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देश के किसानों की कौन सुनेगा, सत्ता में बैठे लोग चुनाव प्रचार में रहते हैं, व्यस्त

 चौधरी शौकत अली चेची
 हर वर्ष अन्नदाता पर बे मौसम बरसात सूखा कीट पतंगा खरपतवार आवारा पशु महंगाई किसान के माल की सही कीमत नहीं मिलना कई कारणवश समय पर बुवाई नहीं होना समय पर फसल की कटाई नहीं होना यह सभी समस्याएं किसानों को हर समय प्रभावित करती आ रही है। सत्ता में कोई भी पार्टी रही हो खोखले वादे झूठे आश्वासन कागजों और भाषणों तक ही सीमित रह जाते हैं धरातल पर कुछ नहीं दिखाई देता पिछले महीने बेमौसम बरसात से  किसानों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा लेकिन सरकारी सहायता सर्वे तक ही सीमित रह गई गेहूं आदि की बुवाई के समय किसानों को डीएपी समय पर नहीं उपलब्ध कराई  जिससे किसान अपनी फसलों की समय पर बुवाई नहीं कर पाया लेकिन अब किसानों को यूरिया नहीं मिलने की समस्या खड़ी हो गई है। जिससे फसलों को पहली सिंचाई समय पर नहीं होने के कारण किसान दुविधा में है क्योंकि गेहूं की फसल में पहले यूरिया लगाकर बाद में सिंचाई की जाती है पानी देने से पहले यूरिया लगाने से  फसल ताकतवर होती है जिसमें खरपतवार नाशक दवाई का छिड़काव समय पर हो जाता है। नीतिगत तरीके से पहला पानी और यूरिया दिया जाता है सही समय पर खरपतवार नाशक दवाई का छिड़काव कर पैदावारी को बढ़ाया जाता है। बड़ी अजीब विडंबना यह भी है अगर कहीं यूरिया उपलब्ध है तो सरकारी गोदाम तथा प्राइवेट दुकानों पर जबरदस्ती किसानों को 4 बैग यूरिया के साथ 1 लीटर की लिक्विड बोतल महंगे दामों में दी जा रही है जिसका स्प्रे द्वारा गेहूं की फसल में या अन्य फसलों में छिड़काव करने को कहा जा रहा है अगर लिक्विड बोतल के लिए किसान  लेने से इनकार करता है तो किसान को यूरिया नहीं दिया जा रहा  तानाशाही रवैया अन्नदाताओं के साथ अपनाया जा रहा है, पिछले 8 सालों से किसानों पर लगभग 45% महंगाई का बोझ बढा है यूरिया के साथ जबरदस्ती लिक्विड बोतल देकर  किसानों को अपमानित करना कहा जाए तो कोई बुराई नहीं क्योंकि केंद्र सरकार ने पिछले साल तीन कृषि काले कानून अन्नदाता पर लागू कर दिए थे और गोदी मीडिया व अंधभक्तों तथा सरकार द्वारा कानूनों की झूठी उपलब्धि गिनाई गई और कृषि बिल का विरोध करने वाले किसानों को अनाप-शनाप शब्दों से अपमानित किया गया तथा किसानों ने जो लगभग 17 मांगे रखी उन पर केंद्र  सरकार ने अभी तक कोई पहल नहीं की है। टीवी डिबेट में 24 घंटे जाति धर्म विशेष की नफरत वाली बातें सुर्खियां बनी रहती हैं अन्नदाता की कोई फिक्र नहीं जबकि लगभग 70% देश की आर्थिक व्यवस्था को किसान अपने कंधों पर संभाले हुए हैं और लगभग 65% किसान के बेटे  देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं अपने प्राणों की आहुति दे रहे हैं  किसान को भगवान का स्वरूप माना गया है । किसान के दर्द को समझने वाले देश में बहुत ही कम लोग नजर आते हैं।
 सत्ता में बैठे लोगों को समझना चाहिए कि हाथी के खाने के दांत और दिखाने के और वाली कहावत नजर आ रही है। सभी सरकारों से  अपील है अन्नदाता की जरूरत की वस्तुओं की निश्चित समय पर सब्सिडी के साथ उपलब्धता होनी चाहिए और यूरिया के साथ लिक्विड को जरूरी खरीदना या लेना अनिवार्य नहीं होना चाहिए क्योंकि देश का किसान जागरूक है।  खेती किस तरह  की जाती है भली भांति जानता है। सत्ता पक्ष और विपक्ष को समझना चाहिए की किसान अपनी जायज हक के लिए आंदोलन करें या खेती करें या अपने परिवार की परवरिश करें या कौन नफरत देश में फैला रहा है और कौन किसानों के हक की बात कर रहा है क्योंकि देश और अपने परिवार की चिंता किसान चौबीसों घंटे करता है इसलिए किसी भी परिस्थिति में रात दिन खेतों में काम करता ही रहता है।

लेखकः- चौधरी शौकत अली चेची, किसान एकता संघ के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष हैं।