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भाजपा के लिए शिक्षक गुट के ओमप्रकाश शर्मा के करीब 48 के वर्चस्व को तोडने की चुनौती

 









 सहारनपुर-.मेरठ एम.एल.सी शिक्षक व स्नातक सीट पर इस बार भी चुनाव बेहद रोचका होगा


 



सहारनपुर-.मेरठ कमिश्नरी के 9 जिलों में एम.एल.सी शिक्षक व स्नातक सीट के लिए 01 दिसंबर-2020 को वोट डाले जाएंगे

 


मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/गौतमबुद्धनगर

सहारनपुर-.मेरठ एम.एल.सी शिक्षक व स्नातक सीट पर इस बार भी चुनाव बेहद रोचका होगा। एम.एल.सी चुनाव में महज 6 दिन ही शेष रह गए हैं इसलिए सभी दलों और संबंधित प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंकनी शुरू कर दी है। सहारनपुर-.मेरठ कमिश्नरी के 9 जिलों में यह एम.एल.सी शिक्षक व स्नातक सीट के लिए 01 दिसंबर-2020 को वोट डाले जाएंगे। मेरठ मंडल में मेरठ, बुलंदशहर, हापुड़, बागपत, गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर जिला जब कि सहारनपुर मंडल में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और शामली जिला है। इस बार चुनाव में भाजपा, सपा और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों के लिए शिक्षक सीट पर जहां 48 साल का वर्चस्व तोड़ने की चुनौती है, तो स्नातक सीट पर भी लड़ाई अहम है। बढ़े हुए मतदाता चुनाव की दिशा.दशा तय करने के साथ ही भाजपा की रणनीति की सफलता.असफलता का पैमाना भी बनेंगे। शिक्षक और स्नातक एमएलसी चुनाव में माध्यमिक शिक्षक संघों का वर्चस्व रहा है। शिक्षक सीट पर जहां ओमप्रकाश शर्मा लगातार तो स्नातक सीट पर भी शिक्षक संघ के प्रत्याशी ही जीतते रहे हैं। स्नातक सीट पर राजनीतिक दलों ने कई बार हाथ आजमाने की कोशिश की लेकिन, शिक्षकों की एकता और बूथ प्रबंधन के सामने टिक नहीं पाए। इससे निपटने के लिए भाजपा ने एक साल पहले से ही चुनावी तैयारी शुरू कर दी थी। विद्यार्थी परिषद, युवा मोर्चा और महिला मोर्चा ने घर.घर जाकर स्नातकों के वोट बनवाए। यही कारण रहा कि इस बार मेरठ.सहारनपुर सीट पर करीब एक लाख मतदाता बढ़ गए हैं। शिक्षक सीट पर भी स्थिति बदली है। पिछले चुनाव में भी निजी कॉलेजों के वोट बनवाए गए थे लेकिन वह इतने नहीं कि ओमप्रकाश शर्मा के वर्चस्व को चुनौती दे सकें। यही कारण रहा कि भाजपा के राज्यसभा सदस्य अनिल अग्रवाल, ओमप्रकाश शर्मा के मुकाबले कम अंतर से चुनाव हार गए थे। मेरठ शिक्षक सीट से 48 साल से शिक्षक नेता ओमप्रकाश शर्मा एमएलसी हैं। वहीं मेरठ स्नातक सीट पर हेम सिंह पुंडीर का 1996 से कब्जा है। कांग्रेस के ओमप्रकाश शर्मा पहली बार 1970 में एमएलसी चुने गए थे 1970 से 1976 तक एमएलसी रहे। 1976 से 1978 के बीच चुनाव नहीं हुआ था। 1978 से वह लगातार एमएलसी चुने गए। अब तक वह आठ बार एमएलसी चुने जा चुके हैं। वहीं मेरठ स्नातक सीट से सहारनपुर के हेमसिंह पुंडीर 1996 में पहली बार एमएलसी चुने गए। तब से लगातार स्नातक सीट से एम.एल.सी. हैं। शिक्षक मतदाताओं की संख्या करीब 32 हजार के आसपास है। वहीं स्नातक मतदाताओं की संख्या करीब 3 लाख से अधिक है। इस बार शिक्षक और स्नातक के दर्जनों प्रत्याशी चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। पहली बार यह चुनाव राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों द्वारा लडा जा रहा है। सपा और भाजपा जैसे राजनीतिक दल इस चुनाव मैदान में कूदे हैं। जब कि कांग्रेस का अपना कोई प्रत्याशी नही है और दूसरे प्रत्याशियों को समर्थन दे रही हैं। बसपा भी इस चुनाव से दूर है। इनमें भाजपा से शिक्षक प्रत्याशी श्रीचंद शर्मा और स्नातक प्रत्याशी दिनेश कुमार गोयल चुनाव मैदान में हैं। जब कि सपा से शिक्षक प्रत्याशी धमेंद्र कुमार और स्नातक से शमशाद अली चुनाव मैदान में हैं। गौतमबुद्धनगर की बात करें तो यहां से दो प्रत्याशी और जिनमें जितेंद्र कुमार गौड जिन्हें कांग्रेस का समर्थन मिल रहा है और वहीं अफरोज खान एडवोकेट भी चुनाव मैदान में हैं। दादरी क्षेत्र के कलौंदा गांव निवासी अफरोज खान एडवोकेट सूरजपुर कोर्ट में प्रेक्टिस करते हैं इस लिहाज से उन्हें ज्यादातर वकीलों का समर्थन मिल रहा है। इसके साथ ही कई छोटे दलों का भी समर्थन का दावा किया जा रहा है। गौतमबुद्धनगर के अलावा बुलंदशहर निवासी अर्चना शर्मा भी स्नातक से प्रत्याशी हैं। रबूपुरा की बेटी अर्चना शर्मा बुलंदशहर के औरंगाबाद में ब्याही है। इस लिहाज इन दोनों जिलों के लोगों के समर्थन का दावा किया जा रहा है। आंकडों की बात जाए तो जेवर और दादरी विधानसभा क्षेत्र में शिक्षक वोटरों की संख्या करीब 3 हजार हैं और नोएडा में 1 हजार के करीब हैं। कुल मिला कर गौतमबुद्धनगर में करीब 4 हजार वोटरांं पर शिक्षक प्रत्याशियों की नजर है। गौतमबुद्धनगर देश का एक बडा एजुकेशन हब माना जाता है। स्नातक के साथ शिक्षक सीट पर इस बार मुकाबला बेहद रोचक होने जा रहा है। सपा से शिक्षक प्रत्याशी धमेंद्र कुमार की भी मजबूत पकड ग्रेटर नोएडा के एजुकेशन हब में मानी जा रही है। भाजपा के शिक्षक प्रत्याशी श्रीचंद शर्मा पहली बार चुनाव मैदान में हैं। इससे पहले वे गौतमबुद्धनगर के जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं। शिक्षक गुट के ओमप्रकाश शर्मा के करीब 48 के वर्चस्व को तोडने की चुनौती है। इसके लिए पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भाजपाईयों ने एडी चोटी का जोर लगाना शुरू कर दिया है। इस बार चुनाव परिणाम बेहद चौकानें वाले भी साबित हो सकते हैं। देखते कि आखिर चुनावी उंट किस करवट बैठता है?