प0 महेंद्र कुमार आर्य
भजन-1
तर्ज़- ये खिड़की जो बन्द रहती---------------
प्रभु को जानिये, बाद में मानिये, इन बहुरूपियों को।
पहचानिये, जो खुद को भगवान्
कहते हैं ॥
सब प्रकृतिचित्त जीवात्मा, सचिदानन्द है वो
परमात्मा ।
दिखलाई आँखों से ना दे सके, है इसलिए निराकार
परमात्मा ।
मौहताज वो किसी का नहीं, सर्व-शक्तिमान्
कहते हैं।
उसी को भगवान् कहते हैं ॥ १ ॥
कर्मों की सजा दे, न माफ करे, न्यायकारी है, इन्साफ करे।
दे दी स्वतन्त्रता मानव को, पुण्य करे चाहे पाप
करे।
करता दया सब जीवों पे, जो उसको महान् कहते
हैं।
उसी को भगवान् कहते हैं ॥ २ ॥
गर्भ से माँ के जो ना जन्म ले, अजन्मा जिसका न
अन्त मिले।
•जो सब विकारों से दूर हो, ऐसा न साधु महन्त मिले।
अनादि न जिसका आदि मिले, उसे अनुपम ज्ञान
कहते हैं।
उसी को भगवान् कहते हैं ॥ ३ ॥
सर्वाधार हैं वो ईश्वर, राजों का राजा है
सर्वेश्वर ।
सर्वव्यापक कण कण रमा सबके अन्तर की
रखता है खबर।
जरा अवस्था जिसको आती नहीं उसको जवान कहते हैं।
उसी को भगवान् कहते हैं ॥ ४ ॥
जो है अजर वो रहता अमर, अभय, किसी का नहीं उसको डर।
नित्य पवित्र सृष्टि कर्ता है जो, उसकी उपासना सुबह
शाम कर।
रखो इन्हें याद हरदम नरेश प्रभु की पहचान कहते
हैं।
उसी को भगवान् कहते हैं ॥ ५ ॥
भजन-2
तर्ज़- जिन्दगी की न टूटे लड़ी...
उस प्रभु की हैं कृपा बड़ी, याद कर ले घड़ी दो
घड़ी।
घण्टी बज जाय कब कूच की, मौत हरदम सिरहाने
खड़ी ॥
किन्हीं शुभ कर्मों का फल है यह, तुझे मानव का चोला
मिला,
जो आया है जायेगा वह, बन्द होगा न यह
सिलसिला।
वेद की कहती इक इक कड़ी, याद कर ले घड़ी दो
घड़ी ॥
जो करना है ले आज कर, कुछ खबर प्यारे कल
की नहीं,
मानव जीवन को कर ले
सफल, ढील दे इसमें पल की नहीं।
टूट स्वासों की जाय कब लड़ी, याद कर ले घड़ी दो
घड़ी ॥
इस जवानी पे इतरा न तू, बातों बातों में
मुक जायेगी,
उभरा सीना सिकुड़ जायेगा, और कमर भी यह झुक
जायेगी।
टेक कर के चलेगा घड़ी, याद कर ले घड़ी दो
घड़ी ॥
भौतिकवादी चकाचौंध में, भूल उसको न मतिमन्द,
सच्चिदानन्द सुख कन्द की जा शरण में
ले आनन्द ।
'वीर' कवि जाए विपदा हड़ी, याद कर ले घड़ी दो घड़ी ॥
भजन- 3
क्या लेकर आया जग में क्या लेकर चले
आओगे।
प्रभु सिमरन और धन कर्मों का नरजीवन
में ही पाओगे ॥
कुटुम्ब, कबीला, सोना, बंगला साथ न तेरे
जायेंगे।
इनकी खातिर पाप क्यों करता यश ना तुझे दिलायेंगे
॥
समय गँवाया खान पान में जग के जाल में
जकड़ा सब।
परमानन्द के पान का वक्त मिलेगा तुझ को कब कब ॥
काम क्रोध को दिया बढ़ावा परहित धर्म कमाया
ना।
इस कारण नर जीवन पाकर सच्चे सुख को पाया ना ॥
कुछ नहीं बिगड़ा संभल जा अब भी नेक
कमाई कर ले तू।
प्रभु सिमर मन उज्ज्वल कर
ले, सब से प्रीति कर ले तू ॥
झूठी खुशी विषयों में पायी, आनन्द लिया न भक्ति
में।
प्रभु नाम जपा ना मानव, व्यर्थ जिया इस
जगती में ॥
भक्ति का सुख है निराला- भजन- 4
दाता तेरी भक्ति का सुख है निराला,
अमृत पीछे कोई
कर्मों वाला।
दाता तेरे दर का जो है भिखारी,
आशा तृष्णा मिटे मन की सारी।
प्रभु भक्ति में मन होवे मतवाला ॥
अमृत पीवे कोई.----------------
प्रेम का दीपक प्रेम की बाती, जगमग जोत जले दिन
राती।
मन मन्दिर में करो उजियारा ॥
अमृत पीवे कोई.--------
दासन दास को देना सहारा,
भवसागर से पार
उतारा।
करो कृपा ओ दीन दयाला ॥
अमृत पीवे कोई.-----------.
'तेरी रहमतों का- भजन- 5
तेरी रहमतों का सहारा ना
होता,
तो एक पल भी मेरा गुजारा न होता।
तेरी रहमतों से मैं जिन्दा
हूँ मालिक,
तेरी बंदगी से मैं बन्दा हूँ मालिक ।
अगर तू ना होता तो कोई
हमारा ना होता ॥
तो एक पल भी मेरा..---------1
अल्पज्ञ हूँ मैं दाता, जो तुझे भूल जाऊँ,
जो ठोकर लगे तो तेरे पास आऊँ ।
वरना मेरा यहाँ गुंजारा ना होता ॥
तो एक पल भी मेरा.-------------2
तेरे भक्त विष पीकर भी मुस्कराते,
तेरी इच्छा पूर्ण
हो यही गीत गाते।
तू अगर अपने भक्तों का प्यारा ना होता
॥
तो एक पल भी मेरा..------- ३
ये संसार सागर महाजाल घेरा,
मेरी जिन्दगी में
है छाया अन्धेरा ।
देता न ज्योति तू उजाला न होता ।
तो एक पल भी मेरा..-------- ४
तेरे नाम का सुमिरन
- भजन- 6
तेरे नाम का सुमिरन करके, मेरे मन में सुख भर
आया।
तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने
पाया ॥
दुनिया की ठोकर खाकर, जब हुआ कभी बेसहारा,
ना पाकर अपना कोई, जब मैंने तुम्हें
पुकारा।
हे नाथ! मेरे सिर ऊपर, तूने अमृत बरसाया ॥
१ ॥
तू संग में था नित मेरे, ये नैना देख न पाए,
चंचल माया के रंग
में, ये नैन रहे उलझाए ।
जितनी भी बार गिरा हूँ तू ने पग पग
मुझे उठाया ॥ २ ॥
भवसागर की लहरों में, भटकी जब तेरी नैया,
तट छूना भी मुश्किल
था नहीं दिखे कोई खिवैया ।
तू लहर बना सागर की, मेरी नाव किनारे
लाया ॥ ३ ॥
हर तरफ तुम्हीं हो मेरे, हर तरफ तेरा
उजियारा,
निर्लेप प्रभु जी
मेरे, हर रूप तुम्हीं ने धारा।
तेरी शरण में होके दाता, तेरा तुम तुम्हीं को चढाया ॥ ४ ॥
भजन कर ले- भजन-7
सुबह शाम भजन कर ले मुक्ति का यतन कर
ले।
छूट जायेगा जन्म-मरण प्रभु का सुमिरन
कर ले ॥
यह मानव का चोला, हर बार नहीं मिलता,
जो गिर गया डाली से, वह फूल नहीं खिलता।
मौका है यह जीवन का, गुलजार चमन कर ले ॥
१ ॥
नर इन कानों से सुन, तू संतों की वाणी,
मन को ठहरा करके बन जा आत्म ज्ञानी ।
जिह्वा तो चले मुख में, अब ओम् जपन कर ले ॥
२ ॥
इस मैली चादर में हैं, दाग लगे कितने,
पर ज्ञान के साबुन में हैं झाग भरे
इतने ।
धुल जायेगी सब स्याही, उजला तन मन कर ले ॥
३ ॥
सुन वेदों में गूँज रही, मन्त्रों की मधुर
ध्वनियाँ,
बलिदान की कड़ियों में, तू गूंथ नयी
कड़ियाँ,
प्रभु के आगे अब तो नीची गर्दन कर ले ॥ ४ ॥
ईश-समर्पण- भजन-8
तू ही इष्ट मेरा, तू ही देवता है।
तू ही बंधु मेरा, माता तू पिता है ।
नहीं है कोई, चाहना और दिल में ।
तुझे चाहता हूँ, यही चाहना है ॥ १ ॥
रहा ढूँढ़ता है तुझ को, कब से जमाना।
तू दिल में है और दर्द, दिल की दवा है ॥ २
॥
ओम् और ईश्वरभक्ति
खतावार है दरअसल अहले दुनिया।
फकत इक तू ही, विश्व में देखता है
॥ ३ ॥
जहालत से हम तुझ को, देखें न देखें।
मगर तू हमें, हर घड़ी देखता है ॥
४ ॥
बहुत कोशिसें कीं, बहुत सिर खपाया।
समझ में न आया, कि संसार क्या है ॥
५ ॥
अगर दर्दे दिल है, तो दिल को टटोलो।
कि इस दिल में ही, दर्दे दिल की दवा
है ॥ ६ ॥
जवानो जवानी में, कुछ काम कर लो।
समझते हो जिसको जवानी, हवा है ॥ ७ ॥
पता पत्ता-पत्ता तेरा दे रहा है ।
सरासर गलत है कि तू लापता है ॥ ८ ॥
'मुसाफिर' जरा इस मुसाफिर से पूछो।
कहाँ से चला है ? कहाँ जा रहा है ॥ ९
॥
भजन - 9
1 तर्ज- चल उड़ जा रे पंछी..........
टेक कुछ सोच समझ प्राणी कि इक दिन
दुनिया से है जाना ॥
जिसे समझता है तू अपना यह है एक सराए,
चार दिनों का मेला है यहाँ कोई आए कोई
जाए।
मोह-माया के जाल में फँसकर प्रभु को तू क्यों
भुलाए।
यह तेरी जागीर नहीं है, यह तो मुसाफिर खाना
॥
कुछ सो.......
ठोकरें खाता फिरता है क्यों परमेश्वर
को भूल,
काँटा बनकर क्यों
चुभता है बन जा सुन्दर फूल ।
जिस जीवन में नहीं सुगन्धि, उसका है क्या मूल्य,
लाख चौरासी में ही
होगा फिर तो चक्र लगाना ।
कुछ सो......
प्रातः सायं सन्ध्या करके, ओ३म् प्रभु गुण
गाले,
भूखे नंगे की सेवा, दुःखिया को गले लगा
ले।
तोड़ के सारे झूठे बन्धन, जीवन शुद्ध बना ले,
'नन्दलाल' कहे कीमती चोला,
इसको सफल बनाना ॥
कुछ सोच समझ प्राणकि इक दिन दुनिया से
है जाना ॥
ईश-भक्ति- भजन - 10
प्रेमी भर कर प्रेम में, ईश्वर के गुण गाया
कर।
मन मंदिर में गाफ़िला, झाडू नित्य लगाया
कर।
सोने में तो रैन बिताई, दिन भर करता पाप
रहा।
इसी तरह बरंबाद तू जीवन, करता अपने आप रहा।
प्रातः समय उठ नियम से, सत्संग में तू जाया
कर ॥ १ ॥
नर-तन के चोले का पाना, बच्चों का कोई खेल
नहीं।
जन्म-जन्म के शुभ कर्मों का, होता जब तक मेल
नहीं।
नर-तन पाने के लिए, उत्तम कर्म कमाया
कर ॥ २ ॥
पास तेरे है दुःखिया कोई, तू नें मौज उड़ाई
क्या ।
भूखा प्यासा पड़ा पड़ोसी, तू ने रोटी खाई
क्या।
पहले सब से पूछ कर, फिर तू भोजन खाया
कर ॥ ३ ॥
तू देख दया उस परमेश्वर की, वेदों का जिन ज्ञान
दिया।'
देश' तू मन में सोच जरा तो, कितना है कल्याण
किया।
सब कामों को छोड़ के, उस का ध्यान लगाया
कर।
ओ३म् प्रभु का नाम है नित्य उठ उस को ध्याया कर
॥ ४ ॥
संकलनकर्ताः- पं0 महेंद्र कुमार आर्य पूर्व प्रधान आर्य समाज मंदिर सूरजपुर हैं।
कृतिः- भजन संगीत सागर
प्रसंगः- ओइम और ईश्वर भक्ति