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मुस्लिम समाज के नेताओं की सुनने वाला क्या सपा मेंं कोई है?

 

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चौधरी शौकत अली चेची

--------------------------------- बसपा सुप्रीमो के गृह जनपद  गौतम बुध नगर लोक सभा के गलीहारो में धूल फांकती मुस्लिम राजनीतिक लीडरशिप। जबकि संपन्नता से लेकर दीनी तालीम सामाजिक क्षेत्र बिजनेसमैन एडवोकेट पत्रकारिता शिक्षा चिकित्सा इंजीनियरिंग आदि जिसमें जिला जज पुलिस कप्तान की पोस्टिंग प्राइवेट सेक्टर तथा सरकारी उच्च पदों पर सुशोभित होकर जिले में छोटी बड़ी उपलब्धियां से विशेष पहचान बनाकर अच्छा संदेश लोगों के बीच पहुंचाया है समझना बड़ा मुश्किल है गौतमबुद्धनगर में अच्छी खासी जनसंख्या मुस्लिमों की होने के अनुसार राजनीतिक पहचान नहीं बन पा रही क्या राजनीतिक पार्टियां बढ़ावा नहीं दे रही या मुस्लिम चेहरे अपनी जिम्मेदारी निभाने से पीछे हट रहे है? इस समय लगभग गौतमबुद्धनगर लोक सभा में 24 लाख वोटर बताए जाते हैं। लगभग 525000 मुस्लिम वोटर इनमें बताएं जा रहे हैं। दादरी  विधानसभा पर लगभग 570000 वोटर हैं, इन्हीं में से लगभग 100000 मुस्लिम वोटर हैं। गौतमबुद्धनगर की मुस्लिम राजनीति की बात करें तो मुस्लिमों को हर पार्टी इग्नोर कर देती है लेकिन समझना यह भी होगा पीस पार्टी, एमआईएम पार्टी और कांग्रेस पार्टी में मुस्लिम चेहरे को जिलाध्यक्ष बनाया था, बाकी किसी भी पार्टी में मुस्लिम को जिलाध्यक्ष या चुनाव मैदान में नहीं उतारा। प्रदेश राष्ट्रीय स्तर पर कोई सम्मानित जिम्मेदारी नहीं दी या मंत्री पद का कार्यभार नहीं सौंपा। कुछ बुद्धिजीवी लोग यह भी मानते हैं मुस्लिम राजनीति में बढ़.चढ़कर हिस्सा नहीं लेता इस बात के कई मायने हो सकते हैं जबकि कई सारे चेहरों ने राजनीति में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है छोटे बड़े चुनाव लड़ने की प्रोग्रेस की  अनेक संगठनों में मुख्य भूमिका भी निभा रहे हैं।  लेकिन राजनीतिक पार्टियों ने मुस्लिमों को शायद इग्नोर कर  गैर मुस्लिम दर्जनों चेहरों को पार्टियों ने उचित सम्मान दिया। यही नहीं बाहरी चेहरों को भी चुनाव लड़ा कर उचित सम्मान दिया और मौका देख कर सम्मान देने वाली पार्टियों को ठोकर मार कर दूसरी पार्टियों में शामिल होते चले रहे हैं। 1992 में बनी समाजवादी पार्टी से मुस्लिमों का विशेष लगाव आज भी बरकरार है। प्रदेश के अलग.अलग जिलों में समाजवादी पार्टी में मुस्लिमों ने अपनी मुख्य भूमिका और पहचान बनाई लेकिन गौतमबुद्धनगर में समाजवादी पार्टी को कामयाबी अभी तक नहीं मिली। क्या इसका कारण यह भी हो सकता है कि यहां हाईकमान द्वारा मुस्लिमों को दरकिनार किया गया जिसकी वजह से समाजवादी पार्टी यहां से सफलता नहीं हासिल कर सकी है हर किसी भी क्षेत्र में जागरूकता के आधार पर मुस्लिम आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है अच्छी खासी संख्या होने के अनुसार राजनीति में पीछे हटता दिखाई दे रहा है जबकि कम संख्या वाले नेता बनकर उभर रहे हैं मुस्लिमों पर समाजवादी पार्टी का वोटर सपोर्टर होने का तमगा शायद आगे नहीं बढ़ने दे रहा। सामाजिक राजनीतिक बुद्धिजीवियों को इस पर भी विचार करना पड़ेगा। लीडरशिप को समझने के लिए बिसाडा कांड दादरी दतावली, दनकौर अच्छेजा, कादलपुर, रबूपुरा सामाजिक धार्मिक आदि घटनाओं को मुस्लिमों ने गहराई से महसूस किया है, लेकिन राजनीतिक नेता और पार्टियों से खोखले वादे आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला। इसी कारण मुस्लिम कम्युनिटी के लोग कुछ चेहरों को राजनीति में बढ़ाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। कुछ राजनीतिक लोकल लीडरशिप बढ़ावा देने की बजाय बैकफुट पर धकेलने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे हाईकमान में बैठे राजनीतिक पार्टी के लोग मुस्लिमों को इग्नोर कर देते हैं। सपा सुप्रीमांं अखिलेश यादव चुनावों के बाद गौतमबुद्धनगर में एक निजी कार्यक्रम में आते हैं वहां कई कार्यकता पहुंचे। आपाधापी हुई और कई ऐसे कार्यकर्ता रहे जो अखिलेश यादव तक स्वागत करने के लिए नही पहुंच पाएं। जब कि कुछ ऐसे कार्यकर्ता रहे जिन्होंने अखिलेश यादव के साथ खूब फोटो खिचाई। ऐसे कार्यकर्ता जो वहां तक नही पहुंच पाए दूसरे कार्यकर्ताओं को खूब गर्राया रहे हैं और साथ ही सोशल मीडिया पर भी मन की भडास निकाली जा रही है। मुस्लिम समाज के इन नेताओं की सुनने वाला क्या सपा मेंं कोई है?