21 वर्ष शादी के लिए अनिवार्य करना घातक सिद्ध हो सकता है, सरकारों को यह भी समझना होगा कि किसी की इच्छाओं का गला नहीं दबाया जा सकता
चौधरी शौकत अली चेची
अगर बात करें कि लड़का, लड़की 18 व 21 वर्ष में अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं जैसे वोट डालकर अपना प्रतिनिधि जिताना, अपने हिस्से की संपत्ति का मालिक होना, रोजी रोजगार का जरिया बनाना, बैंक से लोन लेना, जिस मां.बाप ने औलाद को हर परिस्थिति में परवरिश कर संपन्न बनाकर अपने पैरों पर चलना सिखाया, उनसे अलग होना, सेक्स रिलेशनशिप, फ्रेंडशिप अपनी मर्जी से बाहर जाने का अधिकार कानून ने दिया है, तो 21 वर्ष उम्र से पहले शादी करना प्रतिबंध क्यों? सरकारों को यह भी समझना होगा कि लगभग 12 वर्ष बच्चे की उम्र होने के बाद गलत रास्ते पर नहीं जाएं, माता पिता उन पर नजर रखते हैं, संस्कार और शिक्षा जागरूक करने की कोशिश करते रहते हैं। लेकिन फिर भी 14 या 15 वर्ष की ही उम्र में अनजान, नासमझ लड़के, लड़की, लैला मजनू की जोड़ी बन कर मां.बाप और समाज की इज्जत को तार.तार कर यानी घर छोड़कर फरार हो जाते हैं या घर पर रहकर भी लड़के लड़की मां बाप तथा बड़ों को गलत शब्दों से अपमानित भी करते हैं। इससे जिंदगी भर मां बाप तथा समाज के लोग सिर उठाकर नहीं चल पाते हैंए परिवारों के विरोध से जैसे कि कम उम्र या सामाजिक परिस्थिति से लड़का या लड़की परिवार वालों को ही मौत के घाट उतार देते हैंए जिसके देश में लाखों उदाहरण सरकारी रिकॉर्ड और सुर्खियों में मौजूद है। कई देशों ने शादी की उम्र को 14 व 16 वर्ष निश्चित किया गया है। इंटरनेट, मोबाइल, टीवी के अनुसार एडल्ट सीन बच्चों को रिलेशनशिप की तरफ आकर्षित कर रहे हैं जो शादी के बंधन को मजबूत करता है। लगभग 50 प्रतिशत हर जाति धर्म में माता.पिता, समाज लड़के लड़की 16 व 17 वर्ष की उम्र में शादी के बंधन में होना या करना चाहते हैं। 21 वर्ष शादी के लिए अनिवार्य करना घातक सिद्ध हो सकता है। सरकारों को यह भी समझना होगा कि किसी की इच्छाओं का गला नहीं दबाया जा सकता, क्योंकि शादीशुदा लड़के लड़कियां बच्चे पैदा होने के बाद भी आईपीएस, आईएएस, एमबीबीएस पीएचडी आदि की डिग्री हासिल कर देश समाज का नाम रोशन कर तरक्की की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। सामाजिक बुराइयों को कानून से रोकना संभव नहीं है। टीवी डिबेट पर प्रवचन देना या फिर प्रवचन दिलाना किसी भी समस्या का समाधान नहीं। माता पिता के उस दर्द को भी समझने की जरूरत है जो भूख प्यास हर विघटन परिस्थिति में अपने बच्चों के लिए सुविधा मुहैया कराते हैंए अपना नाम देते हैं। संपत्ति का वारिस बनाते हैं, बुढ़ापे का सहारा समझते हैं। वही बच्चे 15 व 16 वर्ष की उम्र में मां बाप के अरमानों सम्मान को ठोकर मार कर तार तार कर देते हैं। लड़के लड़कियों की तरक्की ऊर्जावान सुविधाएं से होगीए अनाप.शनाप कानूनों से नहीं। शादी के बाद बच्चे पैदा कब करने हैं, अनेकों उपाय देश में मौजूद है। 95 प्रतिशत परिवार अपने बच्चों की शादी सहमति से ही करते है। जब कि 5 प्रतिशत परिवार बच्चों की शादी मजबूर परिस्थिति में करते हैं। कानून को लेकर किसी को बाध्य करना हर समस्या का समाधान नहीं। लड़काए लड़की नाबालिक परिस्थिति में घर छोड़कर भाग जाते हैं तो लड़का लड़की के परिवार वालों में से शर्म के मारे आत्महत्या भी कर लेते हैंए दो परिवारों या दो समुदाय में हमेशा के लिए दुश्मनी बन जाती है। आरोप एक दूसरे पर लगाया जाता है जबकि आरोपी लड़का लड़की ही होते हैं। इसीलिए सरकारों को और राजनीतिक पार्टियों को विचार करना चाहिए। 21 वर्ष या फिर 16 वर्ष या 18 वर्ष क्योंकि कलयुग द्वापर त्रेता सतयुग सभी के इतिहास लिखे गए हैं। कहावत गलत नहीं है कि सच कहती है दुनिया इश्क पर जोर नहींए ठोकर लगने के बाद भी नहीं, समझने वाला इंसानए ऊपर वाले को ही क्यों दोषी मानता हैए जबकि कर्म ही फल है और हर समस्या का हल है, बंधन व प्रतिबंध व जागरूकता में काफी अंतर होता है।
लेखकः- चौधरी शौकत अली चेची भारतीय कियान
यूनियन (बलराज) के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष हैं।