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जन उत्थान ही राष्ट्र उत्थान

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जन्म दिवस के अवसर से पहले ही आज  मन में एक विचार आया। क्या महात्मा गाँधी ने सोचा होगा कि उनकी मृत्यु के बाद उनके विचारों का क्या होगा? क्या उनके इन विचारों को समाज द्वारा आगे बढ़ाया जायेगा या सिर्फ किताबो तक ही सीमित रखा जायेगा? ऐसा नहीं है कि लोगो ने उनके विचार नहीं अपनाये, आज भी बहुत लोग उनके विचारो पर चलते हैं। लेकिन ऐसे लोगों का प्रतिशत कम ही है। 
कोई व्यक्ति इतना प्रगतिशील या नैतिक कैसे हो सकता है कि  उसके विचारों के साथ-साथ उसकी प्रत्येक चीज जैसे उसकी ऐनक, उसकी लाठी, उसकी खादी या उसका चरखा भी एक प्रतीक बन जाये....
  एक बार फिर दो अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जन्मदिवस पर उनके विचारों को बोलने वाले लोगों का ताँता लगेगा और महात्मा गाँधी (महात्मा अर्थात महान आत्मा) के बारे में बड़ी बड़ी बातें करेंगे। 
शायद हमारी कुछ जनता को तो ये भी  मालूम नहीं होगा कि क्या उनका नाम पहले से ही महात्मा गाँधी था, या महत्मा शब्द का प्रयोग उनके लिए बाद मे हुआ था। और बाद में हुआ भी था तो क्यो..? कुछ लोग महात्मा गाँधी को अपना आदर्श मानते है तो वहीं कुछ को विवश होकर उन्हें आदर्श मानना पड़ता है। जबकि अपनी जैसी विचारधारा के लोगों के साथ वे गाँधी की बुराई भी करते हैं, क्योंकि सबकी विचारधारा हमेशा से अलग रही है और आगे रहगी भी। 
 लोगों की अपनी-अपनी राय होती है जैसे कुछ लोग गाँधी को महान अवतार या फिर कोई विशिष्ट व्यक्ति बोलकर खुद को इस तरह बचा लेते है जैसे वे कभी ऐसे बन ही नहीं सकते, क्योंकि वे यह सोचकर चलते है कि ऐसे व्यक्ति तो जन्म से ही सर्वगुण संपन्न होते हैं। या वो तो खास ही पैदा होते है और अपना बचाव करके निकल जाते है.... क्या यह सही है कि कोई व्यक्ति जन्म से ही महत्मा होता है? नहीं.. बिलकुल नहीं.. सब बेकार की बातें है.. कोई भी व्यक्ति महात्मा अर्थात महात्मा गाँधी जैसा बन सकता है आखिर गाँधी भी तो हम लोगों मे से ही थे न, तो फर्क क्या है उनमें और हममें? फर्क इस बात का है कि गाँधी का हर भूल से कुछ न कुछ सीखना, उनका धैर्य, उनकी क्षमाशीलता, उनकी सत्यवादी सोच, उनकी अहिंसावादी विचारधारा, उनकी अदम्य इच्छाशक्ति और उनमें वह ताकत थी कि वे स्वयं अपनी आन्तरिक शक्ति से मजबूत हुए। अब बात यह है कि उनमे यह ताकत आई कहाँ से? क्या वह पैदा ही ताकतवर हुए थे? बिल्कुल  नहीं.. उनमें भी कई तरह के अवगुण थे। अज्ञानता थी और जिन बातों को सोचकर आज हम अपने अंदर हीन भावना लाते है, उससे भी कहीं ज्यादा दोष थे अपने महात्मा गाँधी में, लेकिन फर्क था तो स्वयं के दोषों को पहचानने का,  आखिर वे अपने सभी अवगुणों को पहचानते गए और उनसे अलग होते गए और न जाने कब आम इंसान से महात्मा बन गए। 
उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन से पढाई की। अगर वे चाहते तो वे भी ऐशो आराम की जिन्दगी जी सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा न सोचकर सबको साथ लेकर आगे बढने की सोची, और लम्बे समय तक भारत का दौरा करके लोगों की पीढ़ा को पहंचाना और  सबको साथ लेकर उनके लिए अहिंसक तरीके से लड़ाई की। तब जाकर बापू या महात्मा कहलाने योग्य बने। लेकिन विडम्बना तो  यह कि जिस देश ने उन्हें बापू या महात्मा कहा उस देश के लोगो की जानकारी अपने बापू के लिए  एक दूसरे के आदान-प्रदान विचारो पर आधारित रही है। 
आज हम में से बहुत से लोग महात्मा गाँधी और उनके द्वारा लिए गये फैंसलों पर ऊँगली उठाते हैं, गलत ठहराते हैं। जैसे चौरा चौरी कांड के बाद आन्दोलन वापस लेना, मुस्लिम लीग की स्थापना या भारत विभाजन आदि से जोड़कर उनके फैंसलों को गलत साबित करने का प्रयास करते हैं। लेकिन क्या कभी वे यह सोच पाते हैं कि इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उस व्यक्ति ने अपने पूरे जीवनकाल में  सभी फैसले सही ही लिए हो। आज हम भी अगर किसी पद पर कार्यरत हो तो इसका क्या दावा है कि हमारे द्वारा लिए गये सभी फैसले सही ही हों?  और अगर कोई व्यक्ति जीवन मे सभी सही फैंसले लेने भी लगे तो वह इंसान थोड़ी ही रहेगा। वह तो मशीन कहलेगा इसका उदहारण हाल ही में आई हिंदी फिल्म अटैक में देखा जा सकता है।  हम किसी व्यक्ति के एक गलत फैंसले से उस पर बहुत जल्दी ऊँगली उठा देते है। जबकि उसके द्वारा कितने ही फैंसले सही हों उन सही फैंसलों को भूलकर हम केवल उसकी गलती देखते हैं। जोकि कदापि उचित नहीं है। हमें जरूरत है तो अपने अंदर झाँकने की और अपनी ताकत को पहचानने की। यहाँ ताकत का मतलब कोई शारीरिक ताकत नहीं है। यहाँ इसका मतलब अपनी आदम्य इच्छाशक्ति से है। 
सोचने की बात है उस समय गाँधी के विचार कितने लोकप्रिय रहे होंगे इसका अंदाजा इसी बात से ही लगाया जा सकता है कि जब बागानों मे लगे गुलाम/दास जिन्होंने केवल गाँधी के नाम, विचार और उनकी उपलब्धियों के बल पर अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ीं। क्योंकि उन्हें गाँधी जी पर पूरा विश्वास था और होता भी क्यों नहीं इसी विश्वास के लिए गाँधी जी ने बहुत लम्बे समय तक भारत का दौरा किया। उस समय की जनता की असली नब्ज पकड़ी, लोगो की परेशानियों को नजदीक से देखा व समझा और उनके लिए कार्य किया, और हमेशा सत्य की राह पर चलने का आहवान किया, और एक जननेता के रूप मे उभर कर  सामने आये ..... आज के समय में कमी है ऐसे जननेता कि जो नजदीक से कमजोर वर्ग की नब्ज पकड़े, और देखे ऐसी क्या कमी रही है जो इतने लम्बे समय के बाद भी लोग सही से उभर नहीं पाए है। लेकिन आजकल के जननेता तो पहले से ही बता कर आते है कि वे दौरा करने वाले है और लोग उनकी तैयारियों में ऐसे जुट जाते है मानो कोई युवराज जंग जीत कर आया हो। और हमें उसकी तैयारी करनी हो.... क्या यह वास्तविक दौरा कहलायेगा, और अगर वो दौरा होगा भी तो क्या वह उन कमियों को पहचान पायगा जो लोगो ने दौरे की सूचना पाकर कुछ समय के लिए छुपा दी है? कहने का मतलब है कि आज यदि हमें मन से गाँधी जयंती मनानी है तो उनके आदर्शों पर चलने की आवश्यकता है। राष्ट्र उत्थान या राष्ट्र विकास के लिए जनता की नब्ज पकड़ने की आवश्यकता है। उनकी पीढ़ा जानकर उसे दूर करने की आवश्यकता है। समाज में जाकर उनसे बात करने, उनकी राय जानने की आवश्यकता है। सबको खुशहाल देखने के लिए सबकी सहभागिता की आवश्यकता है। एकजुटता की आवश्यकता है।                              
  प्रियंका रानी ,दनकौर,
जनपद गौतमबुद्धनगर