चौधरी शौकत अली चेची
अब क्या यह जनता के मुद्दे है? मैं चाय वाला हूँए मैं फकीर हूँ?
मैं गरीब हूँ मेरे पास तो कार भी नहीं मैं कामदार हूँ? वो मुझे काम नहीं करने देते? वो मोदी को हराना चाहते है?
अब न रोजगार की बात।
न काले धन की बात।
न फसलों के दाम की बात।
न अच्छी शिक्षा की बात।
न अच्छे स्कूल कॉलेज यूनिवर्सिटी अस्पतालों की बात।
फिर क्या है मन की बात। जरा समझिए आम जनता को मुद्दों से हटाकर किन बातों में उलझाने की बात हो रही है। अरस्तू कहते हैं, अगर ज्ञानियों की संख्या कमए मूर्खों की संख्या ज्यादा होगी तो मूर्ख लोगों की ही तूती बोलने लगेगी। मानें या न मानें, लेकिन यहां भी कुछ सालों से मूर्खों की संख्या बढी है। दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा भी 75000 पर
आ गया। बेरोजगार युवाओं की आत्महत्या दुगनी हो गईए मनरेगा उज्जवला आदि कई सरकारी योजनाएं ध्वस्त हो गई। नोटी बंदी के बाद काला धन आया और न ही भ्रष्टाचार उडन छू हो गया। हवाई चप्पल पहनने वालों को सफर कराने का जुमला। अब हवाई जहाज न जाने कौन से बादलों में छुप गया।
नरेंद्र मोदी के शासनकाल के शुरुआती दो साल में आर्थिक विकास दर सकारात्मक
रहीए लेकिन बाद के वर्षों में यह लगातार गिरती चली गयी। 2014 में आर्थिक विकास दर 7-4 प्रतिशत थी जो 2016 में बढ़कर 8-25 प्रतिशत हो गयी। लेकिन, नोटबंदी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था
का चक्का उल्टा घूमने लगा। आर्थिक विकास दर में लगातार गिरावट जारी है और यह 2018 में
7-04ः, 2019 में 6-11ः और 2020 में
4-18ः के स्तर पर लुढ़क चुकी है। जीडीपी के आकार के मामले में भारत 2014 में 10वें नंबर पर था और अब इससे आगे बढ़कर छठे नंबर पहुँच चुका है। मगर, प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में भारत 147 वें
स्थान पर। इसका मतलब यह है कि आम भारतीय पहले से अधिक ग़रीब हुए हैं। भारत की रैंकिंग 22 स्थान
नीचे लुढ़क गयी है। 2016 में भारत 125वें
स्थान पर था और 2017 में 126वें स्थान पर। किसी देश की स्थिति का आकलन जिन आधारों पर होता है उनमें अहम है भुखमरी का सूचकांक जिसे ग्लोबल हंगर इंडेक्स कहते हैं। 2014 में
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का स्थान 76 देशों के बीच 55वाँ था। 2020 में
107 देशों के बीच भारत का स्थान 94वाँ
हो गया।
किसी देश की सेहत को समझने के लिए एक अन्य पैमाना मानव विकास सूचकांक यानी एचडीआई का होता है। भारत ने जहाँ जीडीपी के मामले में एक ट्रिलियन
का पड़ाव 60 साल में पूरा किया। 2007 में यह 1-23 ट्रिलियन के मुकाम पर पहुँचा। वहीं, इसे दोगुना होने में महज 7 साल लगे। 2014 में
भारत की जीडीपी का आकार 2-03 ट्रिलियन डॉलर हो गया। यह लक्ष्य बीते 7 साल के रिकॉर्ड को देखते हुए कठिन लक्ष्य नहीं था।