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पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन की खुशी व गम में बारावफात या ईद मिलाद- उन -नबी

चौधरी शौकत अली चेची
ईद ए मिलाद-उन-नबी या मिलादुन्नबी या 12 वफात पवित्र त्यौहार मनाने का मुख्य उद्देश्य  बुद्धिजीवियों द्वारा अलग अलग ढंग से दर्शाया है। प्रस्तुत कुछ अंश इस प्रकार हैं।
 हिजरी कैलेंडर 1446 उर्दू कैलेंडर रबी उल  अव्वल महीने की 1 तारीख तीसरा महीना कहा जाता है। 4 सितंबर 2024  को उर्दू कैलेंडर 01/03/1446 रबी उल अव्वल महीने का 4 सितंबर को चांद देखा गया है। अलबत्ता 12 रबी उल अव्वल 16 सितंबर दिन (सोमवार) को भारत में मिलादुन्नबी पवित्र त्यौहार मनाया जाएगा।
पैगंबर मोहम्मद का जन्म अरब के रेगिस्तान के शहर मक्का में 570 ईस्वी में हुआ था। 8 जून 632 ई 62 की उम्र मैं मदीना सऊदी अरब से दुनिया को अलविदा कह गए, इस्लाम के अनुसार जन्म और इंतकाल 8 जून को हुआ ।
 मान्यताओं के अनुसार मोहम्मद साहब से पहले भी एक धर्म था ।बताया जाता है पहले आदम ,इब्राहिम, मूसा ,ईशा आदि 7वीं सदी से पैगंबर प्रचारक रहे है।
  पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्म से पहले ही आपके वालिद  अब्दुल्लाह का इंतकाल हो गया । वालिदा बीबी आमिनाह भी पैगंबर की 6 वर्ष उम्र होने पर इंतकाल कर गई। मोहम्मद साहब अपने  चाचा अबू तालिब और अबू तालिब की पत्नी फातिमा बिंत असद व दादा अबू मुतालिब के साथ रहने लगे।
पैगंबर मोहम्मद साहब घर का काम करते थे तथा भेड़ बकरियां चराते और दूध, घी ,खाना ,पीना पसंद था दो वक्त खाना खाते खाने में एक ही सब्जी लेते थे । तालीम के लिए बाहर जाते थे। मूर्ति व चित्र पूजा के खिलाफ थे, इसीलिए उनकी तस्वीर नहीं मिलती। इस्लाम में मूर्ति पूजा नहीं की जाती। आपने बताया आपकी तस्वीर जो बनाएगा अल्लाह ताला उसे सजा देगा। हजरत मोहम्मद साहब आखरी पैगंबर हैं।
मोहम्मद इस्लामिक पैगंबर अरबी सुलेख में मोहम्मद का नाम जन्म मोहम्मद अब्दुल्लाह अल हाशिम 570 मक्का शहर मक्का प्रदेश अरब मदीना एजाज सऊदी अरब, इंतकाल का कारण बुखार स्मारक मस्जिद ए नबी मदीना एजाज सऊदी अरब अन्य नाम मुस्तफा हेमंत हामिद मोहम्मद के नाम प्रसिद्ध हैं।  610वी सदी में रहस्योद्घाटनो प्रचार किया और ऐलान किया सबका मालिक एक है, इस्लाम के अन्य भविष्य वक्ताओं के समान खुदा के पैगंबर और दूत हैं।
 मदीना में मोहम्मद साहब ने मदीना के संविधान के तहत जनजातियों को एकजुट किया।
 632 में विदाई  यात्रा से लौटने के कुछ महीने बाद 12 दिन तक आप बीमार पड़ गए और  दुनिया से विदा हो गए। मोहम्मद सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने दुनिया से जाने तक  कुरान की सूरतो का निर्माण किया। मुसलमानों द्वारा शब्द अल्लाह का वचन के रूप में माना जाता है और जिसके आसपास धर्म आधारित है। कुरान के अलावा हदीस और शिरा जीवनी साहित्य में पाए गए । मोहम्मद साहब की शिक्षाओं और प्रथाओं( सुन्नत )को भी इस्लामी कानून के सोत्रों के रूप में उपयोग किया जाता है।
 पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन की खुशी व गम  में शिया  और सुन्नी दुनिया में इस्लाम के मानने वाले त्योहार के रूप में मनाते है ।  रात मे  मिलाद शरीफ होता है ,मन्नत इबादत करने वालों के लिए जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं, ऐसा माना जाता है।  जुलूस निकाले जाते हैं । 12 वफात या ईद ए मिलाद या मिलादुन्नबी के नाम से इस्लाम धर्म के प्रमुख पवित्र त्योहारों में से एक है।
 हजरत मोहम्मद साहब . कुरान के मुताबिक, हिरा नाम का पर्वत एक रात जब वह पर्वत की एक गुफा में इबादत कर रहे थे पैगंबर की उम्र 40 वर्ष थी तो फरिश्ते जिब्राइल आए और उन्हें कुरान की शिक्षा दी कुरान धरती पर नाजिल हो गया अल्लाह के संदेश को मोहम्मद साहब ने दुनिया में फैलाया। पैगंबर का विश्वास था कि अल्लाह ने उन्हें अपना संदेशवाहक चुना है।
. सन् 622 में मोहम्मद को अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना कूच कर गए उनके इस सफर को हिजरत कहा गया हिजरी कैलेंडर की नीव यहीं से रखी गई। पैगंबर मुहम्मद  साहब के मुरीद बड़ी संख्या में हो गए। उन्होंने मक्का लौटकर विजय हासिल की।  मक्का में स्थित काबा को इस्लाम का पवित्र स्थल घोषित कर दिया और काबा मस्जिद के इमाम की जिम्मेदारी संभाली, तब तक पूरा अरब इस्लाम कबूल कर चुका था।

लेखक:- चौधरी शौकत अली चेची,राष्ट्रीय उपाध्यक्ष,भाकियू (अंबावता) एवं  पिछड़ा वर्ग उ0 प्र0 सचिव (सपा) है।