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हथिनी की हत्या होने पर ट्यूटर खुल जाते हैं, बहस छिड़ जाती है मगर हाथरस की असहाय बेटी पर मौन?

 


अच्छे दिन भूल भुलैया की कोठरी में गुम हो गए, बुरे दिनों का पिटारा डायन की तरह के पीछे दौड़ रहा है

 


 


किसानों की आय कैसे डबल हो गई? जुमलेबाजी से किसानों की आय डबल नही हो सकती है

 



चौधरी शौकत अली चेची


इंसान की जान बड़ी कीमती होती है, सबके अपने अरमान होते हैं। कोई चालाकी से मंजिल को छू लेता है कोई विश्वास, भरोसे पर अपनी जिंदगी बर्बाद या दुनिया से चला जाता है। केवल कानून ही हर समस्या का समाधान नहीं है। बशर्ते कानून का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। सहनशीलता, इंसानियत, मान मर्यादा, भारतीय संस्कृति और कानून पांच तत्वों को अगर हम सभी एक साथ लेकर चलें तो इंसाफ होगा, अमन चैन तरक्की देश में होगी। राजनीतिक पार्टियां, सामाजिक संगठन, निजी स्वार्थ को लेकर लोगों को जाति धर्म की चासनी में लपेट कर हवाई वादे कर खुद को ऊंचा कर लेते हैं। भरोसा करने वाला इंसान अपने आप को ठगा महसूस कर ऊपर वाले को दोषी मानता है। किसान, मजदूर, बेसहारा, गरीब देश में लगभग हर तरफ से दुखी है। सत्ता में बैठी सरकार और गोदी मीडिया को अपने गुणगान से फुर्सत नही है। देश की मोदी सरकार ने कई कानूनों को बनाकर  जनता के लिए बर्बादी के दरवाजे खोल दिए हैं। अनजान लोगों और यहां तक की बुद्धिजीवियों को भी गलत कानूनों के फायदे गिनाए जा रहे हैं। बेचारी जनता भोली है और झूठा व फरेबी इंसान देखते ही देखते लोकप्रिय और पावर फूल बन जाता है। भोली भाली जनता वोट देकर हाथ मलते रह जाती है, लेकिन यहां यह सवाल नहीं है कि केवल सत्ता पर काबिज या पावरफुल इंसान को ही दोषी माना जाए। ऊपर वाले ने सब को एक समान बनाया है, दिल, दिमाग, आंख, कान यानी सबको एक जैसी कीमती नियामत दी हैं, सोचने करने और समझने के लिए। लेकिन दिमाग का इस्तेमाल सही से नहीं कर स्वार्थी और गंदी मानसिकता अनजान या बुद्धिहीन इंसान को बर्बादी के कगार पर ले जाकर छोड़ देती है। किसानों की आय दोगुनी करने के तीन फार्मूले समझ में आते हैं। पैदावारी डबल हो जाए, एमएसपी डबल हो जाए या फिर लागत आधी हो जाए। इन तीनों में से कुछ भी संभव नहीं और न ही अभी तक इन तीनों में से कुछ हो पाया है फिर किसानों की आय कैसे डबल हो गई? जुमलेबाजी से किसानों की आय डबल नही हो सकती है। केंद्र ने नोटबंदी, जीएसटी से भी ज्यादा खतरनाक बगैर बहस के तीन कानून किसानों की बर्बादी के पारित कर दिए। नोटबंदी, जीएसटी आदि के गोदी मीडिया सत्ता पक्ष ने खूब फायदे गिनाए, लेकिन सब बर्बाद हो गया। किसानों की फसलों के तीन कानून पास कर समझो किसानों के लिए नरक जैसे दरवाजे खोल दिए। सत्ता पक्ष व गोदी मीडिया की तरफ से ढोल बजाया जा रहा है और ऐतिहासिक बताया जा रहा है। पिछले 6 सालों से बर्बादी के कानूनों को बनाकर ऐतिहासिक ही बताया जा रहा है। देश में अत्याचार, भ्रष्टाचार, बलात्कार, चोरी, डकैती, छिनेती, बेरोजगारी, महंगाई, हत्या, आत्महत्या सब अपने शबाब पर है। सच्चाई को उजागर करने वाले तक कानून के शिकंजे में फंसाए जा रहे हैं। 56 इंची सीने को अपने देशवासियों पर हावी किया जा रहा है। चीन आए दिन गुर्रा रहा है और देश के चौकीदार चीन का नाम लेने तक से कतरा रहे हैं। अपित हमारी सेना चीन के किसी भी हरकत का जवाब देने के लिए सीमा पर पूरी तरह से मुस्तैद है। हमे अपनी सेना पर गर्व है। अच्छे दिन भूल भुलैया की कोठरी में गुम हो गए, बुरे दिनों का पिटारा डायन की तरह  देशवासियों के पीछे दौड़ रहा है। हथिनी की हत्या होने पर ट्यूटर खुल जाते हैं, बहस छिड़ जाती है। हाथरस की असहाय बेटी पर मौन धारण कर लिया जाता है। हाथरस ही नही बल्कि बलरामपुर में भी ऐसी ही घटना ने लोगों को झकझोर दिया। यूपी में राज्यपाल महिला है और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा कौन से पेड़ पर झूल रहा है? समझ में नहीं आता जब किसी पर अत्याचार होता है जाति धर्म के नाम पर झुंड निकल आते हैं। स्मृति ईरानी और मेनका गांधी की आवाज हथिनी की मौत के बाद अब आखिर हाथरस की बेटी के लिए क्यों गुम हो रही है? देशवासियों के मन में यह सवाल बार बार कचोट रहा है? राहुल और प्रियंका हाथरस जाने के लिए यमुना एक्सप्रेस-वे तक आ जाते हैं और पुलिस उन्हें रोक देती है। विपक्ष का धर्म सरकार की नाकामी पर नजर रखना है। यह जिम्मेदारी क्या कांग्रेस के राहुल और प्रियंका गांधी की ही है। उत्तर प्रदेश में तो मुख्य विपक्षी दलों में सपा और बसपा की है। सत्ता सुख भोगने के बाद आखिर बसपा और सपा सुप्रीमों स्वयं यूपी के इस जंगलराज को लेकर क्यों सडक पर उतर नही रहे हैं? इन बातों को हिसाब जनता आने वाले चुनाव में चुकता कर देगी। यह उस वाली बात हुई न कि रोम जल रहा था और नीरो की वीणा बजती ही रही। यूपी में जंगलराज है और लोग लूट रहे हैं और जनता मर रही है सपा और बसपा  सुप्रीमों ट्विटरबाजी तक ही सीमित है। हम सबका भारत महान, कहने से शर्माते हैं? दोषी और निर्दोष को जाति धर्म के चश्मे से देखने वाले स्वार्थी लोग देश में हंगामा मचा देते हैं। जबकि हम सभी को समझना चाहिए हिंदू, मुस्लिम,सिख, ईसाई हम आपस में भाई भाई, जय जवान, जय किसान, हम सबका भारत देश महान। कोई सबका नेता बनकर लूट रहा है और कोई अपने अपने जाति धर्म का झंडा उठाकर लूट रहा है। अनजान, कमजोर बेसहारा, इंसान बड़ी आसानी से लूट रहा है और बर्बाद हो रहा है।  सच्चाई को समझने के लिए इंसानियत को पहचानने के लिए गहरी सोच के समंदर में गोता लगाने की जरूरत है। निर्दोष या अपराधी को जाति धर्म के चश्मे से देखने की जरूरत नहीं। जब तक देश में जाति धर्म की द्वेष भावना रहेगी, इंसाफ किसी को नहीं मिलेगा यह कड़वी सच्चाई है। हम सभी देशवासियों को अपने विचारों को बदलना होगा। प्रधानमंत्री हो या फिर मुख्यमंत्री जनता के चुने हुए नुमाइंदे हैं इनकी सोच इंसाफ व सब के हक में होनी चाहिए। सच और झूठ को परखने की जिम्मेदारी वोटर की होती है। स्वार्थी फायदे के लिए लोग बयान देते हैं उन बयानों पर विचार करना जरूरी है, क्योंकि नेता से ज्यादा जनता दोषी होती है, कुछ ऐसा प्रतीत होता है, इंसाफ मांगना या इंसाफ देना अपराध बन गया है। जनता को समझना होगा कहां हुई चूक और कौन मचा रहा है लूट। कौन डाल रहा है आपस में फूट, सच की पावर कितनी कितना फैला झूठ। हम सभी भारतवासी एक दूसरे को गले लगाएं, गलत को ही गलत कहे इंसाफ व सच्चाई की आवाज दबानी नहीं चाहिए।

लेखकः- चौधरी शौकत अली चेची भारतीय किसान यूनियन ( बलराज  ) के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष  हैं।