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छोका छोका क्या फिरे है क्या लगावे घाट? तुझसे पहले मैं फिरू हूं लिए तराजू बाट

 


जय जवान, जय किसान, हम सबका, भारत देश महान, तिरंगा देश की शान

 


 कृषि बिल कानून के विरोध में अन्नदाता का आंदोलन 100 दिन से ऊपर पहुंच गया और करीब 280 किसान शहीद भी हो गए

 


एकता सम्मान, हक से सबकी तरक्की पक्की, निजी स्वार्थ बिना, विचार बदनामी बर्बादी सबकी


 

चौधरी शौकत अली चेची

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कृषि बिल कानून के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर अन्नदाता का आंदोलन 100 दिन से ऊपर पहुंच गया है। इस आंदोलन के दौरान करीब 280 किसान शहीद भी हो गए। वहीं सरकार किसानों की सुध लेने के बजाय तरह.तरह के आरोप लगाकर देश की सीमाओं की बाढ़ से भी ज्यादा शक्ति दिखाकर अपमान कर रही है। विपक्षी पार्टियों पर किसानों को बरगलाने का आरोप लगाया जा रहा है। दिल्ली बॉर्डर से अलग किसानों ने नई लाइन पकड़ी है जो देश के अलग.अलग क्षेत्रों में किसान पंचायतों का जागरूकता अभियान चल रहा है, जिसमें विपक्षी पार्टियां भी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। सत्ता पक्ष अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए एक से बड़ा एक आरोप किसानों और विपक्षी पार्टियों पर लगा रही है। बाल की खाल निकालने में राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे को पटखनी देने के लिए भागम भाग है। गहराई से अगर समझा जाए तो कृषि बिल के विरोध की जागरूकता मजबूती से अब गांवों की आेंर से तेजी से बढ रही है।  यूपी में 22 किसान संगठनों ने 1 मार्च से गांव.गांव क्रमिक अनशन आंदोलन शुरू कर दिया है, जिसमें तीनों कृषि कानून रद्द, सभी फसलों पर एमएसपी पर गारंटी कानून की मांग और डीजल, पेट्रोल, रसोई गैस और बिजली बिल तथा गन्ने का रेट आदि की मांगों को जोड़ दिया है। खबरों की माने तो केंद्र सरकार लगभग 32 प्रति लीटर डीजल खरीद रही है और बेच रही है 90 प्रति लीटर से ऊपर जबकि कच्चे तेल का प्रति बैरल रेट लगभग 68 है। लॉकडाउन के समय कच्चा तेल प्रति बैरल लगभग 32 था। अब जब कि देश की आर्थिक स्थिति डूब रही है ऐसे में सरकार दोगुना नही बल्कि 3 गुना मुनाफा पेट्रोल के दामों में वसूल रही है। मोदी सरकार देशवासियों पर मंहगाई का ऐसा हंटर चला रही है क्या यही अच्छे दिन है? कांग्रेस शासन में कच्चे तेल का रेट लगभग 120 रुपए प्रति बैरल था, तब देश में लगभग 70 प्रति लीटर डीजल बेचा जाता था। असल सवाल यह भी है कच्चे तेल से ही डीजल, पेट्रोल, रसोई गैस और तारकोल निकलते हैं जो सभी देशवासियों के लिए आवश्यक वस्तु की जगह काम करता है, जिस के बगैर तरक्की जीवन कार्य संभव नहीं। ऐसे भी बताया जा रहा है कि खजाना भरने के लिए लगभग 32 प्रतिशत  वैट और लगभग 20 प्रतिशत टैक्स वसूला जा रहा है। इससे पता चलता है केंद्र सरकार ढोल बजा रही है कि देश तरक्की की तरफ जा रहा है। यह जुमला साबित होता दिखाई दे रहा है। एमएसपी पर गारंटी कानून बनने पर 1975 रुपए गेहूं का मूल्य 29 00 बनता है। 23 फसलों को एमएसपी में बताया जाता है। अगर इन सभी पर हिसाब लगाएं तो सरकार किसानों का लगभग 50 लाख करोड रुपए डकार गई। 2011 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह  को लेटर लिखा था और जिसमें एमएसपी पर गारंटी कानून बनाने की सिफारिश कर रहे थे। कृषि कानून में केंद्र सरकार 18 संशोधन करने को तैयार है, लेकिन कृषि बिल रद्द नहीं किया जा रहा है। एमएसपी पर गारंटी कानून बनाने को तैयार नहीं। इन सभी बिंदुओं पर नजर डाली जाए तो सरकार के लिए चारों तरफ से खतरे की घंटी बज रही है, क्योंकि हजारों कानून सरकार ने भ्रम व जाति धर्म में उलझा कर विरोधियों को बैकफुट पर फेंक दिया, लेकिन कृषि बिल विरोध में देश की जनता को एकता के धागे में पिरो कर पिछले बने बर्बादी के कानूनों को भी ताजा कर दिया। भारत देश का जो मुख्य नारा हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हम सभी भारतवासी भाई भाई, जय जवान जय, किसान अन्नदाता ने ताजा कर दिया। जिन के तीन बिंदु भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी ताकत बनकर उभर रहे हैं। भाजपा के तीन बिंदु झूठ, गुमराह, नफरत, गर्दिश की तरफ जा रहे हैं। ऊपर वाले की रहमत अन्नदाता के साथ दिखाई दे रही है। जिसमें लगभग 25 देशों ने तीन कृषि बिलों पर नाराजगी जाहिर की है। किसी ने खूब कहा है छोका छोका क्या फिरे है क्या लगावे घाट? तुझसे पहले मैं फिरू हूं लिए तराजू बाट। एकता सम्मान, हक से सबकी तरक्की पक्की, निजी स्वार्थ बिना, विचार बदनामी बर्बादी सबकी। जय जवान, जय किसान, हम सबका, भारत देश महान, तिरंगा देश की शान।

लेखकः. चौधरी शौकत अली चेची भारतीय किसान यूनियन ( बलराज)  के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष  हैं।