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एमएसपी की झुनझुना नीति और बदहाल अन्नदाता: कब तक चलेगा ये छलावा?



चौधरी शौकत अली चेची

केंद्र सरकार ने हाल ही में 14 खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में बढ़ोतरी की घोषणा की है। धान का एमएसपी 69 रुपये बढ़ाकर 2,369 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। उड़द पर 400 रुपये, मूंग पर 86 रुपये और तोरिया पर 450 रुपये की बढ़ोतरी का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस मामूली बढ़ोतरी से देश का अन्नदाता वास्तव में खुश है? या यह भी एक और चुनावी वादे की तरह झूठे भरोसे का हिस्सा है?

सरकार ने 2025-26 के लिए खरीफ फसलों की खरीद हेतु 2.07 लाख करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। परंतु ज़मीनी सच्चाई यह है कि देश की लगभग 85 मुख्य फसलों में से मात्र 23 पर ही MSP लागू है, और इन 23 में से भी केवल 10% फसल की सरकारी खरीद हो पाती है। 60% से अधिक फसल व्यापारी औने-पौने दामों में खरीदते हैं, 20% फसल किसान खुद उपयोग करता है और लगभग 10% फसल आवारा पशुओं, बाढ़, सूखे या मौसम की मार से बर्बाद हो जाती है।

एमएसपी गारंटी कानून: कब तक टालेगा शासन?

देश का किसान वर्षों से मांग कर रहा है कि सभी फसलों पर MSP की गारंटी देने वाला कानून बने। लेकिन सरकार की चुप्पी और मीडिया की चापलूसी इस मांग को दबा देती है। MSP गारंटी कानून "15-15 लाख खाते में", "हर साल 2 करोड़ नौकरियां" जैसे खोखले वादों की तरह एक और जुमला बन गया है।

केसीसी (KCC) और ऋण का जाल

देश में 15 करोड़ किसान परिवार हैं, लेकिन केवल 7.75 लाख ही KCC खाते धारक हैं। ये अंतर दर्शाता है कि सरकार की योजनाओं का लाभ किस हद तक सीमित है। किसानों पर औसतन ₹1.4 लाख का कर्ज है, जबकि 2014 से पहले यह ₹32,000 था। यह कर्ज क्यों बढ़ा? क्योंकि डीजल, पेट्रोल, खाद, बीज, दवाइयां, कृषि यंत्र—सबका दाम दोगुना-तीन गुना हुआ, लेकिन किसान की उपज का मूल्य नहीं बढ़ा।

सरकार और अमीरी का बढ़ता अंतर

जब 1% अमीरों के पास देश की 41% संपत्ति है और 50% गरीबों के पास केवल 3%, तब यह दावा करना कि भारत ने जापान को पीछे छोड़ दिया, जनता को भ्रमित करने वाली बात है। जापान की प्रति व्यक्ति आय ₹33,900 है, जबकि भारत की मात्र ₹2,890। GDP में आगे होना तभी मायने रखता है, जब उसका लाभ आम नागरिक तक पहुंचे।

फसल बीमा और नुकसान का मुआवजा: केवल दिखावा

फसल बीमा योजना और आपदा राहत दोनों ही किसानों के साथ मज़ाक बन कर रह गए हैं। बहुत से किसान न तो फसल बीमा के दायरे में आते हैं और जो आते हैं उन्हें समय पर मुआवज़ा नहीं मिलता। तकनीकी शर्तों की भूलभुलैया में असल किसान उलझ कर रह जाता है।

आत्महत्या करती पीढ़ियाँ

हर साल देश में लगभग 12,000 किसान और 10,000 बेरोज़गार युवा आत्महत्या करते हैं। 27 रुपये रोज़ कमाने वाला किसान जब बैंक का लोन नहीं चुका पाता, तो उसकी जमीन कुर्क कर ली जाती है। वहीं, चुने हुए जनप्रतिनिधियों और अफसरशाही की सुविधाएं लगातार बढ़ रही हैं। यह असमानता और भी भयावह होती जा रही है।

क्या खरीफ फसलों का MSP बढ़ाना पर्याप्त है?

निश्चित ही MSP में बढ़ोतरी का स्वागत किया जाना चाहिए, परंतु इससे उन फसलों पर कोई असर नहीं पड़ता जिन्हें किसान उगाता ही नहीं क्योंकि या तो उनकी उपज कम होती है या लागत बहुत अधिक। MSP बढ़ाना तब सार्थक होगा जब वह उत्पादन लागत के कम से कम डेढ़ गुना के आधार पर हो और उसकी गारंटी दी जाए।


समाधान क्या है?

  1. सभी फसलों पर MSP की गारंटी वाला कानून।
  2. KCC को सभी किसानों तक पहुंचाना।
  3. फसल बीमा योजना को सरल, पारदर्शी और प्रभावी बनाना।
  4. कृषि लागत घटाने के लिए डीज़ल, खाद, बीज पर वास्तविक सब्सिडी।
  5. बिचौलियों और व्यापारी माफिया पर नियंत्रण।
  6. कृषि को राष्ट्रीय आपदा श्रेणी में लाना, ताकि फसल नुकसान पर स्वतः मुआवजा मिले।

अब समय आ गया है कि किसान केवल वोट बैंक न रहे, बल्कि नीतियों का केन्द्र बने। जब तक देश का अन्नदाता आत्मनिर्भर और सुरक्षित नहीं होगा, तब तक कोई भी विकास अधूरा रहेगा। केवल 5 किलो राशन देकर, करोड़ों की उम्मीदों का गला घोंटा जा रहा है। अब जनता को जागरूक होना होगा, क्योंकि यह सिर्फ किसानों की लड़ाई नहीं, बल्कि पूरे देश की आत्मा की लड़ाई है।


लेखकचौधरी शौकत अली चेची, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - किसान एकता (संघ) एवं पिछड़ा वर्ग उ.प्र. सचिव (सपा) हैं।