विचार मंथन
प0 महेंद्र कुमार आर्य
हम सब अपने जीवन के अमूल्य समय को यूं ही गुजार देते हैं। हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है और हम करते क्या है? इस पर विचार करना आवश्यक है। इसके लिए यहां पर अमूल्य ग्रंथों से प्रतिदिन काम आने वाली बातों पर महत्वपूर्ण विचार उद्धृत किए गए हैं। यह अमूल्य विचार सभी को किसी न किसी रूप में प्रेरित करते हैं।
2ः-अतिथि सत्कार से मना करना सबसे बड़ी गरीबी है।
3ः- अगर जिन्दा रहना है तो साहस के साथ जियो, खतरों से दूर भागने की बजाए डटकर उनका मुकाबला करो, जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है।
4ः-अपने अभावों के साथ संघर्ष करने का नाम ही जीवन है। 5ः-अगर आपके पास सच्ची लगन है तो सफलता स्वंय आपके पांव चूमेगी।
6ः-आपके पास कुछ सिद्धांत हैं तो उन पर दृढ़ रहिए कभी न कभी आपकी बात जरूर सुनी जाएगी।
7ः-अपने समय का एक एक क्षण अमूल्य समझकर उसका सदुपयोग करें।
8ः-अमने अमीर दोस्त के यहां बुलाने पर जाओ,गरीब के घर बिना बुलाए जाओ।
9ः- अन्न का दाता सदा सुखी।
10ः-अलग बूंदे नष्ट हो जाती है, किन्तु उनके मेल पर समुद्र बन जाता है।
11ः-अगर तुम किसी बार.बार आने वाले दुष्ट से पिण्ड छुड़ाना चाहते हो तो उसे कुछ पैसे मार दे दो।
12ः-अगर तुझे मुक्ति की इच्छा है तो विषयों को विष के समान त्याग दे तथा क्षमा, सरलता,दया, पवित्रता और सत्य को अमृत के समान ग्रहण करें।
14ः-अहो। यही नहीं जानता कि में क्या हूं?
15ः-अपवित्र है, वह मनुष्य नो असत्य भाषण करता है। ष्
16ः-अज्ञानी जन डूब जाते हैं।
17ः-अप्रियता के डर गे सच नहीं कहना कायरता है।
18ः-अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए। 19ः-अपनी खूबियों को खुद जाहिर करने वाला नादान है। 20ः-अमीरी धन से नही दिल से होती है।
21ः- अपनी स्त्री, भोजन और धन इन तीनों से संतोष करना चाहिए। दान,तप और अध्ययन इन तीनों से संतोष नहीं करना चाहिए।
22ः- अनुभव सिखाने के लिए विपत्ति से बड़ा विद्यालय आज तक नहीं खुल सका।
23ः- अहंकार का हमें इतना ही लाभ होता है कि अपनी कमियों को छिपा लेते हैं।
24ः-अगर किसी फकीर के पास एक रोटी होती है तो वह आधी आप खाता है और आधी किसी गरीब को दे देता है, लेकिन यदि किसी राजा के पास एक राज्य होता है तो वह एक और राज्य चाहता है।
26ः-अमर होने के लिए जरूरी है कि पहले आप जिन्दा रहना सीखें।
27ः- अपनी शक्ति,योग्यता या समृद्धि बढ़ाने के लिए जो कष्ट सहन किए जाते हैं, वे तप हैं, ज्ञान प्राप्ति के लिए भी तप की आवश्यकता है। तपस्वी के लिए कुछ भी असाध्य नहीं।
28ः- अपार धनशाली कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है।
29ः-अभागा वह है जो संसार के सबसे पवित्र धर्म कृतज्ञता को भूल जाता है।
30ः-आनंद और सुख ऐसे इत्र हैं जिसे जितना अधिक दूसरों पर छिड़केंगे उतनी ही सुगंध आपके भीतर समाएगी।
31ः- आदमी सारी दुनिया का ज्ञान बटोर कर भी अपने आप से नितान्त अपरिचित रह सकता है।
32ः-आस्तिकता समस्त पुण्यों की खान और नास्तिकता ही सब पापों की जननी है।
33ः-आरामतलबी मनुष्य का सर्वनाश कर देती है। अपने सुख के लिए दूसरों को कष्ट देना महापाप है।
36ः-आत्म ज्ञान व आत्म संयम ये जीवन को परम शक्ति की ओर ले जाते हैं।
37ः- आदर्श आदमी व्यवहार कुशल हो जाता है।
38ः- आप प्रभु के मित्र बनें।
39ः-आज निश्चित है, जो कल है वह अनिश्चित है।
40ः-आदर्श कभी नहीं मरते।
41ः-आलस मुर्खां का अवकाश दिवस है।
42ः-आर्ष ग्रंथों का पढ़ना ऐसा है कि जैसा एक गोता लगाना बहुमूल्य मोतियों को पाना।
43ः-आलस्य जीवित मनुष्य की कब्र है।
44ः- आपत्ति मनुष्य बनाती है और सम्पत्ति राक्षस।
45ः-आदमी का व्यक्तित्व उसकी अपनी कमाई है।
46ः-इन्द्रियों को वश में करना बुद्धिमान पुरुष का काम है, उनके वश में हो जाना मूर्ख का।
47ः-इछाओं से ऊपर उठ जाओ वे पूरी हो जाएंगी,मांगोगे उनकी पूर्ति तुमसे और दूर जा पड़ेगी।
48ः- इत्तने ज्यादा मिले तो फिजूल का बोझा ही है। 1- प्राण बचा सके इतना अन्न, 2-प्यास बुझा सके इतना पानी, 3-लाज ढक सके इतना कपड़ा, 4- रहने जितना घर और 5- काम आवे इतना ज्ञान।
49ः-इच्छओं की उत्पत्ति में दुख और पूर्ति में सुख, इच्छाओं के नाश में आनन्द का अनुभव होता है।
50ः-इतना उन्नत हो कि सूर्य को छू ले।
51ः- इंसान को नीचे गिराने वाला इंसान खुद है।
52ः-इच्छा का समुद्र सदा अतृप्त रहता है। उसको मांगे ज्यों.ज्यों पूरी की जाती है त्यों त्यो और गर्जन करता है।
53-ईश्वर ने हमें दो कान दिए और दो आंखे, पर जबान एक ही ताकि हम बहुत ज्यादा सुर्ने बहुत ज्यादा देखें लेकिन बोले बहुत कम।
54ः-ईश्वर हफ्तेवार नहीं देता, सारा भुगतान आखिर में करता है।
55ः-ईश्वर सबका निश्चित मित्र है।
56ः- ईश्वर बुद्धिप्रकाशक है।
57ः- ईश्वर की आज्ञा वेद.वाणी है।
58ः- ईश्वर का मुख्य नाम ओउम है।
59ः- ईश्वर के सृष्टिक्रम को कोई नहीं बदल सकता।
60ः-ईश्वर और हमारे मध्य न स्थान की दूरी है न काल की, बस दूरी है तो अज्ञान की।
61ः- ईर्ष्या सब बुराइयों की जननी है।
62ः-ईश्वर पर विश्वास रखो, जो मांगना है,उसी से मांगो, वह क्या दे सकता है,जो खुद किसी से मांगता हो।
63ः- उधार से ऐसे डरना चाहिए जैसे मौत से।
64ः-उत्तम व्यक्ति बोलने में सुस्त और चरित्र में चुस्त रहता है। 65ः-उधार देना भारी पत्थर को पहाड़ की चोटी से नीचे धकेलना है, उसे वसूल करना भारी पत्थर को पर्वत पर चढ़ाना है।
66ः-उत्तमता गुणों से आती है, जो आसन पर बैठ जाने से नहीं।
67ः-उसके पाप धुल जाते हैं अतिथि जिसका अन्न खाते हैं।
68ः-उत्तम उपदेश ही अंधकार मिटाते हैं।
69ः-उधार वह मेहमान है,जो एक बार आकर जाने का नाम नहीं लेता।
70ः- उठो और काम में लग जाओ। यह जीवन भला कितने दिन का? जब तुम इस संसार में आए हो तो कुछ चिन्ह छोड़ जाओ। अन्यया तुममें और वृक्ष आदि में अन्तर ही क्या? वे भी पैदा होते हैं, परिणाम को प्राप्त होते हैं और मर जाते हैं।
71ः- एक बार निकले हुए शब्द कभी वापिस नहीं आ सकते। 72ः- एक चिराग से कितने ही चिराग आलोकित हो जाते हैं।
73ः- एकांत से बढ़कर साथ करने लायक कोई साथी नहीं है। 74ः- ऐश्वर्य हमारा अनुचर बन जाए।
75ः- ऐसा कोई काम न करो, जिसे दूसरों से छिपाने की जरूरत हो।
76ः-ओम के अतिरिक्त ईश्वर के अन्य सब नाम गौण हैं।
77ः-कल के भरोसे मत बैठो।
78ः- कर्म से मुंह न मोडो। कर्म शरीर के द्वारा की भगवान की सर्वोत्तम प्रार्थना है।
79ः- कड़ी मेहनत, दूर दृष्टि और पक्का इरादा हैं, सफलता के मूल मंत्र।?
80ः- कलियुग में रहना है या सतयुग में, यह तो स्वयं में चुनो तुम्हारा युग तुम्हारे पास है।
81ः- कमजोर आदमी हर काम को असंभव समझाता है और बहादुर हर असंभव को साधारण समझाता है।
82ः- कर्म वह आईना है, जो हमारा स्वरूप हमें दिखा देता है। अतः कर्म का अहसानमंद होना चाहिए।
83ः-कष्ट इदय की कसौटी है।
84ः- काम की अधिकता नहीं,अनियमितता मनुष्य को मार डालती है।
85ः- कान और आंख में सिर्फ चार अंगुल का फर्क है। मगर देखी और सुनी में दिन- रात का।
86ः-कानून हमेशा गरीबों का शासन करता है और अमीर कानून पर शासन करते हैं।
87ः-किसी भी दिशा मेरा कोई शत्रु न रहे।
88ः- किसी को तुच्छ देख कर घृणा नही करनी चाहिए। कौन जाने उसमें बडा काम कर जाने का गुण हो। जैसे बडा का बीज कितना छोटा होता है और उससे कितना बडा वृक्ष उत्पन्न हो जाता है।
89ः-किसी से वायदा करके खिलाफी करना गुनाह है।
90ः- किसी व्यक्ति को उसके प्रति की गई मेहरबानी की याद दिलाना और उसका जिक्र करना गाली देने के समान है। 91ः-किसी के प्रति मन में क्रोध रखने की अपेक्षा उसे तत्काल प्रकट कर देना अधिक अच्छा है, जैसे पल में जल जाना देर तक सुलगने से अच्छा है।
लेखकः-सूजपुर आर्य समाज मंदिर के पूर्व अध्यक्ष प0 महेंद्र कुमार आर्य मानव कल्याण निधि पुस्तक के रचियता हैं।