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मोदी शासन में हिंदू खतरे में हो गया, जबकि 90% पावरफुल संस्थाओं पर हिंदू ही है, विराजमान

 

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चौधरी शौकत अली चेची

800 साल भारत पर मुगलों ने शासन किया देश को नहीं लूटा 200 साल अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया देश को लूटा। इस आजादी के बाद 67 साल अन्य पार्टियों ने शासन किया हिंदू कभी खतरे में नहीं रहा फिल्मी स्टोरी तथा सीरियल नाटक सभी मैं 50 प्रतिशत झूठ दिखाया जाता है इनमें कुछ गलत शॉट डाल दिए जाते हैं जो शराब के नशे की तरह और जहर जैसे  होते हैं, जिनसे सामाजिक ताना-बाना बिगड़ता है तथा औलाद मां बाप की जिंदगी नरक बना देती है।

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 समझना यह भी है मां-बाप गलत हो सकते हैं औलाद के लिए।  मां बाप सबसे बड़ी उपलब्धि और ताकत है, मां बाप के एहसानों का बदला औलाद जिंदगी में नहीं चुका सकती अंत जिनको अपने घर परिवार के इतिहास के बारे में जानकारी नहीं होती वह लोग निजी स्वार्थ में हजार साल पुराने इतिहास को गलत तरीके से लोगों के सामने परिवर्तित करते हैं, किसी भी पवित्र धर्म ग्रंथ में नहीं लिखा झूठ गुमराह नफरत बांटों।   8 साल मोदी शासन में हिंदू खतरे में हो गया, जबकि 90% पावरफुल संस्थाओं पर हिंदू ही विराजमान है।   सबसे बड़ा सवाल यह है कि  मुसलमान कब खतरे में था या है या कब खतरे में होगा ऐसा प्रतीत होता है असल सच्चाई  को छुपाने के लिए और सत्ता को बचाने के लिए हिंदू को खतरे में बताया जा रहा है।  26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ संसदीय रूप के साथ एक संप्रभुता शाली समाजवादी लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत देश सामने आया भारतीय तिरंगे का संदेश केसरिया रंग हिंदुओं का प्रतीक, हरा रंग  मुस्लिमों का प्रतीक,  सफेद रंग  अन्य सभी धर्मों का प्रतीक, अशोक चक्र चौबीस तीलियां 24 गुणों का संदेश (आत्मरक्षा शांति समृद्धि) (सदैव विकास के लिए अग्रसर) शहीदों के निस्वार्थ संघर्ष जिन्होंने विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध अनेकों लड़ाइयां जीती अपना जीवन बलिदान कर दिया।  हमारे सभी जाति धर्म के पूर्वजों ने  देश आजादी में अपना बलिदान दिया  नारी शक्ति ने भी  बलिदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।   दिलचस्प बात यह है  (इंकलाब जिंदाबाद )का नारा मौलाना  हसरत मोहानी ने लिखा जिसका अर्थ (पूर्ण आजादी )विशेष रुप से =अशफाक उल्ला खा, सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद को इस नारे ने प्रेरित किया।  सुरैया तैयब ने  तिरंगा का रूप दिया।  सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा = जय हिंद = सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है = साइमन वापस जाओ =अंग्रेजों भारत छोड़ो आदि नारे  मुस्लिम पूर्वजों ने लिखें व दिए।   देश की आजादी में मुसलमानों का मुख्य योगदान रहा  जिसमें उलेमा मौलाना ने अपने प्राणों की आहुति दी, देश के लिए कुर्बान हो गए की  अंग्रेजों ने सबसे ज्यादा मुसलमानों को ही फांसी के फंदे पर लटकाया। 1935 एक्ट  को हटाकर  भारतीय संविधान लागू कर दिया। 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति सुक्रणों इंडोनेशिया को मुख्य अतिथि आमंत्रित किया।  9 दिसंबर 1946 से शुरू किया, 26 नवंबर 1949 तक संविधान बनकर तैयार हुआ, जिसमें 2 साल 11 माह 18 दिन लगे।  संविधान निर्माण में 6396795 रुपए खर्च हुआ। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद थे, संविधान निर्माण में 114 दिन बैठक हुई।  बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की आजादी थी।  संविधान निर्माण में मुख्य रचेता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर थे उन्हें संविधान निर्माण का पिता भी कहा जाता है। (संविधान निर्माण में 22 समितियां थी/ 395  अनुच्छेद थे )भारतीय संविधान हाथ से हिंदी व अंग्रेजी में लिखा गया जिनकी मूल प्रतियां संसद भवन में सुरक्षित हैं।  संविधान सभा के सदस्यों का विभाजन सांप्रदायिक आधार पर किया गया, जिनके लगभग सदस्य  (सामान्य वर्ग से 213 )( मुस्लिम वर्ग से 79)( सीख वर्ग से 4)( अनुसूचित जनजाति वर्ग से 33 )(महिलाएं 12) संविधान सभा के मुख्य सदस्य /डॉक्टर भीमराव अंबेडकर पंडित जवाहरलाल नेहरू डॉ राजेंद्र प्रसाद सरदार बल्लभ भाई पटेल मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि। समझना जरुरी होता है कई  पार्टियों ने आजादी के बाद केंद्र में शासन किया 67 वर्ष में लगभग 55 लाख करोड़ देश पर कर्ज हुआ। मोदी शासन में बैंक  से कर्ज लिया 74 लाख करोड़।  इस समय देश पर लगभग कर्ज 129 लाख करोड कर्ज हो गया।  पाकिस्तान और चीन से इतना खतरा नजर नहीं आ रहा जितना देश के अंदर जाति धर्म विशेष की नफरत को मजबूत किया जा रहा है। बड़े-बड़े नेताओं के बच्चों को कभी जनता के बीच लड़ते हुए नहीं देखा।  अगर किसी बड़े नेता के लड़के ने या नेता ने अपराध किया, तो उसका कानून कुछ नहीं बिगाड़ सका। भारत के प्रधानमंत्री पर 24 घंटे में लगभग 164 लाख रुपए खर्च हो जाते हैं, प्रदेश के एक मुख्यमंत्री पर  हर 24 घंटे में लगभग 5 लाख खर्च हो जाते हैं। जनता टैक्स जीएसटी वेट स्टांप ब्याज आदि से सरकारी खजाने मैं देती है।  देश की सभी जनता सरकारी खजाना भरने में अपना रोल निभाती है, लेकिन सत्ता और पावर में बैठे लोग कानूनी दांवपेच में सरकारी खजाना लूट कर मालामाल हो कर ऐसो आराम की जिंदगी जी रहे हैं। 80% बूचड़खाने  गैर मुस्लिमों के बताए जाते हैं जो मुस्लिमों के नाम से चलाए जा रहे हैं, देश में मुस्लिमों की जनसंख्या 14% बताई जाती है, शिक्षा चिकित्सा मैं बड़े इस पर घपला हो रहा है।  जागरुकता अमन चैन तरक्की भाईचारा समानता पूरी तरह से ध्वस्त तो चुका है। भारत की जनसंख्या तकरीबन 140 करोड़ क्षेत्रफल 3287 263 वर्ग किलोमीटर जनसंख्या घनत्व 426 आदमी प्रति वर्ग किलोमीटर जीडीपी 199.1 लाख करोड़ रुपए कुल कर्ज 128. 41  लाख करोड़ रुपए 2021 तक का आंकड़ा है 46.4 लाख करोड रुपए विदेशी कर्ज है इसके अतिरिक्त 82 लाख करोड़ बाजार से लिया प्रति व्यक्ति आय 2113 डॉलर जो श्रीलंका से भी कम है।  श्रीलंका पर जीडीपी का 111.4% कर्ज है और भारत अपनी जीडीपी का 90.6% कर्ज है भारत की आबादी श्रीलंका से 64 गुना बड़ी है तो देश की जीडीपी सिर्फ 32 गुना बड़ी है तो समझना आसान है भारत में प्रति व्यक्ति कर्ज श्रीलंका से अधिक है इसीलिए भारत श्रीलंका से अधिक दयनीय स्थिति में है।  श्रीलंका से विदेशी पूंजी एकाएक भागने लगी थी उसी तरह भारत से भी विदेशी पूंजी भाग रही है एन आर आई तेजी से अपना धन निकाल रहे हैं नोटबंदी और जीएसटी के बाद से लगभग देश मैं 260 लाख कंपनियां बंद हो गई विदेशी कंपनियां लाखों की तादात में भारत से पलायन कर गई। भारत की प्रस्तुति वादी मीडिया बहाना बनाकर कारण बता रही है श्रीलंका की बर्बादी कारण  कि चीन ने श्रीलंका को फंसा दिया मगर  श्रीलंका ने बाजार से 47%  कर्ज लिया जिसमें एशियन डेवलपमेंट बैंक से 13% वर्ल्ड बैंक से 10% जापान बैंक से 10% भारत से 2% अन्य सूत्रों से 3% चीन से 15% कर्ज लिया चीन को छोड़कर सब ने भारी-भरकम सूट और कठिन शर्तों पर कर्ज दिया चीन मामूली शर्त पर शोध विहीन कर्ज देता है।  
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चीन के कर्ज से श्रीलंका बर्बाद नहीं हुआ श्रीलंका के ट्रेजरी सेक्रेटरी महिंद्रा श्रीवर्धन ने खुद ही खुलासा किया है कि आईएमएफ से बेलआउट पैकेज न मिलने से श्रीलंका कर्ज की किश्त नहीं अदा कर पा रहा दिवालिया घोषित हो गया।  पूंजीवादी व्यवस्था रोजगार देने में सक्षम होती तो यह मंदी की समस्या नहीं आती क्योंकि रोजगार दे नहीं पाते इसलिए जनता की क्रिया शक्ति नहीं बढ़ पाती जनता खरीदारी नहीं कर पाती जिससे बाजार में माल खचाखच भर जाता है तब जनता की कैरियर शक्ति बढ़ाने के लिए कर्ज देते हैं और विदेशों से भी कर लेते हैं जिससे बाजार तो चल निकलता है मगर कर्ज और सूदखोरी से जनता और अधिक परेशानी मैं हो जाती है फिर बाजार ठंडा होने लगता है तब सरकारें घाटे का बजट बनाती हैं और बजट घाटे को पूरा करने के लिए अतिरिक्त नोट छपती है मगर नोट छापने से मुद्रा स्फीति बढ़ जाती है जिससे महंगाई बढ़ जाती है सरकारें महंगाई पर कोई नियंत्रण नहीं कर पाती कमजोर देश की सरकारें विदेशी कर्जा लेकर और अमेरिका जैसे मजबूत देशों की सरकारें कमजोर देशों को लूट कर मुफ्त की योजनाएं चलाती हैं।  मुफ्त की योजनाओं से जनता को थोड़ी सांस लेने की फुर्सत मिल जाती है मगर महंगाई उनका गला घोटने लगती है।  मंदी के संकट के दौरान बड़े पूंजीपति लोग बैंकों का दिवाला  कर बैठ जाते हैं विदेशी कर्ज की किस्त अदा नहीं हो पाती घरेलू कर्ज की किश्त भी अदा नहीं हो पाती तो बैंक डूबने लगते हैं तब किसान मजदूर मझोले व्यापारी आदि के कर्ज माफी के नाम पर सरकारी खजाने से बैंकों को भरा जाता है मगर इससे भी ज्यादा समय तक राहत नहीं मिल पाती तब बैंकों को बेलआउट पैकेज दिया जाता है जब कोई जरिया नहीं बचता तब सरकारी संस्थाओं को बेचना पड़ता है इससे भी पूरी समस्या हल नहीं हो पाती नोटबंदी भी करनी पड़ती है और अन्य तरह के कानूनों को लागू किया जाता है।  सरकारें सबको योग्यता अनुसार काम और काम के अनुसार दाम देती है तो निश्चित तौर पर ऐसे संकट आ ही नहीं सकते मगर मौजूदा पूंजीवादी साम्राज्यवाद और अर्थ सामंतवादी व्यवस्था से ऐसी ही उम्मीद करना आसमान के तारे तोड़ने की उम्मीद करने जैसा है।  सम्मानजनक सुरक्षित रोजगार देना मौजूदा व्यवस्था के बस की बात नहीं है देश की बर्बादी तो मौजूदा व्यवस्था में हो रही है जघन्य शोषण के कारण कहा जा रहा है कि फ्री की योजनाओं के कारण हैं इस प्रकार बड़े पूंजीपतियों अर्थ सामंतों और विदेशी साम्राज्य वादियों के  कर्मों का सहारा 80 करोड़ भूमिहीन व गरीब किसान गरीब मजदूर व गरीब बुनकरों पर घड़ा  जा रहा है।  ऐसा करके वे कल्याणकारी राज्यों के नाम पर मिलने वाली थोड़ी रियायत को खत्म करना चाहते हैं मतलब साफ है वे चाहते हैं कि भारत में राशन कोटे पर राशन वृद्धावस्था विकलांग पेंशन अस्पताल में फ्री दवाई आदि योजनाएं बंद कर दी जाएं जबकि मौजूदा सरकार 40 लाख करोड़ के बजट में से एक कल्याणकारी योजनाओं पर बमुश्किल 300000 करोड रुपए खर्च करती है जबकि इसका 3 गुना से ज्यादा मुट्ठी भर पूंजी पतियों को लुटा दिया जाता है जबकि कल्याणकारी योजनाएं डूबते को तिनके का सहारा बनी हुई है इसी की वजह से बाजार की थोड़ी मोड़ी रौनक बनी हुई है।

लेखकः. चौधरी शौकत अली चेची भारतीय किसान यूनियन( बलराज) के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष  हैं।