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तन, मन और धन तीनों को खा जाने वाला कीड़ा हैं, दुर्व्यसन

 नाश का साधन हैं दुर्व्यसन

 



0 महेंद्र कुमार आर्य

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व्यसन होना जीवन में जरूरी है। यदि व्यापारी के जीवन में व्यापार का व्यसन नहीं है, तो उसका जीवन ही बेकार है। उसी प्रकार यदि विद्यार्थी के जीवन में विद्या प्राप्ति का व्यसन नहीं है तो उसका विद्यार्थी जीवन बेकार है। परन्तु व्यवसन शब्द में दुर शब्द आ जाने से दुर्व्यसन शब्द बनता है और वह निन्दा का पात्र बन जाता है। मानव जीवन में यदि दुर्व्यसन आ जाते हैं तो मानव का जीवन भी निन्दा का पात्र बन जाता है। दुर्व्यसन तन, मन और धन तीनों को खा जाने वाला कीड़ा है, जो व्यक्ति इसकी एक बार चपेट में आ गया तो फिर उससे पिण्ड छुड़ाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए सभी दुर्व्यसनों से बचना चाहिए। यद्यपि दुर्व्यसन के कई प्रकार हैं,  आजकल व्यापक रूप से जो दुर्व्यसन फैलें है, उसमें शराब, तम्बाकू, जुआ आदि हैं। इन तीनों दुर्व्यसनों में आज की युवा पीढ़ी विशेष रूप से शहर में निवास करने वाली पीढ़ी जकडती ही जा रही है। ब्राउन शुगर, हेरोइन, कोकीन, स्नेक बाइट आदि नाना प्रकार की खतरनाक नशीली वस्तुओं का शिकार युवा पीढी बनती जा रही है। मादक द्रव्यों का दुर्व्यसन हो जाने पर मानव की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। संस्कृत में इसीलिए कहा गया है कि बुद्धिं लुम्पति यद्द्रव्यं, मदकारी तदुच्यते। जो बुद्धि नष्ट करने वाले पदार्थ है, वे ही मदकारी है। एक बार दुर्व्यसन में फंसा मानव अपनी बुद्धि खो देता है और उसके बाद क्रमशः उसका सब कुछ खो जाता है। हर दुर्व्यसनी व्यक्ति का यही इतिहास है। अतः दुर्व्यसनों से सब लोगों को बचना चाहिए। इन कुव्यसनों की कुल्हाड़ी शराब है। आप जानते हैं कि शराब को शराब क्यों कहते हैं? यदि नहीं तो आज जान लीजिए यह अरबी भाषा का शब्द है अरबी में शर का अर्थ है बुराई, बदी, लड़ाई.झगड़ा आदि और आब का अर्थ है पानी। शर और आव मिलकर बनता है शराब जिसका अर्थ है वह पानी जो बुराइयों, बदनामियों, लड़ाई झगड़ों की जड़ है। अरबी में कितना सही नाम रखा गया है, जैसा नाम वैसा परिणाम, यह नाम इस बात की ओर संकेत करता है कि अरबी भाषा के ज्ञानी लोगों ने इस शराब की कितनी निंदा है और इसे प्राचीन समय से ही बुरा माना जाता है। संस्कृत में इसे मदिरा और मद्य कहते हैं। इनका अर्थ है जो पदार्थ मद उत्पन्न करे और आयुर्वेद की परिभाषा के अनुसार बुद्धि का नाश करने वाले पदार्थ को मदकारी कहा गया है, अर्थात जो पदार्थ बुद्धि को विलुप्त कर देता है, उसे मदकारी कहते हैं। इससे स्पष्ट हुआ कि मदिरा को मदिरा या मद्य इस कारण कहा जाता है क्योंकि वह बुद्धि को नष्ट कर देती है। बुद्धि के नष्ट हो जाने पर आत्मा, चरित्र, इज्जत, धन परिवार, समाज और देश सभी का विनाश होता है। बोतल में रखी शराब को विनाशकारी बम के विस्फोट से भी भयंकर कहा गया है। इसे संस्कृति साहित्य के एक ग्रन्थ में इस रहस्य को एक रोचक कथा के माध्यम से समझाया गया है। आज जो शराब बोतलों में रखी जाती है, उसे पहले घड़ों में रखा जाता था। एक बार की बात हैं कि गणिका सिर पर घड़ा रखे जा रही थी। मार्ग में जांच करने वाले सिपाही ने उससे पूछा कि इस घड़े में क्या लिए जा रही हो? उसने उत्तर दिया कि हमारा पेय पदार्थ है, तो सिपाही ने फिर पूछा कि सही.सही बताओ इसमें क्या है? इस पर गणिका ने कहा कि सही.सही पूछना चाहते हो तो सुनो-----

मदः प्रमादः कलहश्च निद्रा, बुद्धिक्षयो धर्मविपर्ययश्च।

सुखस्य कन्था दुखस्थ पन्था, अष्टौ अनर्था वसन्तीह कर्के।।

अर्थात इस सुरापात्र में आठ अनर्थ साथ लिए जा रही हूं वे हैं मद यानी नशा, प्रमाद यानी आलस्य, कलह यानी लड़ाई झगड़ा, निद्रा अर्थात नींद,  बुद्धिक्षयः अर्थात बुद्धि का नाश, अधर्म और अनर्थ का मूल, सुख का विनाश और 8 वां है दुखदायक मार्ग अर्थात इन सबकी प्रतीक पेयवस्तु है, इसमें और उसका नाम है मदिरा। यह मंदिरा इतने दुखों.अनर्थों को उत्पन्न करती है। मनुस्मृति में शराब की निन्दा करते हुए उसके पान का निषेध किया गया है--------

सुरा वै मलमन्नानां पाप्मा च मलमुच्यते।

तस्मात् ब्राह्मण.राजन्यो वैश्यश्च नसुरां पिबेत।।

अर्थ-अन्नों के मल को सुरा कहते हैं और मल को पाप कहते हैं। इस कारण सुरापान का अर्थ पाप को ही पीना है। अतः शराब को नहीं पीना चाहिए।

 

चित्ते भ्रान्तिर्जायते मद्यपानाद् भ्रान्तं चित्तं पापचर्यामुपैति ।

पापं कृत्वा दुर्गतिं यान्ति मुढास्तमान्मद्यं पेयं न पेयम् ।।

 अर्थ-मद्य पीने से चितभ्रान्त हो जाता है और चित्त के भ्रान्त होने पर पाप कर्म कर डालता है। पाम कर्म करके मूर्ख लोग दुर्गति को प्राप्त होते हैं। इसलिए मद्यपान कभी नहीं करना चाहिए। इसलिए यहां किसी कवि ने बहुत ही सुन्दर शब्दों में लिखा है कि------

ऐ शराबे.इश्क तूने अक्सर कौमों को खाके छोड़ा।


जिस घर पे सिर उठाया उसको मिटाके छोड़ा।

 राजाओं के राज्य छीने शाहों के ताज छीने।

 गर्दनकशों को अक्सर नीचे दिखाके छोड़ा।

 अफीम, गांजा, भांग, चरस, मदमादक पोस्त, शराब।

 हे मित्रों सोचो ध्यान से सारे नशे हैं खराब ।।

शराब की निंदा करते हुए महात्मा बुद्ध ने कहा कि सिंह से न डरना, तलवार से न डरना, पर्वत से पाताल में कूदते वक्त न घबराना, धधकती ज्वाला से गुजरते वक्त भी न डरना लेकिन शराब से भयभीत रहता क्योंकि यह पाप और अनाचार की जननी है। रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा है कि जिस प्रकार किसी राष्ट्र व जाति व समाज को उन्नत बनाने के लिए उत्तम साहित्य संजीवनी बूटी है उसी प्रकार किसी को बरबाद करना हो तो उस देश, जाति व समाज को शराब का आदी बना दो। महात्मा गांधी ने कहा कि शराब सभी पापों की जननी है। शराबी व्यक्ति की बुद्धि जब नष्ट हो जाती। है तो उसको अच्छाई.बुराई, पत्नी बहन का ध्यान नहीं रहता। वह पशुओं जैसा बन जाता है। अंग्रेजी लेखक मिलटन का कहना है कि विश्व की सारी सेनाए संयुक्त रूप से इतने मनुष्यों को और सम्पत्ति नष्ट नहीं कर सकीं जितनी अकेली मदिरा ने नष्ट किया है। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द ने कहा था कि जहां 100 में से 80 आदमी भूख से मरते हों, वहां शराब पीना, गरीबों के खून पीने के समान है। अंग्रेजी लेखक फील्डिंग का कहना है कि मदिरा और यौवन आग पर आग हैं। शेक्सपीयर ने शराब की निंदा करते हुए कहा है कि नशे में चूर व्यक्ति की सूरत उसकी मां को भी बुरी लगती है। शेख शादी कहते हैं कि शराब पीना और कुछ नहीं है केवल अपनी इच्छा से पागल बनना है। आदमी पहले शराब पीता है फिर शराब आदमी को पीती है। शराबी व्यक्ति अपने परिवार के लिए एक अभिशाप होता है। अपने इस व्यसन को पूरा करने के लिए घर और बच्चों के भविष्य को तबाह कर देता है। स्वर्ग के समान घर को नरक बना देता है, क्योंकि शराबी बात.बात पर क्लेश और मारपीट करता है। पैसे बरबाद करता है। जब तक पैसा जेब में होता है शराबी व्यक्ति महंगी शराब पर खर्च करता है। जब पैसा खत्म हो जाता है तब अपनी लत को पूरा करने के लिए अपनी सम्पत्ति बेचता है, उधार लेता है, चोरी करता है, ठगी करता है, गबन करता है, पत्नी के आभूषण तक बेच डालता है, सामान छीनता है, मार पिटाई करता है क्योंकि उसे न तो पत्नी और न बच्चों की भूख.प्यास, बीमारी, पढ़ाई.लिखाई किसी चीज की चिन्ता नहीं होती है। इसका दुष्प्रभाव बच्चों पर भी पड़ता है, वे रोगों व विकृतियों के शिकार हो जाते हैं। आखिर किन तरह की भ्रांतियों में आकर लोग शराब के आकर्षण की ओर खिंच जाते हैं? ये हैं जिनमें आधुनिकता और सामाजिक प्रतिष्ठा की प्रतीक, दुख चिन्ता कष्ट को भुलाती है और आनन्द देती है, शराब थकावट को दूर करती है, तर्क दिए जाते हैं कि यह तो दवा है, थोड़ी.थोड़ी पिया करो,तर्क का मकडजाल यहां तक होता है कि शराब ठंड से बचाती है, शराब सैनिकों के लिए जरूरी होती है। इन भ्रांतियों से दूर रहकर शराब की बुराइयों की हकीकत को जानकर उससे दूर रहने और यदि लत लग गई हो तो उसे दृढ निश्चय से छोड़कर अपने परिवारए समाज और राष्ट्र के उत्थान में लग जाना चाहिए। शराब के बाद अब दुर्व्यसनों की दूसरी तलवार है पान मसाला एवं जर्दा। कैसा जमाना आ गया है? जेब में पान मसाला, मुंह में पान मसाला, भोजन से पहले और भोजन के बाद पान मसाला, भोजों और पार्टियों में पान मसाला, स्वागत और सफर में पान मसाला, आजकल यत्र.तत्र सर्वत्र है, पान मसाला। इस चीज, इस नाम की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई है कि इसे विभिन्न नामों से विभिन्न कंपनियां भारी मात्रा में बनाने और धड़ल्ले से प्रचारित करने में जुटी हैं। कुछ लोग सादा पान मसाला के शौकीन हैं तो कुछ लोग उसके स्वाद तीखा बनाने के लिए उसमें जर्दे का मिश्रण करते हैं। दूसरी नशीली चीजों की भांति पान मसाला भी एक नशा बन गया है। पान मसाला में मिली हुई चीजें मुंह और पेट में पहुंचने के बाद कौन सी विनाशलीला शुरू करती हैं, इसे सोचने की जरूरत किसी को भी महसूस नहीं होती। विज्ञान ने तम्बाकू को प्राणघातक विष पहले ही सिद्ध कर दिया है। सादा पान मसाला को नियमित खाने के परिणाम भी बड़े भयानक होते हैं। पान मसाला के कुछ दुष्परिणाम तो शीघ्र प्रकट होने लगते हैं, जैसे मुंह का स्वाद नष्ट होना, भूख न लगना, मुंह के भीतर और बाहर विकृति उत्पन्न होना, मुँह में जख्म होना, पाचन क्रिया में गड़बड़ी, गले में निरन्तर खराश और जख्म, स्नायु दुर्बलता, रक्तचाप का असामान्य होना, दंतक्षय, श्वसन तंत्र से संबंधित रोग आदि। पान मसाला कैंसर का भी जनक है। यह मुंह, गले, फेफड़ों और पेट की स्वाभाविक क्रियाओं में बाधा उत्पन्न करता है और इन्हें भयंकर हानि पहुंचाता है। मुंह में पान मसाला की पीक भर कर किसी से बातें करना असभ्यता का परिचायक है। पीक जहां.तहां थूककर गन्दगी फैलाने की बुरी आदत भी पड़ जाती है। पान मसाला की पीक गले के नीचे उतारना, विष की घूंट पीने के समान है। खूबसूरत डिब्बों और किफायती पैकेटों में भरा हुआ पान मसाला हमें उसी तरह आकर्षित करता है, जैसे विषैला अजगर अपने शिकार को पहले आकर्षित करता है, फिर बड़ी आसानी से निगल जाता है। इस कुव्यसन को छोड़ने का दृढ़ निश्चय करके हम अनेक प्राणघातक रोगों तथा स्वास्थ्य क्षय से बच सकते हैं। कैंसर का सामान है- धूम्रपान। धूम्रपान का शौक प्रौढ़ों को ही नहीं, किशोरों और युवकों में बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। सिगरेट की हर पैकेट पर एक वैधानिक चेतावनी लिखी जाने लगी है.सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। मगर सिगरेट के शौकीनों की दृष्टि में यह चेतावनी अर्थहीन है। आज संसार भर के चिकित्सा वैज्ञानिक गला फाड़ फाड़ कर कह रहे हैं कि धूम्रपान हृदय रोग, कैंसर और उच्च रक्तचाप का जनक है, मगर उनकी आवाज कौन सुनता है? सिगरेट, बीड़ी बनाने वाली कंपनियां करोड़ों का मुनाफा कमा रहीं है और धूम्रपान के प्रचार पर पानी की तरह पैसा बहा रहीं हैं। धूम्रपान स्वास्थ्य और जीवन को नष्ट कर देने वाला प्राणघातक कुव्यसन है। इसकी भयानकता प्रकट करने वाले तथ्य हमें चौंका देते हैं। एक सिगार में इतना काफी निकोटीन होता है कि यदि उसे इंजेक्शन द्वारा खून में पहुंचा दिया जाए तो वह दो लोगों को मार देगा। अब यह सिद्ध हो चुका है कि धूम्रपान के द्वारा जो विभिन्न प्रकार के अलकत्ते यानी टार्स और निकोटिन शरीर में प्रवेश करते हैं, उसका श्वास की नली और फेफड़ों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। धूम्रपान से होने वाले नुकसानों की सूची बड़ी लंबी है। कुछ भयानक दुष्परिणाम विचारणीय हैं. जिनमें श्वसन तंत्र पर बुरा असर, नियंत्रण शक्ति का ह््रास, नेत्र ज्योति का ह््रास, रक्त नलिकाओं के कड़ी होने से दिल के दौरे का खतरा, रक्तचाप में वृद्धि,  गुर्दे की बीमारी, हृदय की कमजोरी, अनिद्रा व एकाग्रता में कमी, रोग प्रतिरोधक शक्ति में कमी, मानसिक अशान्ति, अपराध की प्रवृत्ति, सहन शक्ति में कमी,फेफड़ों और गले का कैंसर, पेट मे जख्म और फेफड़ों का नासूर आदि। सिगरेट उद्योग को बचाने के लिए यह तर्क पेश किया जाता है कि सिगरेट में फिल्टर लगा देने से धुआं हानिकारक नहीं रह जाता है। ऐसी दलीलें लोगों को सिर्फ गुमराह करती हैं। धूम्रपान स्वास्थ्य का कट्टर शत्रु और प्राणघातक है। यह पूर्णतया सत्य हैं इसमें किसी प्रकार की शंका नहीं है। धूम्रपान के कुव्यसन से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय है दृढ़ निश्चय है। धूम्रपान की इच्छा का दृढ़ता से दमन करें और इसकी लत भूलकर भी न लगाएं।

 धूम्रपान पर प्रहार करती कुछ लाइनें इस प्रकार हैं जरा नजर डालिएः-

 कैंसर के तीन यार, बीड़ी, तम्बाकू और सिगार।

तम्बाकू खाते जा, मौत को बुलाते जा।

तम्बाकू का सुख, जीवन भर का दुख।

 खुशियों से नाता जोड़ों, धूम्रपान की आदत छोड़ो।

 थोड़ा सा मजा जिन्दगी भर की सजा।

 तम्बाकू से प्यार, हुआ जीवन बेकार।

 तम्बाकू है मृत्युदण्ड, बिना अपराध के।

 तम्बाकू एक जहर है, जल्दी लाता जिंदगी का अतिम पहर है।

 तम्बाकू से यारी यानी लग गई स्थायी बीमारी।

तम्बाकू खाने की करनी, खुद ही पड़ेगी भरनी।

तम्बाकू खाएगा, तो जल्दी ही मर जाएगा।

 जीवन से करते हो प्यार, धूम्रपान छोड़ों मेरे यार।

 क्यों बीड़ी पीते हो भैया, डुबा रहे हो जीवन नैया।

 अगर मांगनी है भीख, तो धूम्रपान करना सीख।

 तम्बाकू नहीं पीना, जिन्दगी लम्बी है जीना।

 प्रत्येक सिगरेट, आपको मौत के और 80 मिनट करीब लाती है।

धूम्रपान मत कीजिए, शेर की तरह स्वस्थ रहिये।

 महंगी सिगरेट, सस्ता जीवन।

 छोड़ो धूम्रपान बचाओ देश महान।

अर्थातः-यह सब जानते हुए भी क्या आप इस जहर का सेवन करते रहेंगे? अपनी शौर्यता का परिचय दीजिए, तम्बाकू, धूम्रपान छोड़िए। धूम्रपान नहीं, आज के बाद कभी नहीं।

दुर्व्ययनों की कडी में मौत का कुआ है, जुआ। महाभारत में द्यूतक्रीड़ा का प्रसंग कौरवों के महान वंश का पतन और सर्वनाश का पहला काला अध्याय है। पाण्डवों ने सब कुछ हार जाने के बाद अपनी स्त्री द्रौपदी को दांव पर लगाकर यह प्रमाणित कर दिया कि जुए का कुव्यसन मनुष्य को कितना नीचे गिरा देता है और किस प्रकार सब कुछ गंवा देने के बाद श्रीहीन और दर.दर का भिखारी बना देता है। समय बीतने के साथ जुआ भी अपना रूप बदलता गया। वर्तमान युग में वह रेस, सट्टा, फाटका, मटका, ताश, लाटरी, कमेटी आदि नाना रूपों से जुआरियों की संख्या बढ़ाने में पूरी तरह से सक्रिय है। वास्तव में जुआ एक मृग.मारीचिका है। यह हारने वालो को उम्मीद की डोर में बांध कर सर्वनाश के कगार पर पहुंचाता है और जीतने वालों को लालच के मकड़जाल में फंसा कर सर्वस्व खो देने के लिए विवश करता है। जुए में जीत और हार दोनो ही बुरी है। जुआरी सबकी घृणा का पात्र बनता है। उसका परिवार कलह, अशान्ति और दरिद्रता का स्थायी डेरा बन जाता है। जुआ एक नशा है और जिससे नाना प्रकार के दुष्कर्म करने को कुप्रवृत्ति पैदा होती है। जुआरी हर समय स्वप्नलोक में विचरण करता है। वह स्वयं को भाग्य के हाथों की कठपुतली मान बैठता है। वह जुए की हर बाजी से अपना भाग्य आजमाता है। घृणित उपायों से धन प्राप्त करने में उसे तनिक भी संकोच नहीं होता। उसको दृष्टि में हर चीज दांव पर लगाने के योग्य प्रतीत होती है। अवैध जुए के अड्डों पर प्रतिदिन लाखों करोड़ों रुपयों की हार.जीत होती है। ऐसे अड्डों पर जुआ खेले वाले लुक.छिपकर आते.जाते हैं। बड़े शहरों में सभ्य शिक्षित और सम्पन्न व्यक्तियों के जुए का शौक पूरा करने के लिए आलीशान जुआघर जिसे अंग्रेजी में कैसीनों कहते है, जहां जुआ खेलना गैरकानूनी नहीं, होते है। आलम यहां तक पहुंचा हैं कि इन सम्पन्न घरानों के पुरुषों के साथ.साथ महिलाएं भी जुए की आदी बन गई हैं। यह स्थिति बड़ी शर्मनाक है। जुए का खेल, आग का खेल, बरबादी का खेल है, घर फूंक कर देखा जाने वाला तमाशा है। जुआ देता कुछ नहीं है, लेता सब कुछ है। प्रलोभन इसका विष है, कुप्रवृत्तियां इसकी देन हैं और विनाश इसका अवश्यम्भावी कुपरिणाम है। जुआ एक ऐसी कुल्हाड़ी है, जो उसी डाल को काटना शुरू कर देती है, जिस पर काटने वाला मूर्ख स्वयं बैठा है। इस कुल्हाड़ी को पकड़ना तो दूर, छूने की भी भूल नहीं करनी चाहिए।

 

वासना का नशाः दुव्यसनों की कडी में वासना का नशा भी आता है। आदि शंकराचार्य ने कहा है कि मनुष्य के भीतर वासना की जो नदी है, उसे शुभ या अशुभ मार्ग पर प्रवाहित करना मनुष्य के अपने विवेक पर निर्भर करता है। उसका प्रवाह पथ शुभ धरातल पर बनना ही मंगलकारी है। हमारी प्रवृत्ति गर्भ में से नाना रुचियों और इच्छाओं का जन्म होता है। प्रवृत्ति शुभ होगी, तो उससे उत्तम रुचि, सात्विक इच्छा उत्पन्न होगी। हमें अपने भीतर दुष्प्रवृत्तिं को पनपने का अवसर नहीं देना चाहिए। उन्हें अंकुरित होते ही उखाड़ फेंकना कल्याणकारी है। आजकल युवा वर्ग में अश्लील साहित्य, अपराध साहित्य, यौन साहित्य तथा विचारों को प्रदूषित करने वाला अन्य साहित्य पढ़ने और इंटरनेट के माध्यम से इस तरह के साहित्यों की ओर तेजी से रुचि बढ़ रही है। दुकानों, बुक स्टालों और तस्करों ने इस रुचि को फायदेमन्द व्यवसाय का माध्यम बना लिया है। आए दिन हम अखबारों में पढ़ते हैं कि जघन्य अपराध करने वालों से पूछताछ करने पर पता चलती है कि उन्हें कुकर्म करने के लिए प्रेरित करने वाली कोई पुस्तक ही थी। विचारों के प्रदूषण को बढ़ावा देने में दूषित साहित्य के अतिरिक्त उत्तेजक फिल्मों का भी हाथ है। फिल्मों के उत्तेजक दृश्य कामवासना भड़काते हैं, हिंसा और कुकर्म के लिए प्रेरित करते हैं। किशोरों और युवकों में फिल्मों के हीरों और हीरोईनों की नकल उतारने की इच्छा बलवती होती है। इससे लड़कियों में अनैतिक कार्य करने और उत्तेजक फैशन अपनाने की प्रवृत्ति पनपती है। मन में बुरे विचार, चाहे कुछ देखने से आये या कुछ पढ़ने और सुनने से, सब अमंगलकारी हैं। हम ऐसी पुस्तकें न पढ़ें, जिन्हें तकिये के नीचे या कहीं और छिपाकर रखने की जरूरत पड़े, ऐसी फिल्में न देखें, जो हमारे चारित्रिक पतन में सहायक हों। ऐसी चर्चाओं से दूर रहें, जो गलत काम करने के लिए उकसायें। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द ने अपनी एक कहानी में एक स्थान पर लिखा है कि कोई कितना ही भूखा क्यों न हो? क्या वह गोबर खा लेगा? पढ़ने के लिए अच्छी पुस्तकों और देखने के लिए अच्छी फिल्मों का कोई अभाव नहीं है। उनका चयन हमें अपने विवेक से करना होगा। दूषित रुचि पतन और विनाश के सिवा कुछ नहीं देती।

कुप्रथा की कुल्हाड़ी है दहेजः दुव्यसनों की कडी में दहेज भी बहुत बुरी बुराई है। दहेज जैसी कुप्रथा का घिनौना और भयानक रूप देखकर क्या हमें अपने समाज के पतन का बोध नहीं होता? यदि होता है तो क्या हमें इस कुप्रथा को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए प्राणपण से चेष्टा करने की प्रेरणा हमें नहीं मिलती। एक पवित्र संस्कार को कितना घृणित रूप दे दिया हमने। हमारे शास्त्रों ने विष्णु के रूप में जमाता और लक्ष्मी के रूप में कन्या की पूजा करके, दोनों को दाम्पत्य सूत्र में बांधने का विधान बनाया है। पूजन के समय जिस प्रकार श्रद्धालुजन भोग.प्रसाद लाकर चढ़ाते हैं, उसी प्रकार विवाह के अवसर पर पूजा.भाव से विविध सामग्री वर एवं कन्या के परिवारों के सदस्य, संबंधी और परिचित अर्पित करते थे। भगवान मनु ने जिन आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन किया है, उसमें प्रथम चार विवाह जिनमें ब्राह्म विवाह, दैव विवाह, आर्ष विवाह और प्राजापत्य विवाह उत्तम माने गए हैं। इन विवाहों में भेंट.सामग्री देने का नियम कन्या पक्ष के लिए ही नहीं, बल्कि वर पक्ष के लिए भी बनाया है। किंतु वितंडावादियों ने शास्त्रीय विवाह संस्कार को कुरीतियों और कुप्रथाओं का काला जामा पहना कर उसे काले धंधे का रूप दे दिया है। वर पक्ष को प्रधानता देकर, कन्यापक्ष को उसका मुखापेक्षी बनाने का षड्यंत्र अमानवीयता, अधर्म और अन्याय का घोतक है। कितना लज्जाजनक है.सभ्य.शिक्षित व्यक्तियों का दहेज के लिए हाथ फैलाना, दहेज के लिए निर्दोष बहुओं को सताना, अपमानित करना और जीवित जलाने का जघन्य अपराध करना, धन के लोभ में मनुष्यता और नैतिकता का गला घोट देना, पुत्र को सम्पत्ति और कन्या को भार समझना, अपना घर भरने के लिए दूसरे को कंगाल बनाना और विवाह को धनोपार्जन का साधन बनाना। आज अत्यंत आवश्यक है दहेजु का उन्मूलन करने के लिए अविवाहित लड़के.लड़कियों का कृतसंकल्प होकर आगे आना और विद्रोह करना, दहेज के लोभी अभिभावकों और लड़को का सामाजिक बहिष्कार करना, नए समाज की रचना के लिए नई पीढ़ी का प्रतिज्ञाबद्ध होना। दहेज हमारे समाज के माथे पर लगा हुआ कलंक है, इसे धो डालना और समाज को कुरीतियों एवं कुप्रथाओं के चंगुल से मुक्त करना, हममें से प्रत्येक का परम धर्म और सामयिक का कर्तव्य है।

कृतिः-मानव कल्याण निधि

प्रसंगः- नाश का साधन है, दुर्व्यसन

लेखकः.- प0 महेंद्र कुमार आर्य, पूर्व प्रधान, आर्य समाज मंदिर सूरजपुर, ग्रेटर नोएडा, जिलाः- गौतमबुद्धनगर हैं।