मुलायम सिंह यादव का जीवन :---तमाम उतार.चढ़ाव से भरा था, उत्तर प्रदेश की सियासत की धुरी रहे मुलायम सिंह यादव का जीवन
पीएम पद के लिए एक बार फिर उनका नाम आगे आया। एक बार फिर दूसरे यादव नेताओं ने अपने हाथ पीछे खींच लिए। ऐसे में यह दूसरा मौका था जब मुलायम के पास आती पीएम की कुर्सी दूर हो गई। बाद में मुलायम ने एक रैली में कहा भी कि लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, चंद्र बाबू नायडू और वीपी सिंह के चलते वह प्रधानमंत्री नहीं बन सके।
मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/उत्तर प्रदेश
समाजवादी पार्टी के संस्थापक और नेताजी कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव का दुखद निधन आज गुरूग्राम के मेदांता हॉस्पिटल में हो गया। मुलायम सिंह यादव के निधन की खबर उनके पुत्र व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्विटर के जरिए दी। मुलायम सिंह यादव लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे और मेदांता हॉस्पिटल में उनका इलाज चल रहा था, यहीं उन्होंने आखिरी सांस ली। मुलायम सिंह यादव ने 82 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। उत्तर प्रदेश की सियासत की धुरी रहे मुलायम सिंह यादव का जीवन तमाम उतार.चढ़ाव से भरा था। आइए एक नजर डालते हैंः- 1939 में जन्में मुलायम के पिता सुघर सिंह चाहते थे कि उनके सभी बच्चे खेती.बाड़ी और पशुओं की देखभाल करें और खासकर अपने शरीर का का भी ध्यान रखें। शरीर से उनका मतलब था पहलवानी की तरफ था। दसवीं की पढ़ाई के बाद मुलायम ने करहल के जैन इंटर कॉलेज में दाखिला लिया, जो सैफई से कुछ किलोमीटर दूर था। उन्होंने अपने छोटे भाईयों का भी दाखिला यहीं कराया। मुलायम, इटावा के केके कॉलेज और फिरोजाबाद के शिकोहाबाद कॉलेज भी गए। हालांकि पढ़ाई के सिलसिले में मुलायम भले ही सैफई से दूर हुए हों लेकिन उन्होंने पहलवानी नहीं छोड़ी। वे लगातार प्रैक्टिस कर रहे थे और तमाम प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले रहे थे। 12 वीं आते.आते वे अपने एज ग्रुप के चैंपियन बन गए थे, फिर कॉलेज में पढ़ाई के दौरान भी जिले और रीजनल लेवल पर अपना लोहा मनवाया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक मुलायम का चरखा दांव भी खूब चर्चित था। मुलायम भले ही छोटे कद के रहे हों, लेकिन बड़े.बड़े पहलवान भी उनसे खौफ़ खाते थे। चरखा दांव का प्रयोग कर मुलायम अपने कद से बड़े पहलवान को भी चित कर देते थे। कॉलेज की पढ़ाई तक मुलायम लगातार कुश्ती प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे। हालांकि घर की परिस्थितियों को देखते हुए साल 1965 में उन्होंने उसी जैन इंटर कॉलेज में नौकरी ज्वाइन कर ली, जहां से वे खुद पढ़े थे। यहां पढ़ाने के साथ.साथ वे आगरा यूनिवर्सिटी से प्राइवेट मोड में पॉलिटिकल साइंस में एमए भी कर रहे थे।
>मुलायम ने शिक्षक बनने के बाद पूरी तरह पहलवानी को अलविदा कह दिया था। मुलायम की पहली बार अपने राजनीतिक गुरु नाथू सिंह से मुलाकात पहलवानी के अखाड़े में ही हुई थी। दरअसल साल 1962 में मैनपुरी में एक 3 दिवसीय कुश्ती प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। 23 साल के नौजवान मुलायम सिंह यादव भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे थे। उसी साल हो रहे विधानसभा चुनाव में जसवंत नगर से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार नाथू सिंह भी इस प्रतियोगिता में पहुंचे थे। वे मुलायम के प्रदर्शन से बेहद प्रभावित हुए। नाथू सिंह मुलायम से इतने प्रभावित हुए कि अगले विधानसभा चुनाव-1967 में मुलायम को अपनी सीट उपहार के तौर पर दे दी और उन्हें जसवंत नगर से चुनाव लड़वाया। नाथू सिंह ने ही पहली बार मुलायम की मुलाकात डॉ0 राम मनोहर लोहिया से करवाई थी और कहा था कि मैं आपको एक तेज तर्रार नौजवान सौंप रहा हूं। मुलायम सिंह यादव ने साल 1967 के विधानसभा चुनाव में जसवंत नगर सीट से बाजी मारी और सबसे कम उम्र में विधायक बनने का खिताब अपने नाम किया। उस वक्त वे महज 28 साल के थे। एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली मिली.जुली सरकार जल्द ही गिर गई। 1999 में फिर चुनाव हुआ। मुलायम सिंह ने संभल और कन्नौज दोनों ही सीटें जीत लीं। पीएम पद के लिए एक बार फिर उनका नाम आगे आया। पहला मौका 1996 में आया, जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी मात मिली थी। कांग्रेस के खाते में 141 सीटें आईं और भाजपा ने 161 सीटें जीती थीं। अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का निमंत्रण मिला। वह प्रधानमंत्री तो बने लेकिन 13 दिनों बाद ही उनकी सरकार गिर गई। अब कांग्रेस के पास मौका था लेकिन वह खिचड़ी सरकार बनाने के मूड में नहीं थी। तब वीपी सिंह ने भी पीएम बनने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने बंगाल के सीएम ज्योति बसु का नाम आगे बढ़ाया जिसे पोलित ब्यूरो ने नामंजूर कर दिया। अब प्रधानमंत्री की रेस में मुलायम और लालू प्रसाद यादव का नाम सबसे आगे था। हालांकि चारा घोटाले के चलते लालू इससे बाहर हो गए। सबको एक करने का काम वामदल के बड़े नेता हर किशन सिंह सुरजीत को सौंपा गया था। उन्होंने मुलायम के नाम की पैरवी की। बताते हैं कि उनके शपथ ग्रहण की तैयारियां भी कर ली गई थीं। हालांकि लालू और शरद यादव इसके लिए तैयार नहीं हुए, जिससे बात नहीं बन पाई। इसके बाद एचडी देवगौड़ा को पीएम पद की शपथ दिलाई गई। एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली मिली.जुली सरकार जल्द ही गिर गई। 1999 में फिर चुनाव हुआ। मुलायम सिंह ने संभल और कन्नौज दोनों ही सीटें जीत लीं। पीएम पद के लिए एक बार फिर उनका नाम आगे आया। एक बार फिर दूसरे यादव नेताओं ने अपने हाथ पीछे खींच लिए। ऐसे में यह दूसरा मौका था जब मुलायम के पास आती पीएम की कुर्सी दूर हो गई। बाद में मुलायम ने एक रैली में कहा भी कि लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, चंद्र बाबू नायडू और वीपी सिंह के चलते वह प्रधानमंत्री नहीं बन सके।
>मुलायम सिंह यादव के जीवन से जुड़ी प्रमुख उपलब्धियां और घटनाएं इस प्रकार हैंः----
1939ः- उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में जन्म।
1967ः- राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रवेश किया।
1968ः- चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल में शामिल हुए। इस पार्टी का संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में विलय हो गया और भारतीय लोक दल का गठन हुआ। आपातकाल 1975-1977 के बाद भारतीय लोक दल का जनता दल में विलय हो गया।
1977ः- पहली बार मंत्री बने।
1982-.1985ः- विधान परिषद के सदस्य रहे और परिषद में विपक्ष के नेता बने।
1985-.87ः- जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष बने।
1989.1991ः- पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
1992ः- समाजवादी पार्टी का गठन किया।
1993.95ः- दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
1996ः- उत्तर प्रदेश के मैनपुरी से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा। रक्षा मंत्री बने।
1998ः- संभल से फिर से लोकसभा सदस्य बने।
1999ः- संभल से फिर से सांसद चुने गए।
2003ः- तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। पत्नी मालती देवी का निधन और फिर साधना गुप्ता से विवाह किया।
2004ः- मैनपुरी से सांसद चुने गए।
2007ः- उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता बने।
2009. 2014 और 2019 में सांसद बने।
आज 10 अक्टूबर 2022 को निधन।