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हुसैनी युथ संस्था के तत्वाधान में इमाम हुसैन के नाम का ’’दिया’’ जलाया



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भारत में अगर आ जाता, ह््रदय में उतारा जाता। यूं चाँद बनी हाशिम का धोके से ना मारा जाता।।

मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/गौतमबुद्धनगर

गौतमबुद्धनर के नोएडा शहर में हर साल की तरह इस बार भी हुसैनी युथ संस्था के तत्वाधान में इमाम हुसैन के नाम का ’’दिया’’ जलाया गया। पैगंबरे इस्लाम मौहम्मद के नवासे और उनके 71 साथियों की मैदान-ए-कर्बला में हुई शहादत की याद को ताजा करने के लिए हर साल की तरह इस साल भी नोएडा स्टेडियम के गेट नंबर- 4 से स्पाइस मॉल से सेक्टर.21 से गुजरते हुए सेक्टर.10, 12 की रेड लाइट से होते हुए सेक्टर .22, 69 में कैंडल मार्च समाप्त हुआ। हुसैनी युथ संस्था की जानिब से कैडल मार्च निकाला गया। इस कैडल मार्च में सभी धर्मो के हजारों लोगों ने शिरकत की। आज से 1400 वर्षों से अधिक का समय व्यतीत हो चुका है किंतु आज भी ऐसा लगता है मानो कर्बला का दृष्टांत कल ही हुआ है। इमाम हुसैन की कुर्बानी किसी एक वर्ग के लिए नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रेरणा स्रोत है। एक उन्मादी व्यक्ति यजीद जिसका कोई धर्म नहीं था किंतु अपने को एक सर्वोच्च शासक. इस्लाम का गुरू कहलाता था। हर गलत काम को सही ठहराना चाहता था जिसके खिलाफ इमाम हुसैन अपने 71 साथियों के साथ उठ खड़े हुए और यज़ीद की बैयत को ठुकरा दिया। उन्होंने कहा यदि आज उन्होंने उसकी बैयत कर ली तो पैग़ंबर आदम, इब्राहिम, इस्माइल और आदि के साथ पैगबंरे इस्लाम  और नाना मौहम्मद की कुरबानी बेकार हो जाएगी। मैदान-ए-कर्बला में इस्लाम के  लिए शहीद हुए हजरत इमाम हुसैन व उनके 71 साथियों को दीप जला कर खिराज.ए.अकीदत पेश की। दरअसल, मनुष्यता के हित में अपना सब कुछ लुटा कर भी कर्बला में इमाम हुसैन ने सत्य के पक्ष में अदम्य साहस की जो रौशनी फैलाई, वह सदियों से न्याय और उच्च जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए लड़ रहे लोगों की राह रौशन करती आ रही है और भविष्य में भी करती रहेगी। बताया जाता है कि नवासे.रसूल ने आख़री वक़्त हिन्द आने की तमन्ना की थी,किसी शायर ने खूब कहा थाः----

भारत में अगर आ जाता, ह््रदय में उतारा जाता। यूं चाँद बनी हाशिम का धोके से ना मारा जाता।।

 

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इस कैंडल मार्च में बच्चां और बड़ों ने अपने हाथों में कुछ बोर्ड उठा रखे थे,जिस पर कुछ इस प्रकार के स्लोगन लिखे थे जैसेः-महात्मागांधी--- मैंने हुसैन से सीखा की मज़लूमियत में किस तरह जीत हासिल की जा सकती है। इस्लाम की बढ़ोतरी तलवार पर निर्भर नहीं करती बल्कि हुसैन के बलिदान का एक नतीजा है जो एक महान संत थे। रबिन्द्र नाथ टैगौरः---इन्साफ और सच्चाई को ज़िंदा रखने के लिए, फौजों या हथियारों की ज़रुरत नहीं होती है। कुर्बानियां देकर भी फ़तह यानी जीत हासिल की जा सकती है, जैसे की इमाम हुसैन ने कर्बला में किया। पंडित जवाहर लाल नेहरुः--इमाम हुसैन की क़ुर्बानी तमाम गिरोहों और सारे समाज  के लिएहै, और यह क़ुर्बानी इंसानियत की भलाई की एक अनमोल मिसाल है। डॉ0राजेंद्र प्रसादः--इमाम हुसैन की कुर्बानी किसी एक मुल्क या कौम तक सिमित नहीं है, बल्कि यह लोगों में भाईचारे का एक असीमित उदाहरण है।