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श्री धार्मिक रामलीला मंचन सेक्टर पाई-1:--- दशरथ मरण, राम केवट संवाद, राम भरत मिलाप और पंचवटी गमन तक की लीला का मंचन

Vision Live/Greater Noida 
 श्री धार्मिक रामलीला कमेटी के तत्वाधान में गोस्वामी सुशील जी महाराज के दिशा निर्देशन में रामलीला का मंचन राजस्थान के सर्वश्रेष्ठ कलाकारों द्वारा किया जा रहा है । रामलीला मैदान ऐच्छर पाई सेक्टर में दिनाँक 08 अक्टूबर-2024 के मंचन में मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथियों के रूप में रमेश बिधुरी जी (सह प्रभारी उत्तर प्रदेश भाजपा एव पूर्व सांसद दक्षिणी दिल्ली लोकसभा), उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व परिवहन मंत्री अशोक कटारिया ,बिजेंद्र भाटी  पूर्व अध्यक्ष ज़िला पंचायत,के०पी० कसाना समाजसेवी,सविन्द्र भाटी   समाजसेवी आदि ने आकर शिरकत की। श्री धार्मिक रामलीला कमेटी की ओर से इन अतिथिगणों का पटका, पगड़ी बहाना कर तथा स्मृति चिन्ह बैठकर स्वागत किया गया। श्री  धार्मिक रामलीला कमेटी के अध्यक्ष आनंद भाटी ने बताया कि मंचन का प्रारंभ गणेश पूजन के साथ शुरू हुआ।  लीलाओं में प्रभु श्री राम वनवास के लिए जब वन में प्रस्थान कर रहे होते हैं तब सर्वप्रथम निषाद राज रास्ते में मिलते हैं, पहले तो निषाद राज समझते हैं कि किसी राजा का उनके राज्य में आक्रमण हो गया है लेकिन जल्दी ही समझ में आ जाता है कि नहीं प्रभु श्री राम 14 वर्ष का वनवास काटने के लिए वन में उपस्थित हुए हैं। निषाद राज उनसे मुलाकात करके उनका स्वागत करते हैं और प्रभु श्री राम से आग्रह करते हैं कि मेरा राज्य तो वन में ही है आप 14 वर्षों तक एक राजा की तरह मेरा राज्य संचालित करें। प्रभु श्री राम ने निषाद राज को एक मित्र के रूप में स्वीकार कर पूरे विश्व को यह संदेश देना चाहते हैं कि जाति-पाति के भेद से ऊपर उठकर मानवता सर्वोपरी है, सभी सम्मान के पात्र हैं। तत्पश्चात निषाद राज के साथ प्रभु श्री राम वनवास के लिए आगे प्रस्थान करते हैं आगे बढ़ने पर विशाल गंगा नदी पार करने के लिए एक केवट की आवश्यकता होती है जब केवट मिलता है तो वह प्रभु श्री राम के सामने कुछ शर्त रख देता है कि पहले मैं आपके चरण धो लूंगा उसके बाद ही आपको नाव में बैठने दूंगा क्योंकि मेरी जीविका इस नाव से ही चलती है और कहीं आपके पैर लगने से मेरी नाव भी उस पत्थर की तरह स्त्री बन गई तब मेरी जीविका कैसे चलेगी परंतु इस कहानी के पीछे भी एक कहानी है कहते हैं जब भगवान विष्णु एक बार क्षीर सागर में सो रहे थे तो एक कछुआ उनके पैर छूने के लिए उनकी तरफ बार-बार शेषनाग के ऊपर चढ़ता था और माता लक्ष्मी उसे नीचे गिरा देती थी और वही कछुआ इस युग में उस केवट के रूप में जन्म लिया था। इसीलिए इस प्रकार की वह शर्त रख रहा था प्रभु श्री राम ने वह सर्त मान ली। केवट ने प्रभु श्री राम के पैर धुल कर पूरे घर में छिड़काव किया उस चरणामृत को खुद भी और पूरे परिवार को ग्रहण कराया तत्पश्चात प्रभु श्री राम को नदी पार के लिए दूसरी तरफ पहुंचा दिया । माता सीता अपने कंगन उतार नदी पार कराई के रूप में प्रदान करने लगी प्रभु श्री राम के आग्रह करने पर केवट ने कहा कि प्रभु मैं तो यहां पर एक नदी पार करा रहा हूं मुझे यहां पर कोई उतराई नहीं चाहिए मुझे तो जब भवसागर में पार करना हो तो इसके बदले में मुझे वहां पर पार करा देना। तत्पश्चात प्रभु श्री राम माता सीता और भैया लक्ष्मण चित्रकूट में पहुंचकर अपने लिए एक उचित स्थान सुनिश्चित कर समय व्यतीत करने लगते हैं। इधर अयोध्या में प्रभु श्री राम के बिरह में महाराज दशरथ ने अपना प्राण त्याग दिया उनके अंतिम संस्कार के लिए भैया भारत को ननिहाल से अयोध्या बुलाया गया । राजमहल में आते ही भैया भरत ने आजीवन कैकई को माता के रूप में अस्वीकार कर दिया और पिता के अंतिम संस्कार के बाद अपने कुलगुरु वशिष्ठ जी के परामर्श से वन में जाकर प्रभु श्री राम का राज्य उनको वापस देने की बात जताई। पूरी अयोध्या वासियों के साथ सभी माताओं के साथ चित्रकूट की तरफ प्रस्थान हुआ। चित्रकूट में जब इतनी भारी संख्या में लोगों को आते भैया लक्ष्मण ने देखा तो उनको लगा कि अभी राज्य पाने भर से भरत भैया का मन नहीं भरा है वह प्रभु श्री राम को हानि पहुंचाने के उद्देश्य से चित्रकूट की तरफ आ रहे हैं, प्रभु श्री राम के समझाने पर उन्होंने अपना शास्त्र रख इंतजार किया। सामने भैया भरत और भैया शत्रुघ्न, तीनों माताओं के साथ प्रभु श्री राम के सामने उपस्थित हुए दूसरी तरफ से महाराज जनक भी चित्रकूट में आ गये। प्रभु श्री राम ने कहा कि अगर हमारे पिता ने वचन के लिए ही अपने प्राण त्यागे हैं, तो उस वचन को त्याग करके वापस वह जाकर अयोध्या का राज्य कैसे कर सकते हैं। सभी लोगों से बातचीत के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि अगर प्रभु श्री राम ने वचन दिया है तो उन्हें पालन करना चाहिए। तब भैया भारत प्रभु श्री राम का खड़ाऊ उनके प्रतिक के रूप में उनसे मांग कर उसे अपने शीश पर रखकर अयोध्या वापस चले गए और उनके खड़ाऊ को ही सिंहासन पर विराजित कर उनके संरक्षण में प्रभु श्री राम का राज्य का कार्य भार स्वीकार किया। प्रभु श्री राम ने निर्णय लिया कि चित्रकूट पास में होने के कारण अयोध्यावासी बार-बार मिलने की कोशिश करेंगे जिससे वनवास का कार्य अवरुद्ध होता रहेगा। अतः चित्रकूट से प्रस्थान कर लेना चाहिए फिर अनेक ऋषियों से मिलते जुलते और अनेक दैत्यों का वध करते हुए प्रभु श्री राम पंचवटी पहुंचे। उचित स्थान देखकर के वहां पर अपनी कुटिया का निर्माण किया और वनवास के कार्य और समय एक बनवासी के रूप में व्यतीत करने लगे।
श्री धार्मिक रामलीला कमेटी के अध्यक्ष  आनंद भाटी यह भी बताया ने कि प्रभु श्री राम ने अपने वनवास को वनवासियों का जीवन भय मुक्त बनाने में लगाया और यह पूरे विश्व को एक संदेश दिया की स्थिति चाहे कुछ भी हो आप अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सकते हैं। आप जिस भी स्थिति में हैं समाज की सेवा कर सकते हैं। इन अद्भुत और पावन लीलाओं का सभी क्षेत्रवासियों ने आज आनंद लिया और अपने जीवन को धन्य बनाया।
इस अवसर पर संस्था के संस्थापक गोश्वामी सुशील जी महाराज, राजकुमार नागर,पंडित प्रदीप शर्मा, शेर सिंह भाटी, संरक्षक हरवीर मावी,नरेश गुप्ता,सुशील नागर, बालकिशन सफीपुर,सतीश भाटी, यशपाल भाटी,अध्यक्ष आनन्द भाटी,महासचिव ममता तिवारी,कोषाध्यक्ष अजय नागर, मिडिया प्रभारी धीरेंद्र भाटी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष महेश शर्मा बदौली, सुभाष भाटी, उमेश गौतम, पवन नागर, विजय अग्रवाल, रोशनी सिंह, चैनपाल प्रधान, मनोज गुप्ता,  प्रवीण भाटी, सत्यवीर सिंह मुखिया, सुनील बंसल, जितेंद्र भाटी, फिरे प्रधान, पीपी शर्मा, रकम सिंह, योगेंद्र नागर, अतुल आनंद, जयदीप सिंह, वीरपाल मावी, दिनेश गुप्ता, विमलेश रावल, मयंक चंदेल, यशपाल नागर, गीता सागर, ज्योति सिंह आदि पदाधिकारीगण मौजूद रहे।