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बुलडोजर को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला काबिले तारीफ

चौधरी  शौकत अली चेची
बुलडोजर को लेकर सुप्रीम कोर्ट फैसला काबिले तारीफ है। 
कोर्ट के  इस फैसले ने बुलडोजर के पीछे की सारी राजनीति को अवैध साबित कर दिया। यहां तक की उन अफसरो को भी कटघरे में खड़ा कर दिया जो इस अवैध राजनीति के एजेंट बन गए थे। अब यहां मीडिया की बात करें तो अलग-अलग चैनलों ने हैडलाइन बनाई, बाबा का बुलडोजर अगले 100 दिनों के लिए तैयार, फिर निकला बाबा का बुलडोजर, इस बार चुन चुन कर बुलडोजर गरज रहा है, आ रहा है बाबा बुलडोजर, बुलडोजर से बचना नामुमकिन, फिर चला बाबा का बुलडोजर, बुलडोजर ने किया सारी पार्टियों का गेम ओवर, बाबा का बुलडोजर कैसे हुआ मशहूर, सारी समस्याओं का समाधान बुलडोजर, न कचहरी न कोर्ट बुलडोजर से चोट आदि अंग्रेजी में भी इसी तरह की हेड लाइन लगाई । गोदी मीडिया ने आम दर्शकों के मन में यह धारणा बिठा दी कि किसी का अपराध साबित होने से पहले उसका घर गिरा देना, दुकान गिरा देना ,सरकार का मजबूत एक्शन है । खासकर जब अपराधी या आरोपी किसी खास समुदाय का है ।
  सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर की राजनीति को अवैध साबित कर दिया । योगी आदित्यनाथ का शायद ही कोई ऐसा भाषण होगा जिसमें बुलडोजर का जिक्र ना करते हो सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने यूपी के मुख्यमंत्री की राजनीति की सबसे बड़ी पहचान को अवैध बता दिया। गोदी मीडिया ने खुलकर योगी आदित्यनाथ को बुलडोजर बाबा लिखा और बीजेपी के कार्यकर्ता बुलडोजर लेकर योगी की सभा में स्वागत करने पहुंचते थे । बुलडोजर का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश से शुरू होकर दूसरे राज्यों में पहुंचा ,जहां बीजेपी की सरकार हैं । मध्य प्रदेश और असम आदि बुलडोजर एक्शन ने विशेष समुदाय को टारगेट किया गया ,उनके भीतर डर पैदा किया गया और संविधान से मिली संपत्ति की सुरक्षा का अधिकार एक तरह से छीना जा रहा था। कोर्ट ने अपने फैसले में बिना नाम लिए इन बातों की तरफ भी इशारा किया।
 फैसले में कोर्ट ने अधिकारियों को आगे की कार्यवाही के लिए जवाबदेह बना दिया। खैर रही कि कोर्ट ने पिछले मामलों से इस फैसले को लागू नहीं किया वरना अपराधी बन चुके इन तमाम अफसररो को अपनी जेब से तोड़े हुए घर बनाने पड़ते और मुआवजा देना पड़ता। कोर्ट ने कहा कि अगर मनमानी तरीके से किसी का घर गिराया तो उसे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना समझा जाएगा।
  देर से ही सही इंसाफ हुआ लेकिन जस्टिस बिहर गवाही जस्टिस कवि विश्वनाथन की बेंच ने इस मामले में बहुत बड़ी लकीर खींच दी है आगे से जब भी आप मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इस तरह का बयान सुन याद रखें कि बुलडोजर के इस्तेमाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है   यह भी याद करने की जरूरत है कि पिछले 10 वर्षों में पहली बार नहीं है जब कोर्ट ने उन मुद्दों को अपने फैसलों में अवैध घोषित किया जिसकी राजनीति के तार बीजेपी से और मोदी सरकार से जुड़े रहे हैं । मोदी जिस इलेक्टोरल बॉन्ड को राजनीति में भ्रष्टाचार मिटाने का मंत्र बता रहे थे वह फैसला अवैध और असीमित हुआ। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को लेकर भाजपा की यही राजनीति रही कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के अपने ही फैसले को पलट दिया और एक प्रक्रिया तय कर दी कि किस आधार पर तय होगा कोई संस्थान अल्पसंख्यक है या नहीं । बिलकिस बानो के साथ बलात्कार करने वालों को गृह मंत्रालय के आदेश पर समय से पहले जेल से निकाला गया, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने पूरी प्रक्रिया को अवैध घोषित किया। चंडीगढ़ में मेयर के चुनाव को भाजपा ने किस तरह से जीता सुप्रीम कोर्ट ने उसे भी अवैध घोषित किया। संविधान की हत्या बताया । कश्मीर में इंटरनेट को अनिश्चितकाल तक बंद करने को बुनियादी अधिकारों का हनन बताया। 
 सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस राजनीति के अलावा उन गरीब कमजोर लोगों को भी राहत दी है जो मुस्लिम एवं गैर मुस्लिम दोनों हैं  जिनके घरों को रातों-रात बुलडोजर से ढाहा दिया जाता है कभी वहां पार्क बनाने के लिए कभी पता भी नहीं चलता गरीबों का घर गिरकर किस उद्योगपति को दिया जाने वाला होता है।

  खबर के अनुसार 2022 से लेकर अब तक लगभग 150000 मकान अवैध तरीके से गिराए गए । लगभग 750000 लोग बेघर कर दिए गए । कोर्ट ने अपने फैसले से बुलडोजर के सांप्रदायिक और असंवैधानिक इस्तेमाल पर रोक लगा दी। सुनवाई अक्टूबर महीने में पूरी हो गई थी फैसला 13 नवंबर को सुनाया गया। जस्टिस बिहर ने अपने फैसले की शुरुआत हिंदी के मशहूर और महान कवि प्रदीप की एक कविता से की, अपना घर हो अपना आंगन हो एक ख्वाब है इंसान के दिल की यह चाहत है कि एक घर का सपना छूट न जाए टूट न जाए, इस फैसले के बाद उन अफसरो की कल्पना करनी जरूरी है अपने बच्चों से कैसे नजरे मिलागे जिन अफसरो ने सांप्रदायिक भीड़ को खुश करने के लिए भीड़ को सांप्रदायिक बनाने के लिए किसी  के घर पर बुलडोजर चला दिया । किसी गरीब का घर अतिक्रमण के नाम पर तोड़ दिया । नियमों प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया अब कोर्ट ने बता दिया इन मामलों में कैसे क्या करना है । जस्टिस बी गवई ,जस्टिस विश्वनाथन की बेंच ने अपने फैसले में लिखा है जो सिर्फ आरोपी है ऐसे में उसकी प्रॉपर्टी को गिरा देना पूरी तरह असंवैधानिक है । अधिकारी सिद्ध नहीं कर सकते कि कौन दोषी है ,यह खुद जज नहीं बन सकते कि कोई दोषी है या नहीं। यह सीमाओं को पार करना हुआ कोर्ट ने कहा अगर कोई अधिकारी किसी व्यक्ति का घर गलत तरीके से इसलिए गिरता है कि वह आरोपी है तो यह गलत है, जो अधिकारी कानून अपने हाथ में लेता है उसके खिलाफ एक्शन लिया जाना चाहिए। मनमाना एक तरफा एक्शन अधिकारी नहीं ले सकते हैं, उसके खिलाफ कार्रवाई के लिए एक सिस्टम अच्छा नहीं जा सकता है क्या अधिकारी ऐसे आदमी की छत ले सकते हैं जो किसी अपराध में आरोपी हो या फिर दोषी हो क्या उसका घर बिना तय प्रक्रिया के गिराया जा सकता है। कानूनी प्रक्रिया से काम होना चाहिए ,अगर कोई दोषी भी पाया जाता है ,घर गिराने की राजनीति के सांप्रदायिक चेहरे को सामने लिया कि अपराधी के पकड़े जाने के नाम पर जो किया जा रहा है वह असंवैधानिक है।
 समझना होगा कि इस तरह के अपराध में शामिल रहे हैं क्या इस फैसले के संदर्भ में उनके कृत्य को अपराध के रूप में देखा जाएगा भले ही उन्हें सजा नहीं मिलेगी । जस्टिस बिहर गवई ने एक बात कही एक घर सामाजिक आर्थिक ताने-बाने का मसला है यह सिर्फ एक घर नहीं होता है या  बरसों का संघर्ष है या सम्मान की भावना देता है, अगर घर गिराया जाता है तो अधिकारी को साबित करना होगा कि यही आखरी रास्ता था जब तक कोई दोषी करार नहीं दिया जाता तब तक वह निर्दोष है। ऐसे में उसका घर गिरना उसके परिवार को दंडित करना हुआ । फैसला में जस्टिस बिहर गवई की बातें सही हैं । बुलडोजर से घर गिराने की राजनीति किसे निशाना बना रही है उन्होंने समुदाय का नाम नहीं लिया लेकिन जिस तरह से कहा उस समुदाय को राहत जरूर मिलेगी कि उनके साथ अन्याय तो हुआ मौलिक अधिकारों की श्रेणी में आता है किसी निर्दोष को शरण के अधिकार से वंचित करना पूरी तरह से संवैधानिक नहीं है।

 अगर अचानक एक इमारत को ढाहा दिया जाता है और पास की इमारते खड़ी रहती हैं तो ऐसी कार्रवाई पर यह साफ रूप से बदले की और गलत इरादे से की गई कार्रवाई है। जस्टिस गवही न कहा कि ऐसी कार्रवाई से निष्कर्ष निकाला जा सकता है किसका उद्देश्य किसी अवैध निर्माण को गिराना नहीं है बल्कि पीड़ित व्यक्ति की कोर्ट में ट्रायल हो उससे पहले ही सजा देने का है। हम सभी देख रहे थे ट्रायल से पहले सजा किसे दी जा रही थी किस समुदाय के लोगों को दी जा रही थी । आज उसे राजनीति का अपराध आपके सामने है महंगाई की चर्चा नहीं होती आपके बच्चों को घटिया सुविधा, घटिया राशन घटिया, कॉलेज  मिल रहे हैं उसकी बात नहीं होती लेकिन किसी अपराध में मुसलमान का नाम आए गोदी मीडिया का कवरेज आईटी सेल का तूफान देखा जाता है। 
 सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब अधिकारी को साबित करना होगा कि घर इसलिए गिराया गया क्योंकि कोई और रास्ता नहीं सुप्रीम कोर्ट को इतनी बुनियादी बात परिभाषित करनी पड़ जाए कि घर सबका सपना है बरसों का संघर्ष है तो घर गिराने वाली राज्य व्यवस्था और राजनीति को शर्म आनी चाहिए मगर धर्म की राजनीति की चादर ओढ़ कर निकली, इस राजनीति को शर्म आनी ही चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर की कार्रवाई को लेकर 15 दिशा निर्देश जारी किए हैं कहा है घर गिराने की पूरी कार्रवाई की वीडियो ग्राफी की जाएगी ताकि कोर्ट के सामने सबूत रहे कि नियमों का पालन हुआ या नहीं  कोर्ट ने कहा कि अगर कोई अफसर गाइडलाइन का उल्लंघन करता है तो अपने खर्चे पर दोबारा प्रॉपर्टी का निर्माण कराएगी । मुआवजा भी देगा अगर गिराने का फैसला लेता है तो 15 दिन का समय दिया जाएगा 15 दिन का नोटिस लोगों को अदालत से न्याय मांगने का मौका देगा कई मामलों में देखा गया है तीन दिन का भी वक्त नहीं दिया जाता।
 बहराइच में हुई हिंसा के बाद महाराजगंज गांव में पीडब्ल्यूडी ने 23 घरों को नोटिस दिया ,3 दिन में घर खाली कर दें ,उसके बाद घर गिरा दिया जाएगा । 23 में से 20 घर मुसलमान के थे जब बात सुप्रीम कोर्ट में पहुंची तब कोर्ट ने कार्रवाई पर एक दिन की रोक लगाई । यूपी सरकार ने आश्वासन दिया हम कार्रवाई नहीं करेंगे । इलाहाबाद कोर्ट में इस मामले को लेकर सुनवाई चल रही है। 18 नवंबर को सुनवाई है भाजपा शासित राज्यों में मुसलमान को निशाना बनाया जा रहा है और बुलडोजर एक्शन लिया जा रहा है। क्या बीजेपी के किसी भी नेता को नहीं लगा बुलडोजर से इस तरह से घरों को गिरा देना असंवैधानिक है । जनता के अधिकार का हनन हो रहा है आखिर इन मामलों में बीजेपी का कोई नेता क्यों नहीं आगे आता  ? क्यों नागरिकों के अधिकारों का दमन हो रहा है?  क्या वृंदा करात की तरह स्मृति ईरानी से लेकर निर्मला सीतारमण और तमाम भाजपा की महिला नेताओं को इस तरह की राजनीति में कभी कुछ गलत लगा ही नहीं जो वकील किसी रूप में पीड़ित पक्ष की तरफ से जुड़े रहे जुड़े रहे या फिर अदालत को सुझाव देने के रूप में अदालत ने भी इन वकीलों का शुक्रिया अदा किया है। अभिषेक मनोज सिंह भी चंद्र उदय सिंह प्रशांत भूषण नित्य रामकृष्ण संजय हेगडे दुष्यंत दवे श्री शमशाद निजाम पक्ष अनस तन्वी फौजिया शकील रश्मि सिंह नचिकेता जोशी इकबाल सैयद उज्जवल सिंह सिवान सक्सेना तस्मिया एम हुजैफा इनमें से कई वकीलों ने कोर्ट में मुकदमे की पैरवी की तो क्यों ने अदालत की मदद भी एपीआर नाम की संस्था भी इस मामले में याचिका करता थी।  सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को पढ़कर यही समझ में आता है कि भाजपा शासित राज्य सरकारें संविधान की बुनियादी बातों का पालन नहीं कर रही कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकती । केवल किसी के आधार पर अगर कार्यपालिका आरोपी की संपत्ति तबाह करती है तो यह कानून के शासन पर प्रहार होगा । एक न्यायाधीश बनकर आरोपियों की संपत्ति को ध्वस्त नहीं कर सकती।

लेखक:----चौधरी  शौकत अली चेची , राष्ट्रीय उपाध्यक्ष,.किसान एकता (संघ) एवं पिछड़ा वर्ग उ0 प्र0 सचिव (सपा) है।