आचार्य करणसिह नोएडा
धर्म एवं हतो सन्ति, धर्मो रक्षति रक्षितः। तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो, मानो धर्मो हतो वधीत् ।।मनु•८/१५
भावार्थ- मारा हुआ धर्म मारने वाले को मार देता है और रक्षा किया हुआ धर्म अपने रक्षक की रक्षा करता है। इसीलिए धर्म का हनन नहीं करना चाहिए, ऐसा न हो की हनन किया हुआ धर्म हमें नष्ट कर दे।
विशेष- 'धर्म'का अर्थ गुण होता है। अर्थात् उन मानवीय गुणों को कर्तव्यो को समय पर निष्ठावान होकर करते रहना ही 'धर्म' कहलाता है। आज जो धर्म का स्वरूप देखने आ रहा है। वह धर्म नहीं है? जैसे-यदि विद्यार्थी ब्रह्मचर्य काल में अपने विद्या प्राप्ति पालन करने वाले धर्म को नहीं करता है। वह गृहस्थ में अनेक कष्ट उठाता है, और उसका आश्रम ठीक से नहीं चल पाता। इसीलिए धर्म का नाम अनुशासित और व्यवहारिक जीवन से है।धर्म बहुत ही बृहद् है