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कोरोना बीमारी है या फिर किसी प्रकार का रेडिएशन है? वायरस है, लापरवाही है, कुदरती आपदा है, कोई प्लान है या प्रोपेगेंडा है?

 



 



प्रधानमंत्री जी सिसक सिसक कर मर रही जनता को भी बचा लीजिए। ऐसा नही कर सकते हैं तो वही पुराने दिन लौटा दीजिए

 


चौधरी शौकत अली चेची


-------------------------- कोरोना भयंकर बीमारी है या नहीं समझना मुश्किल है। शमशान व कब्रिस्तान में लाशों के ढेर को देख कर मानवता रो रही है। देश में हर वर्ष बीमारी आदि कारणों से करीब एक करोड़ लोग काल के गाल में समा जाते हैं, जिसमें भयंकर बीमारियां एक दूसरे के नजदीक या स्पर्श से होती हैं जैसे स्वाइन फ्लू, डेंगू मलेरिया, सांस फूलना, खांसी जुकाम आदि घातक बीमारियां। जब कि हार्ट अटैक, लिवर, किडनी फालिस, शुगर और बीपी आदि जिनसे लाखों की तादात में हर वर्ष मौत हो जाती है। कोरोना में पिछले 1 साल से अब तक लगभग 5 लाख मौत हो चुकी है, जिसका अभी तक कोई ठोस इलाज नहीं मिल पाया है। एलोपैथिक दवाइयों द्वारा उपचार किया जा रहा है। देश में एलोपैथिक,  होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक और यूनानी पद्वति के डॉक्टर अच्छी खासी तादाद में मौजूद हैं और जिनका तजुर्बा लंबे अरसे का रहा है। सरकार उन्हें क्या जानबूझकर इग्नोर कर रही है? कोरोना बीमारी के लिए एलोपैथिक डॉक्टर देशी फार्मूला काढा इस्तेमाल करने तक का सुझाव दे रहे हैं। किंतु सरकार अभी तक लॉकडाउन, मॉस्क है जरूरी और दो गज की दूरी के फेर में उलझी हुई है। यदि यही सामाधान होता तो फिर सेनैटाईजर और साबुन से हाथ धाने की बात कैसी? पश्चिमी बंगाल में बड़ी बड़ी रैली और सभाएं की, कुंभ मेला, नमस्ते ट्रंप आदि में लोगों का जुटना, बड़े नेताओं का बगैर मॉस्क के भाषण देना समझ से परे नजर आ रहा है। कुछ डॉक्टर कोरोना को भयंकर बीमारी बता रहे हैं, जो मौत के आंकड़ों को विश्वास में ला रही है लेकिन कुछ डॉक्टर वैक्सीन और दवाइयां, ऑक्सीजन आदि पर प्रसन्न चिन्ह लगा कर लोगों को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं, कोरोना बीमारी है या फिर किसी प्रकार का रेडिएशन है? वायरस है, लापरवाही है, कुदरती आपदा है, कोई प्लान है या प्रोपेगेंडा है? पशु पक्षी कीड़े मकोड़ों पर कोरोना का असर नहीं? समझना यह भी है कुछ देशों में भयंकर है कुछ में नॉर्मल है कुछ में बिल्कुल नहीं। हर किसी की भागमभाग है, घर.घर में कोरोना की आवाज है। करोड़ों लोगों की आंखों में आंसू व दिल में दर्द भरी दास्तां है। करनी का फल सत्यमेव जयते का अंतर हर कोई खोजने पर मजबूर है। डाली डाली दौड़ रहे हैं, जड़ कहां छुपी है, अंदाजा नही बर्बादी की लाइन में सब लगकर सरकार के आदेशों का पालन कर रहे हैं। यदि मान भी लिया जाए कि कोरोना वायरस है तो फिर इस बार इतनी भयंकार त्रासदी है समझ से परे लग रहा है। पिछली बार समझ में आ रहा था कि कोरोना है और डॉक्टरों ने भी पूरी मानवता दिखाई थी और नॉर्मल दवाईयों और केयर होने के साथ ज्यादातर मरीज ठीक होकर घर लौटे थे। हां मौत उन्ही लोगों की ज्यादातर हुई थी तो वाकई में या तो बुजुर्ग थे और किसी दूसरी जटिल बीमारी से जूझ रहे थे। किंतु इस बार तो नजरा ही कुछ अलग है। शमशान और कब्रिस्तानों में लाशों के ढेर नजर आ रहे हैं। गली, मुहल्लों से सडक तक और एंबुलैंस से अस्पतालों तक में मानवता रो रही है। हर ओर चित्कार मचा हुआ है और एक तरह से डर जैसा माहौल बना हुआ है। लोगों अपनों की जान के लिए डॉक्टरों से लेकर नेता और अफसरों से गिडगडा रहे हैं, कहीं बैड नही है और बैड खाली नही है और कहीं ऑक्सीजन नही है और डॉक्टर भी हैवान बन उठे हैं। ऑक्सीजन सिलेंडरों से लेकर इंजेक्शन और दवाईयों की कालाबाजारी की खबरों ने दिल झकझोर कर रख दिया है। बैड खाली नही है, ऑक्सीजन नही है अस्पतालों से लोगों को यही कह कर दुत्कारा जा रहा है। ऐसी मानव त्रासदी शायद पहले कभी नही देखा गई हो। उपर से लक्ष्मी जी भी चली गईं, पूंजी हाफ, चारों तरफ से डांट ही डांट, आया दिन, गुजर गई रात, नोटबंदी, जीएसटी और अब फिर लॉकडाउन दिवाला निकालने के लिए आ धमका है। यूपी में अब फिर शनिवार, रविवार, सोमवार तक लॉकडाउन घोषित किया गया है। हर ओर त्राहिमाम त्राहिमाम मचा हुआ है। अब तो बता दीजिए आदरणीय प्रधानमंत्री जी क्या मन की बात के लिए जरा भी समय नही है, आपके पास। क्या यही अच्छे दिन है,यदि पश्चिमी बंगाल चुनाव से फुर्सत मिल गई हो तो प्रधानमंत्री जी सिसक सिसक कर मर रही जनता को भी बचा लीजिए। ऐसा नही कर सकते हैं तो वही पुराने दिन लौटा दीजिए, जरूर कोई न कोई देश को संभालने के लिए आ ही जाएगा आखिर यह प्यारा भारत देश, सवा सौ करोड देशवासियों का जो देश है, ना।

लेखकः. चौधरी शौकत अली चेची भारतीय किसान यूनियन  (बलराज)  के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष  हैं।