चौधरी शौकत अली चेची
चलिए अब बात करते हैं वक्फ बोर्ड एमेंडमेंट बिल पेश की।
वक्फ बोर्ड एमेंडमेंट बिल पेश करते हुए, किरण रिजूजू ने कहकर वक्फ बोर्ड माफिया के चंगुल में है। यहां कुछ समझने की कोशिश करते हैं। वक्फ एक्ट 1954 में आया 1995 में संशोधित स्वरूप में आया इसका चेयरमैन, एक प्रभारी केंद्रीय मंत्री होगा इसके अन्य 3 सदस्य, राष्ट्रीय स्तर के मुस्लिम संगठनों से सरकार तय करेगी। इसके अन्य 4 सदस्य राष्ट्रीय रूप से सम्मानित मैनेजमेंट, एकाउंट, लीगल एक्सपर्ट्स होंगे, सरकार तय करेगी ।नइसके अन्य तीन सदस्य सांसद, 2 लोकसभा 1 राज्यसभा से होंगे। सरकार तय करेगी राज्यो के किन्ही तीन वक्फ बोर्ड के चेयरमैन यहां रोटेशन में लिए जाएंगे दो अन्य सदस्य हाइकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज होंगे तथा मुस्लिम स्कॉलर्स, लॉ एक्सपर्ट्स होंगे, जिन्हें भारत सरकार नियुक्त करेगी। यह केंद्रीय वक्फ परिषद है । स्टेट बोर्ड का स्ट्रक्चर भी लगभग इसी तरह का होगा जिसे राज्य सरकारे तय करेंर्गी गहराई से समझेंगे सवाल धर्म का नहीं धन का है। लाखो करोड़ रुपये की रियल स्टेट प्रोपर्टी का है ,कोई मस्जिद, मदरसा, या ऐसा कोई अन्य रिलिजियस स्ट्रक्चर, जो कभी बियाबान में बनाया गया था, अब शहरों के बीचों बीच है।
1995 का एक्ट जब आया, उसमे सभी राज्य सरकारों को ऐसी पुरानी रिलिजयस प्रॉपर्टीज का सर्वे करने का जिम्मा दिया गया था । एसडीएम डीएम ने सर्वे करके लिस्ट भेजी उसका गजट नोटिफिकेशन हुआ और फिर इन प्रॉपर्टीज का मैनेजमेंट वक्फ बोर्ड करते हैं। कुछ प्रॉपर्टीज डिस्प्यूटेड भी थी, उनकी भी लिस्ट बनी जाहिर है, वहां कब्जेदार को यह प्रूव करना है कि अगर जमीन उसकी है, तो उसके अधिकार में कैसे आयी कोर्ट में सरकार की तरफ से केस वक्फ बोर्ड लड़ता है, क्योकि अब क्लेमेंट वह है।
वक्फ वैसी ही संस्थाए है जैसी सिखों में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी है, या हिन्दुओ में तिरुपति देवस्थानम बोर्ड है, यह इस तरह की और दूसरी संस्थाएं हैं जो धार्मिक महत्व के स्थानों का मैनेजमेंट करती हैं, सरकारों का वक्फ में अच्छा खासा दखल है क्योकि नियुक्ति और संचालन में मंत्री और ब्यूरोक्रेसी का रोल है।
लेकिन वक्फ बोर्ड की तरह भी बाकी संस्थाओं के पास भी अच्छी खासी प्रॉपर्टी है वकफ बोर्ड की जमीन को अपने कब्जे में लेने के लिए प्रोपेगेंडा है। गैरमुस्लिम की धार्मिक संस्थाओं में मुस्लिम सदस्य नहीं है तो फिर वक्फ बोर्ड में गैरमुस्लिम सदस्य की भागीदारी क्यों?
जैसे की न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी वक्फ बोर्ड को कमजोर करने, उसकी लीगल एग्जिटेन्स को कमजोर करने उसके अधिकारों को क्वेशचनेबल बना देने का पुरजोर प्रयास जारी है तो क्या समझने का विषय नहीं है की बार-बार राष्ट्र धर्म और तिरंगे की चासनी में लपेटकर कलेक्टर को पावर देकर डकैती और भ्रष्टाचार को लाए हैं प्रॉपर्टीज में विवाद खड़ा करके, कोर्ट वगैरह के रास्ते जमीनों पर अधिकार मिलेगा और न मिला, तो हर शहर, हर कस्बे में नए सिरे से हिन्दू मुसलमान नरेटिव खड़ा करने का मौका मिलेगा तथा हर मस्जिद हर मदरसे हर मंजार पर सवाल होगा। फर्जी क्लेम से विवाद भड़काये जाएंगे बाबरी का ट्राइड टेस्टेड मॉडल, गांव, गांव, शहर शहर में दोहराया जाएगा। कोर्ट आस्था पर फैसले देगी कुछ दंगे भी होंगे और दंगों का फायदा किस दल को मिलता है बुद्धिजीवी लोग जानते हैं यह नामाकूल बिल, विपक्ष के जोरदार प्रतिरोध के बाद, ठंडे बस्ते में चला जाना बड़ी राहत की खबर है, एक बड़ी आग से देश, फिलहाल बच गया।
लेखक:-- चौधरी शौकत अली चेची, भारतीय किसान यूनियन (अंबावता) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व सपा पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के उत्तर प्रदेश सचिव हैं।