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होली व शबे बारात त्यौहार एक साथ

  

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मार्च के महीने में होली रंगों का त्योहार व शब ए बारात 7 तारीख को डबल खुशी का संदेश


 

चौधरी शौकत अली चेची


---------------------------- त्योहारों को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है बुद्धिजीवियों के अलग-अलग मत हैं।बलिदान,त्याग, सद्भावना, आपसी सौहार्द अनेकों ज्ञानवर्धक संदेश  देते चले आ रहे हैं, जो द्वेष भावना को समाप्त कर अमन चयन तरक्की भाईचारे का पैगाम देते हुए सदियों से परंपराओं को ताजा कर रहे है। भारत  मैं मुख्य रूप से हर जाति धर्म के हजारों त्यौहार इसी उद्देश्य से मनाए जाते हैं।  भारत देश ही नहीं वर्ल्ड में  त्योहारों  को मनाने का मुख्य महत्व  माना गया है बुद्धिजीवियों ने अलग-अलग मत पेश किए हैं,  डालते हैं कुछ बिंदुओं पर नजर- मार्च के महीने में होली रंगों का त्योहार व शब ए बारात 7 तारीख को डबल खुशी का संदेश लेकर आ रहे हैं।  इस्लाम धर्म में शब ए बारात यानी शब का अर्थ रात बारात का अर्थ बरी होना 14 शाबान मोहजम का दिन गुजरने के बाद 15 वी तारीख की रात को शब ए बारात कहते हैं। अल्लाह  के प्यारे रसूल सल्लल्लाहो आले वसल्लम ने फरमाया शाबान मेरा महीना है हदीस के मानने वालों का कहना है अल्लाह तालाह से बढ़कर दूसरा कोई नहीं अल्लाह के हुकुम की तामीर हुई शाबान मोहजम रात में जो बच्चा इस साल पैदा होगा या किसी की भी मौत होगी उसके गुनाहों की पेशी होगी रिजेक और जिंदगी का लेखा-जोखा इकट्ठा होगा दिल से गुनाहों की माफी मांगने वालों को अल्लाह पाक सल्लल्लाहो आले वसल्लम की सिफारिश से अल्लाह की रहमत हुई तो 15वीं तारीख अगली  साल तक पाक साफ हो जाएगा।   जन्नत में जाने का रास्ता भी खुलता है।  कहा गया है लेकिन अल्लाह की मर्जी के बगैर कुछ भी नहीं है (रहमतों की रात नेकीयों का साथ गुनाहों से निजात) इस्लाम के मानने वालों के लिए यह रात बेहद फजीलत (महिमा )की रात मानी जाती है इस रात पूरे विश्व के मुसलमान अल्लाह की इबादत करते हैं अरब देशों में लैलतुल बराह या लैलतुन निशफे मीन शाबान कहा जाता है।  भारत, ईरान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश आदि में शब ए बारात कहा जाता है। महाशिवरात्रि व शब ए बारात) मनाने की परंपराएं एक जैसी नजर आती हैं।   इबादत तिलावत सखावत (दान पुण्य अरदास) मस्जिदों  कब्रिस्तानो में रौनक ज्यादा दिखाई देती है, शहरों में जुलूस निकाले जाते हैं, घरों में भी अलग माहौल दिखाई देता है।  




नमाज कुरान तस्वी दरूद शरीफ पूरी रात पढ़कर गुनाहों की माफी मांगी जाती है, सभी के लिए तरक्की अमन चैन भाईचारे की दुआ की जाती है।  अपनी हैसियत के हिसाब से खैरात की जाती है, कब्रिस्तानो मैं मोमबत्तियां जलाकर अपने सगे संबंधियों को याद कर खुद को महसूस कर अल्लाह पाक से दुआ मांगते हैं।  घरों में मुख्य पकवान हलवा व खीर बनाकर दरूद और फतिया पढ़कर अपने बुजुर्गों को याद कर  रुखसत तक्सीम एक दूसरे को किया जाता है।  सवेरा होने पर कुछ हजरात रोजा रखते हैं, ( शिया, सुन्नी, देवबंदी, बरेलवी ) अपने अपने तरीके से शब ए बरात को कुछ हजरात  त्योहार के रूप में मनाते हैं],कुछ गम और फिक्र में अल्लाह  से गुनाहों की माफी मांग कर सभी के लिए अमन-चैन तरक्की भाईचारे की दुआ मांगते हैं।  अल्लाह के प्यारे नबी ने फरमाया चार रातों में अल्लाह खैर खूब बहाता है।  ईद उल अजहा की रात, ईद उल फितर की रात, हज की रात,15 वी तारीख की रात शब ए बारात अहम माना गया है, क्योंकि इसमें नेकी गुनाह रिजेक और जिंदगी का लेखा-जोखा जिम्मेदार फरिश्तों व मलकुल  मौत तक पहुंचता है।  होली मनाने का मुख्य उद्देश्य बुद्धिजीवियों ने अपने अलग-अलग मत पेश किए हैं-  होली त्यौहार फागुन मास पूर्णिमा को रात्रि मैं समय अनुसार होलिका दहन किया जाता है।  नई साल चेत्र मास के पहले दिन रंग की होली त्यौहार मनाया जाता है।  नाच गाना बजाना बड़ी धूमधाम से किया जाता है, सभी मिलकर एक दूसरे के गले मिल गुलाल लगाते हैं, पकवान आदि मिल बैठ कर खाते हैं, होली त्यौहार मनाने की डबल खुशी किसानों को होती है।  इस मौके पर फसल पक कर तैयारी तक पहुंच जाती है, लेकिन कहीं-कहीं बेमौसम बरसात फसल को बर्बाद कर अन्नदाता की डबल खुशी गम में बदल जाती है।  बसंत ऋतु सर्दी छोड़कर गर्मी मौसम में प्रवेश होता है, खुशी में एक दूसरे पर केमिकल डालना नशे वाली वस्तुओं का प्रयोग करना खुशी के त्यौहार पर प्रसन्न चिन्ह लगा देता है।  आपसी द्वेष भावना को बढ़ावा देता है, इस बुराई को समाप्त करने की जरूरत है, ताकि कानून का डंडा नहीं चले या आपसी भाईचारा समाप्त न हो।  बुद्धिजीवियों द्वारा त्योहार मनाने के अनेक उद्देश्य दर्शाए गए हैं।  होली त्यौहार मनाने का कोई निश्चित समय है सामने नहीं आया।  सदियों से चली आ रही परंपरा प्रसिद्ध है मुगल काल में भी होली मनाने का जिक्र किया गया है।  अकबर का जोधा बाई के साथ, जहांगीर का नूरजहां के साथ, शाहजहां शासन में उर्दू ए गुलाबीया नाम से जाना गया, बहादुर शाह जफर के समय श्रीकृष्ण लीलाओं का वर्णन है।  सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया, अमीर खुसरो और बहादुर शाह जफर जैसे मुस्लिम संप्रदाय का पालन करने वाले कवियों ने भी होली पर सुंदर रचनाएं लिखी हैं।  अजमेर शहर में ख्वाजा मुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर गाई जाने वाली होली प्रसिद्ध है।  भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नाम की राक्षसी का वध किया।  बरसाने की होली 14 दिन तक मनाई जाती है,जिसे लठमार होली कहा जाता है।  प्राचीन काल में विवाहित महिलाएं परिवार की समृद्धि के लिए उपासना पूजा कर मनाया जाता था, इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था इसे मनुवादी तिथि कहते हैं।  गोबर के भर बोलिए बनाए जाते हैं, जिनमें छेद कर मूंज की रस्सी में बांधकर महिलाएं अपने भाइयों के ऊपर से उतारकर जलती हुई होलिका में फेंक देती है, ताकि साल भर तक किसी बुरी नजर का साया न सताए जौ की बालियों को भूनकर लोग अपने घरों की तरफ दौड़ते हैं, मिल बांट कर एक दूसरे को खिलाते हैं ताकि सालभर तक बरकत बरकरार रहे।  शिव ने पार्वती को पत्नी स्वीकार किया और कामदेव के भस्म हो जाने पर पत्नी रति देवी लाकर शंकर भगवान से कामदेव को गुहार लगाकर जीवित कराया, कामदेव का जीवित होने वाला दिन होली वाला दिन था, आज भी रति विलाप को लोकगीत के रूप में गाया जाता है।  राजा पृथु के समय में ढूंढी नामक एक कुटिल राक्षसी थी, पृथु ने ढूंढी के अत्याचारों से छुटकारा पाने के राजपुरोहित से उपाय पूछा ढूंढी को देवताओं से बहुत सारे वरदान प्राप्त थे, ढूंढी अबोध बच्चों को खा जाती थी, फाल्गुन मास पूर्णिमा के दिन लकड़ी आदि इकट्ठा कर जलाकर मंत्र पढ़ें तालियां बजाए, शोर मचाए ढूंढी नजदीक आए तो उसके ऊपर कीचड़ आदि मारे उसके पीछे दौड़े वह मर जाएगी।  एक युग में राजा हिरण कश्यप का शासन था अहंकार में अपने आप को भगवान मानता था हिरण्यकश्यप को वरदान था।  घर मरू ना बाहर दिन मरू ना रात अस्त्र से मरू ना शस्त्र से हिरण्यकश्यप के घर भक्त पहलाद ने जन्म लिया, जो भगवान विष्णु की पूजा करता था।  हिरण कश्यप अपने बेटे की इस बात से बहुत नाराज था।  प्रह्लाद को मारने के बहुत सारे उपाय किए मगर सफलता नहीं मिली, हिरण कश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती।  हिरण कश्यप के कहने से होलिका  भक्त प्रहलाद को गोदी में लेकर शीतल चीर ओढ़  कर लकड़ियों के ढेर पर बैठ गई और आग लगा दी गई शीतल चीर का दुरुपयोग किया।  होलिका ने वह जलकर राख हो गई भगवान विष्णु की कृपा से भक्त पहलाद का बाल बांका नहीं हुआ और भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप को वरदान का पालन करते हुए सिंह जैसा रूप धारण कर अपने घुटनों पर रखकर सूर्य छुपने से पहले दरवाजे के बीच में अपने लंबे नाखूनों से चीर कर मौत के घाट उतार दिया। इन्हीं उद्देश्यों से होली  रंगों का त्योहार के रूप में मनाते हैं।  

लेखकः. चौधरी शौकत अली चेची -उत्तर प्रदेश अध्यक्ष किसान एकता संघ