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12 वफात या ईद ए मिलाद या मिलादुन्नबी के नाम से इस्लाम धर्म के प्रमुख पवित्र त्योहारों में से एक

चौधरी शौकत अली चेची
ईद ए मिलाद-उन-नबी या मिलादुन्नबी या 12 वफात पवित्र त्यौहार मनाने का मुख्य उद्देश्य  बुद्धिजीवियों द्वारा अलग अलग ढंग से प्रकाशित या दर्शाया गया है । प्रस्तुत कुछ अंश:- सभी धर्मों के त्योहार अमन चैन तरक्की भाईचारा एकता मानवता का संदेश देकर गलत रास्ते पर जाने से  रोकते हैं। हिजरी कैलेंडर 1445 उर्दू कैलेंडर रबी उल  अव्वल महीने की 1 तारीख तीसरा महीना कहा जाता है 17 सितंबर 2023  को उर्दू कैलेंडर 01/03/1445 रबी उल अव्वल महीने का 16 सितंबर को चांद देखा गया है, अलबत्ता 12 रबी उल अव्वल 28 सितंबर दिन (बृहस्पतिवार) को भारत में मिलादुन्नबी पवित्र त्यौहार मनाया जाएगा। पैगंबर मोहम्मद का जन्म अरब के रेगिस्तान के शहर मक्का में 570 ईस्वी में हुआ था।  8 जून 632 ई 62 की उम्र मैं मदीना सऊदी अरब से दुनिया को अलविदा कह गए इस्लाम के अनुसार जन्म और इंतकाल 8 जून को हुआ । मान्यताओं के अनुसार मोहम्मद साहब से पहले इस्लाम धर्म था। बताया जाता है पहले आदम इब्राहिम मूसा ईशा आदि 7वीं सदी से पैगंबर इस्लाम प्रचारक रहे ,लेकिन मुहम्मद साहब से पहले इस्लाम धर्म की लोकप्रियता दुनिया में नहीं हो पाई । पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्म से पहले ही आपके वालिद  अब्दुल्लाह का इंतकाल हो गया वालिदा बीबी आमिनाह भी पैगंबर की 6 वर्ष उम्र होने पर इंतकाल कर गई मोहम्मद साहब अपने  चाचा अबू तालिब और अबू तालिब की पत्नी फातिमा बिंत असद व दादा अबू मुतालिब के साथ रहने लगे।
पैगंबर मोहम्मद साहब घर का काम करते थे तथा भेड़ बकरियां चराते और दूध घी खाना पीना पसंद था दो वक्त खाना खाते खाने में एक ही सब्जी लेते थे।  तालीम के लिए बाहर जाते थे ,मूर्ति व चित्र पूजा के खिलाफ थे । इसीलिए उनकी तस्वीर नहीं मिलती । इस्लाम में मूर्ति पूजा नहीं की जाती । आपने बताया आपकी तस्वीर जो बनाएगा अल्लाह ताला उसे सजा देगा। हजरत मोहम्मद साहब इस्लाम के आखरी पैगंबर हैं । कुरान व हदीस व सीरा मैं दर्शाया गया है।
मुंहम्मद विश्वासीयों व इस्लाम धर्म एकजुट करने में कुरान के साथ तालीम साथ नजर आते हैं । मोहम्मद इस्लामिक पैगंबर अरबी सुलेख में मोहम्मद का नाम जन्म मोहम्मद अब्दुल्लाह अल हाशिम 570 मक्का शहर मक्का प्रदेश अरब मदीना एजाज सऊदी अरब इंतकाल का कारण बुखार स्मारक मस्जिद ए नबी मदीना एजाज सऊदी अरब अन्य नाम मुस्तफा हेमंत हामिद मोहम्मद के नाम प्रसिद्ध हैं।  610 वी सदी में रहस्योद्घाटनो प्रचार किया और ऐलान किया सबका मालिक एक है । इस्लाम के अन्य भविष्य वक्ताओं के समान खुदा के पैगंबर और दूत हैं। आवेशवासियों से शत्रुता के चल रहे उत्पीड़न से बचने के लिए कुछ अनुयायियों को 615 ईसवी में  सीनिया भेजा 622 ईसवी में हिजरत प्रवासयार स्थानांतरित किया । यह घटना हिजरा या इस्लामिक हिजरी कैलेंडर के रूप में जाना जाता है।  मदीना में मोहम्मद साहब ने मदीना के संविधान के तहत जनजातियों को एकजुट किया। विजय बहुत हद तक अनचाही हो गई 632 में विदाई  यात्रा से लौटने के कुछ महीने बाद 12 दिन तक आप बीमार पड़ गए और  दुनिया से विदा हो गए। मोहम्मद सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने दुनिया से जाने तक  कुरान की सूरतो का निर्माण किया मुसलमानों द्वारा शब्द अल्लाह का वचन के रूप में माना जाता है और जिसके आसपास धर्म आधारित है कुरान के अलावा हदीस और शिरा जीवनी साहित्य में पाए गए मोहम्मद साहब की शिक्षाओं और प्रथाओं( सुन्नत )को भी इस्लामी कानून के सोत्रों के रूप में उपयोग किया जाता है। पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन की खुशी व गम  में शिया  और सुन्नी दुनिया में इस्लाम के मानने वाले त्योहार के रूप में मनाते है मस्जिदों ईदगाह मैं जाकर नमाज अदा की जाती है । रात मे मिलाद शरीफ  गाया जाता है ,मन्नत इबादत करने वालों के लिए जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं ,ऐसा माना जाता है।  जुलूस निकाले जाते हैं। पैगंबर मोहम्मद द्वारा हजरत अली को अपना उत्तराधिकारी बनाया गया था ।12 वफात या ईद ए मिलाद या मिलादुन्नबी के नाम से इस्लाम धर्म के प्रमुख पवित्र त्योहारों में से एक है।
हजरत मोहम्मद साहब . कुरान के मुताबिक, हिरा नाम का पर्वत एक रात जब वह पर्वत की एक गुफा में इबादत कर रहे थे पैगंबर की उम्र 40 वर्ष थी तो फरिश्ते जिब्राइल आए और उन्हें कुरान की शिक्षा दी कुरान धरती पर नाजिल हो गया। अल्लाह के संदेश को मोहम्मद साहब ने दुनिया में फैलाया। पैगंबर का विश्वास था कि अल्लाह ने उन्हें अपना संदेशवाहक चुना है। सन् 622 में मोहम्मद को अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना कूच कर गए । उनके इस सफर को हिजरत कहा गया। हिजरी कैलेंडर की नीव यहीं से रखी गई। पैगंबर मुहम्मद  साहब के मुरीद बड़ी संख्या में हो गए। उन्होंने मक्का लौटकर विजय हासिल की। मक्का में स्थित काबा को इस्लाम का पवित्र स्थल घोषित कर दिया और काबा मस्जिद के इमाम की जिम्मेदारी संभाली ,तब तक पूरा अरब इस्लाम कबूल कर चुका था।