शारदा विश्वविद्यालय में स्वदेशी पुनरुत्थान पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न
मौहम्मद इल्यास- "दनकौरी"/ग्रेटर नोएडा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज भारत की पहचान वैश्विक स्तर पर गौरव का विषय बन चुकी है। “विदेशों में अब लोग न केवल गर्व से खुद को भारतीय कहते हैं, बल्कि हिंदी बोलने में संकोच भी नहीं करते।” यह प्रेरणास्पद विचार संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में व्यक्त किए।
‘स्वदेशी पुनरुत्थान की दिशा में औपनिवेशिक बुनियादी ढांचे को खत्म करना’ विषयक इस सम्मेलन का आयोजन विश्वविद्यालय के भारतीय संस्कृति वैश्विक केंद्र, ह्यूमैनिटीज़ और सोशल साइंसेज़ संकाय एवं अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र (ICCS) के संयुक्त तत्वावधान में हुआ।
मंत्री रिजिजू ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक विरासत हजारों वर्षों पुरानी है और यह दुनिया में अद्वितीय है, लेकिन दुर्भाग्यवश आज के युवा अपने गांव का नाम नहीं जानते, मगर विदेशी शहरों के नाम गिनवा देते हैं। उन्होंने कहा, “जब किसी देश की जड़ें मजबूत होती हैं, तब उसे कोई हिला नहीं सकता। भारत का भविष्य स्वदेशी सोच और सांस्कृतिक चेतना में ही सुरक्षित है।”
उन्होंने मातृभाषा के महत्व पर बल देते हुए कहा कि “हमें अपनी भाषा, परंपरा और शिक्षा पद्धति को प्राथमिकता देनी चाहिए। जब आप अपनी संस्कृति को अपनाते हैं, तभी बाहरी दुनिया भी आपसे जुड़ती है।” रिजिजू ने विश्वविद्यालय की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह उनका यहां दूसरा दौरा है और चांसलर पी.के. गुप्ता की सांस्कृतिक दृष्टि सराहनीय है।
संस्कृति से जुड़ना ही भविष्य की पहचान — पी.के. गुप्ता
सम्मेलन में विश्वविद्यालय के चांसलर पी.के. गुप्ता ने कहा कि “भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए देशवासियों को एकजुट होकर आगे आना होगा। स्वदेशी विचारधारा को वैश्विक मंच पर सशक्त रूप से प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।” उन्होंने कहा कि बच्चों को अपनी मातृसंस्कृति और प्रदेशीय पहचान से परिचित कराना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उन्हें अवसर देने को सामाजिक उत्थान की प्राथमिक शर्त बताया।
विशिष्ट विद्वानों की गरिमामयी उपस्थिति
सम्मेलन में डॉ. धनंजय सिंह, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) के सदस्य सचिव ने विषय पर अकादमिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
शारदा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सिबाराम खारा,
डीन डॉ. अन्विति गुप्ता (सम्मेलन संयोजिका),
डॉ. प्रशांत अर्वे (सह संयोजक),
इंडोलॉजिस्ट डॉ. शशि बाला, अध्यक्ष, ICCS भारत,
डॉ. भुवनेश कुमार सहित विभिन्न संकायों के डीन, विभागाध्यक्ष व छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में मौजूद रहे।
सम्मेलन में स्वदेशी चेतना, सांस्कृतिक विरासत और औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्ति की दिशा में नवाचार व नीतिगत दृष्टिकोण पर व्यापक विमर्श किया गया। यह आयोजन न केवल एक अकादमिक मंच था, बल्कि भारत की आत्मा से जुड़ने का सामूहिक प्रयास भी सिद्ध हुआ।