेद पट्टी पर बने चक्र को धर्म चक्र कहते हैं। इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ की लाट से लिया गया है। इस चक्र में 24 आरे या तीलियों का अर्थ है कि दिन. रात्रि के 24 घंटे जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है।
 सभी जाति धर्म के पूर्वजों ने देश की आजादी में अपना बलिदान दिया।  नारी शक्ति ने भी  बलिदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ज़्यादातर लोग जानते हैं, कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज पिंगली वेंकैया ने डिजाईन किया था, पर बहुत कम लोगों को यह पता है कि आज जिस डिजाईन को भारत के तिरंगे के लिए इस्तेमाल किया जाता है, वह एक महिला स्वतंत्रता सेनानी ने बनाया था एक अंग्रेज़ इतिहासकार ट्रेवर रोयेल ने अपनी किताब द लास्ट डेज़ ऑफ़ राज में लिखा है कि भारत का अंतिम राष्ट्रीय ध्वज सुरैया तैयबजी ने बनाया था।
 साल 1919 में हैदराबाद,आंध्र प्रदेश अब तेलंगाना की राजधानी में जन्मी सुरैया एक प्रतिष्ठित कलाकार थीं। उन्हें अक्सर समाज के प्रति अपने प्रगतिशील विचारों के लिए जाना जाता है उनकी शादी बदरुद्दीन तैयबजी से हुई, जो एक भारतीय सिविल अधिकारी थे और बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने। सुरैया संविधान सभा के तहत विभिन्न समितियों की सदस्य थीं और उनमें से कई में प्रमुख भूमिकाएं निभा चुकी हैं वे काफ़ी कलात्मक और बहु.प्रतिभाशाली थीं। सुरैया से पहले भी बहुत से लोगों ने समय.समय पर ध्वज के डिजाईन दिए थे।
इन लोगों में भगिनी निवेदिता, मैडम कामा, एनी बेसेंट, लोकमान्य तिलक और पिंगली वेंकैया जैसे नाम शामिल हैं। साल 1921 में पहली बार महात्मा गांधी ने कांग्रेस के सम्मेलन में अपना एक ध्वज बनाने की बात उठाई थी। उसके बाद ही फ़ैसला हुआ कि भारत का अपना एक झंडा, एक ध्वज होगा, जो कि भारत का एक राष्ट्र के तौर पर प्रतिनिधित्व करेगा । उन्होंने कहा कि यह हम सब भारतीयों,हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, यहूदी, पारसी और वो सभी लोग जिनके लिए भारत उनका घर है के लिए बहुत जरूरी है कि हमारा अपना एक ध्वज हो, जिसके लिए हम जिए और मर सके। गांधी जी के इस विचार से प्रभावित होकर बहुत से सेनानी और क्रांतिकारियों ने ध्वज के लिए डिजाईन विकल्प के तौर पर दिए। इनमें से गांधी जी ने एक झंडे को स्वीकृति दी। इस झंडे को डिजाईन किया था आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैया ने। दिलचस्प बात यह है  इंकलाब जिंदाबाद का नारा मौलाना हसरत मोहानी ने लिखा जिसका अर्थ पूर्ण आजादी। विशेष रुप से अशफाक उल्ला खां, सरदार भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद को इस नारे ने प्रेरित किया। सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा, जय हिंद,सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,साइमन वापस जाओ,अंग्रेजों भारत छोड़ो आदि नारे मुस्लिम विद्वानों ने लिखें व दिए।
 देश की आजादी में मुसलमानों का भी मुख्य योगदान रहा, जिसमें उलेमा मौलाना शूरवीर ने अपने प्राणों की आहुति दी। अंग्रेजों ने सबसे ज्यादा मुसलमानों को ही फांसी के फंदे पर लटकाया। भारत के लिए 26 जनवरी की तारीख बेहद खास मानी जाती है।
 दिन गुरुवार 26 जनवरी 1950 में देश के संविधान को लागू किया गया था। 211 विशेषज्ञों के द्वारा  भारत का संविधान बनकर तैयार हुआ था। संविधान बनाने में 63,96,729 रुपये खर्च हुआ। संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कुल 2 वर्ष, 11 महीना और 18 दिन लगे।
 संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 को नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन हाल में हुई थी । 26 जनवरी 1950 को 21 तोपों की सलामी के बाद भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को पहले राष्ट्रपति डा0 राजेंद्र प्रसाद ने फहरा कर भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्म की घोषणा की थी। राष्ट्रीय गान गाया और भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले से देश के लिए संदेश दिया। इस तरह से 1935 एक्ट को हटाकर  भारतीय संविधान लागू कर दिया गया।
26 जनवरी 1950 को राष्ट्रीपति सुक्रणों इंडोनेशिया को मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया था । 26 जनवरी 1952 को दिल्ली में किसान ट्रैक्टर परेड हुई थी। 26 जनवरी 1950 संविधान लागू होने के अनुसार देश 2024 में 26 जनवरी दिन शुक्रवार को 75 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है।
संविधान निर्माण में 114 दिन बैठक हुईं, बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की आजादी थी। संविधान निर्माण में मुख्य रचेयता डा0 भीमराव अंबेडकर थे, उन्हें संविधान निर्माण का पिता भी कहा जाता है।
 संविधान निर्माण में 22 समितियां थी, 395  अनुच्छेद थे। भारतीय संविधान हाथ से हिंदी व अंग्रेजी में लिखा गया जिनकी मूल प्रतियां संसद भवन में सुरक्षित हैं।
 संविधान सभा के सदस्यों में लगभग सामान्य वर्ग से 213, मुस्लिम वर्ग से 79,सिक्ख वर्ग से 4, अनुसूचित जनजाति वर्ग से 33, अनुसूचित जाति वर्ग से 26, महिलाएं 15,संविधान सभा के मुख्य सदस्य डा0 भीमराव अंबेडकर, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डा0 राजेंद्र प्रसाद, सरदार बल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि रहे । 2020-21 का किसान आंदोलन 26 जनवरी दिल्ली में ट्रैक्टर परेड इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। जमे हुए के लाख टका और कीमत घट जाए हिलने से निजी स्वार्थ अपमान करें कोई इतिहास मिटा नहीं मैं की खुद्दारी से। 
 हम सबका  भारत देश अनेक तरह की फुलवारी जैसा है, जिसकी खुशबू न्यारी न्यारी महकती है । हम सभी देशवासी इस महकती रोशनी को सहयोग कर जिम्मेदारी निभाएं। देश आजादी के लिए भारत की पावन मिट्टी में खून सभी का शामिल है। सभी मिलकर कदम मिलाओ, सबका हक, एकता, तरक्की की मंजिल है।
जय जवान, जय किसान देश के शूरवीर बलिदानी पूर्वज अमर है, अमर थे, अमर रहेंगे। भारत की एकता अखंडता जिंदाबाद।
लेखक:-चौधरी शौकत अली चेची ,राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं सह प्रवक्ता,  भाकियू (पथिक) हैं।