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बारिश में तबाह हुआ देश का अन्नदाता, माथे पर खींची चिंता की लकीरें

 

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चौधरी शौकत अली चेची

कई दिनों से रह रह कर हो रही बारिश ने किसानों की नींद उडा कर रख दी है। पानी भरने से हजारों.हजार बीघा फसल बर्बाद हो चुकी है। लगातार हो रही बारिश से किसानों की धान, बाजरा समेत सभी तरह की फसल बर्बाद हो गई हैं। बेमौसम हो रही बरसात के कहर से किसान परेशान दिख रहा है। किसानों के खेतों में धान की फसल कटी हुई पड़ी है। कई जगह तो कटी हुई फसलों में पानी भर जाने से फसल जलमग्न होते हुए पूरी तरह बर्बाद हो गई है। तो वही तेज बारिश के चलते खेतों में लहरा रही धान की फसल गिरकर सोना उगने वाली मिट्टी में मिल गई है। देश का अन्नदाता लगातार बेमौसम बरसात की मार को झेल रहा है। ऐसे में तबाह होने वाले किसानों में देश का वह अन्नदाता भी शामिल है, जिन्होंने मोटे ब्याज पर कर्ज लेकर खेतों में अपनी फसलों को तैयार किया था। ब्याज पर पैसा लेकर खेतों में फसल उगाने वाला वह किसान आज पूरी तरह से चिंतित और उसके माथे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती है। लगातार देश के अंदर रुक रुक कर हो रही बारिश से जहां किसानों की फसलें जलमग्न होकर तबाह हो गई तो किसान पूरी तरह से परेशान है। वहीं मौसम विभाग के अनुसार लगभग 12 अक्टूबर तक मौसम ऐसा ही बना रहेगा। मौसम विभाग की भविष्यवाणी के बाद किसानों की चिंता लगातार बढ़ रही हैं। गौतमबुद्धनगर में भी बारिश के दौरान खेतों में लहराती धान और बाजरे की फसलें जलमग्न हो गई। बारिश के चलते देश के अन्नदाताओं की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है। किसानों का कहना है कि अगर बारिश इसी प्रकार होती रही तो देश का किसान बर्बाद हो जाएगा।

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उसकी सारी फसल नष्ट हो जाएगी। जिससे किसानों के परिवारों पर मुसीबत आन पड़ेगी। फसल बर्बाद होने के बाद आखिर वह किसान क्या करेगा? जिसने कर्ज लेकर अपनी फसल को तैयार किया था। क्या खेतों में खड़ी हुई फसलों की तबाही के मंजर को मुसीबत के समय में झेल नहीं पाएगा। जिनमें कुछ ऐसे छोटे किसान है जो अपना परिवार चलाने के लिए खेती करते हैं, ऐसे में फसल के बर्बाद हो जाने से किसान भूखे मरने को मजबूर हैं। किसानों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई हैं। वहीं पिछले 8 सालों में  किसानों की कमर तोड़ दी। वायदा था 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लेकिन महंगाई और मंदी ने किसानों पर लगभग 45 प्रतिशत बर्बादी का बुरा प्रभाव डाला यानी किसान की आय आधी रह गई हैं। अन्नदाता जिस दर्द को लेकर जागता है उसी दर्द को लेकर सोता है, सरकारों से कोई उम्मीद की किरण दिखाई नहीं देती आखिर यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा? अन्नदाता कीट पतंगों से आवारा पशुओं से सूखा से, बेमौसम बरसात से पानी की बाढ़ से महंगाई से कम पैदावारी से फसलों के उचित दाम नहीं मिलने से अपने अधिकारों से दुखी और परेशान है। बच्चों की पढ़ाई अपनी आवश्यक वस्तुओं की जरूरतों से  वंचित होता ही जा रहा है। जब देश गुलामी की जंजीरों में था और देश आजाद होने के बाद भी किसान निराशा में ही अपना जीवन यापन करता रहा है, लेकिन पिछले लगभग 8 सालों से तो चारों तरफ से बर्बादी की बाढ़ सी गई है। उद्योगपतियों के अरबों रुपए माफ कर दिए जाते हैं लेकिन छोटी सी रकम किसान लोन के नाम से ले लेता है तो सरकार उसकी संपत्ति को नीलाम कर लेती है, संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज कर जेल में डालने की भी प्रक्रिया बना देती है वोट देकर सरकार बनाने में तथा देश की तरक्की में और देश की सीमाओं की रक्षा करने में किसानों का मुख्य योगदान होता है लेकिन स्वार्थी लोग अन्नदाता को चौबीसों घंटे शक और घृणा की नजर से देख रहे हैं। बेमौसम बरसात ने पिछले वर्ष भी लगभग 30 प्रतिशत किसानों की फसलों को बर्बाद कर दिया था। इस बार पकी फसल पर दूसरी बार बेमौसम बरसात किसानों के लिए मुसीबत  लेकर चल रही है जो देश के कई राज्यों में लगातार बारिश से किसानो की फसलों पर लगभग 40 प्रतिशत का नुकसान नजर रहा है, किसानों के साथ  कारोबारियों तथा मंडी के आढ़तियों मजदूरों पर बेमौसम बरसात से नुकसान साफ नजर रहा है।

लेखकः- चौधरी शौकत अली चेची किसान एकता संघ के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष हैं।