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कृषि अध्यादेश गले में हड्डी तरह सरकार के लिए फांंस बन गए हैं यदि सटके तो फंसे और यदि उगले तो भी फंसे

 

सत्ता की चाशनी में लिपटे हुए किसान नेता इस्तीफा दें और हको के लिए बैठे अन्नदाता के साथ खडे हो जाएं

 




चौधरी शौकत अली चेची

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किसानों की आय दुगनी होने का कोई फार्मूला किसी के पास नहीं है। 9 महीने का बच्चा घुटनों पर चलने लगता है मगर 7 सालों में विकास अभी तक पैदा नहीं हुआ है। भाजपा सरकार ने किसानों को लाभ दिया तो करीब 9 प्रतिशत किसानों पर लगभग 40 प्रतिशत भार बढ़ गया। इन तीन कृषि बिल कानूनों को जागरूक आम नागरिक और किसान अच्छी तरह  समझ रहा है। किंतु वहीं सरकार और गोदी मीडिया द्वारा तोता रटत बयानबाजी से अन्नदाता को अलगाववादी, पाकिस्तानी, खालिस्तानी और नकली किसान तक कहते हुए खूब बेइज्जत किया जा रहा है। दरअसल इस पर्दे के पीछे खेल की कुछ ओर चल रहा है अन्नदाता या किसान और आम जनता जाए भाडे चूलें में इन्हें तो मतलब अपनी कुर्सी से हैं। पूंजीपति मित्रांं की जी हूजुरी भी बचानी है। सत्ता की चाबी सौंपने के लिए पूंजीपति मित्रांं ने पैसा पानी की बहाया और दिन रात एक कर दिया मगर उन्हें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर क्यों न फायदा हों? एक दूसरी बात यह भी कि भाजपा सरकार कृषि अध्यादेश लाकर बुरी तरह फंस भी गई है। ये कृषि अध्यादेश गले में हड्डी तरह सरकार के लिए फांंस बन गए हैं यदि सटके तो फंसे और यदि उगले तो भी फंसे। यदि कृषि अध्यादेशांं को वापस लिया जाए तो एक ओर पूंजीपति मित्रों की नाराजगी मोल ले ली जाएगी और वहीं सीएए कानून की वापसी के लिए फिर जनता सडक पर आ जाएगी। यदि सीएए कानून के लिए पुनः आंदोलन शुरू होगा तो फिर कश्मीर के लोग भी धारा 370 की वापसी के लिए अपना आंदोलन तेज कर सकते हैं। खैर अब यह आम लोगों को समझ आ रहा है कृषि कानून, नोटबंदी और जीएसटी से भी ज्यादा खराब है। किसानों के साथ लगभग 80 प्रतिशत जनता को भी ये कानून बर्बाद करके रख देगा। हर कानून समस्या का समाधान नहीं, हर कानून सबका भला भी नहीं कर सकता। अंत मैं यही कहूंगा कि किसान जिस दर्द को लेकर जागता है, उसी दर्द को लेकर सोता है। अन्नदाता, परोपकारी, हिम्मतवाला, मेहनती, खून पसीने की खाने और कमाने वाला ईमानदार और सबसे ज्यादा पुण्य कमाता है। लगभग 80 प्रतिशत आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी व टैक्स भी देता है।  देश का अन्नदाता किसान आर्थिक स्थिति को लगभग 70 प्रतिशत अपने कंधों पर संभाले हुए हैं। देश की लोकप्रियता विदेशों में सबसे ज्यादा अन्नदाता की बदौलत है। किसान का अपमान करना सबसे बड़ा पाप है सत्ता में बैठे किसान नेता किसानों के साथ हमदर्दी दिखाएं। सत्ता की चाशनी में लिपटे हुए किसान नेताओं में यदि जारा भी नैतिकता बची रह गई है तो फौरन इस्तीफा दें और सडक पर हको के लिए बैठे अन्नदाता के साथ खडे हो जाएं। अन्नदाता सभी का जायज हक मांग रहा है।

लेखकः. चौधरी शौकत अली चेची भारतीय किसान यूनियन  (बलराज)  के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष  हैं।