आचार्य करणसिह नोएडा
ये कब ,कैसे,और कहाँ किसे करने चाहिए?
नमो व पितरो रसाय नमो व पितरःशोषाय नमो वःपितरो जीवाय
नमो पितरः स्वधायै नमो वः पितरो घोराय नमो वः पितरो मन्यवे। नमो वः
पितरःपितरो नमो वो गृहान्नःपितरो दत्त
सती वःपितरोदेष्मैतद्वः पितरो वासः।।यजु•२/३२
अर्थ-हे(पितरः)राष्ट्र के पालक पुरूषो वृद्ध जनो!(रसाय)ब्रह्मानंद रस और ज्ञान के लिए(व नमः)आप लोगो को हम नमस्कार करते है,(शोषाय)आप हमे दुख से बचाते है उसके लिए(व नमः)आपको नमस्ते है,(जीवाय)आप
हमे जीवनी शक्ति प्रदान करते हो,(व नमःस्वधायै)अन्न आदि के लिए आपको नमस्ते है,(व नमःघोराय)आप
लोगहमेअत्यन्तदुखो,विघ्नों से बचाने के लिए (व नम:)(मन्यवे)दुष्टों को दण्ड देकर ठीक करने के लिए (व नमः) (पितरः)पालक वृद्ध जनो पालन करने के लिए(पितरः नमः)आप लोगो को नमस्कार हो।(पितरः)पालक जनो!(नः)हमारे (गृहान)मे रहो और हमे उचित शिक्षा आदि प्राप्त करो।(पितर)
हम लोगो को(सतः)अपने पास विद्यमान जो नाना अन्न,धन,घर,वस्त्र आदिपदार्थ(देष्म)उन्हें हमे प्रदान करो।(पितरः)पालक जनो!(वः)आप लोगो के लिए (एतत्)यही (वास:) शरीर आदि आच्छादन करने योग्य
उत्तम वस्त्र एवं निवास घर है,आप इसे
स्वीकार करे।
पितर-पा रक्षणेधातु से पिता, पितर शब्द बनता है।जिसका अर्थ है- रक्षन्ति पालयन्ति सः पितरः। रक्षा और पालन करने वाले को पिता वा
पितर कहते है।जीवित पितरो का सम्मान करना चाहिए।
कुर्यादहरहःश्राद्धमन्नद्ये
नोदकेन वा। पयोदमूलफलैवापि पितृभ्यःप्रीतिमावहन्।।मनु•२/८२
अर्थ- अन्न,जल ,फल, वस्त्र, औषधि आदि से श्रद्धा व प्रीति पूर्वक पितरों का सत्कार करे।
अर्चयेत्पितृन्श्राद्धै।।मनु•३/८१
पितरो का श्रद्धा पूर्वक सत्कार करें।
पितृयज्ञ के दो भेद है- १•श्राद्ध-
यतेभ्यःश्रद्धयाक्रियते अथवा यथेमाम् श्रद्धयासेवनं क्रियते तत् श्रद्धम्।।अर्थात् श्रद्धा भाव से माता-पिता आदि के लिए सेवा सुश्रुषा सहयोग करना श्रद्धा पूर्वक संग किया जाता है वह श्राद्ध कहलाता है और यह जीवितो का ही संभव है। मृतकों का नहीं।
येन कर्मणा विदुषो देवान् ऋषीन् पितृन्श्च तृपयन्ति सुखयन्ति तत् तर्पणम्।। अर्थात् जिससे अन्न जल,भोजन, दूध, वस्त्र ,औषध आदि के दान से माता-पिता,देवषुरूष, एवं ऋषियों को तृप्त प्रसन्न रखना तर्पण कहलाता है। यान्ति पालयन्ति रक्षन्तिविद्या शिक्षा आदि दानै ते पितर। जो अन्न, विद्या, शिक्षा आदि से रक्षण करते हैं। वे पितर हैं।
6•आज्यपा, 7•सुकालिन, 8•यमराजा
9• पितृ, पितामह,प्रपितामह 10• मातृ
पितामह, प्रपितामही, 11•सगौत्रा ,
12•आचार्य, समबन्धिन
मृर्त्या पितरः(शतपथ)पितर मरने वाले है।
स्विष्टकृत पितरः(गोपथ-1-25)
पितरस्वधा का गृहण करते है।
पिण्डदान- यह समझना अति आवश्यक है। पिंड दान क्या है? और क्या पिंड दान करना चाहिए? और कौन से करें? और किस प्रकार करें? और इस पर थोड़ा विचार करते हैं।
पिण्ड काअर्थ होता है शरीर-समस्त प्राणी मात्र शरीरधारी होते है। अभी यहां पिंड दान किसे करें उसके कुछ प्रमाण कोशिश करते हैं उन्हें भी जीवित के लिए ही हैं मृतक के लिए कोई पिंड दान नहीं है।
लांगचालनमधश्चरणावपातं, भूमौ निपत्यवदनोदर दर्शनाञञ्च।श्वा पिघदस्य कुरूते गजं पुन्गवस्तु,धीरं विलोक्यति चाटुशतैश्च भुङ्क्ते।। भूखा कुत्ता अपने आश्रय दाता के चरणों में लेट कर अपने उदर को दिखाता है। और हाथी बहुत खुशामद कराने परही खाता है।
गीताकाप्रमाण-
आचार्य पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहा:। मातुल: श्वसुरा पौत्रा:श्याला सम्बन्धिनस्तथा।।
एतान्नहनतुमिच्छामिघ्नतोऽपि मधुसूदन।अपि त्रैलोकराजस्य हेतो:
किन्नुमहीपते।।१/३४,३५
अर्थ- अर्जुन श्री कृष्ण से कहते हैं कि हे मधुसूदन! मैं अपने आचार्य, पिता पुत्र और पितामह, मामा, श्वसुर, पौत्र श्याला और सगे संबंधियों को मार कर पृथ्वी के राज्य को तो छोड दो ,इन्हे मार मै त्रैलोक के राज्य की भी इच्छा नहीं करता हूँ। मै इन्हें नही मारूगा।
क्रिया।।गीता- १/४२
जिस घर में युद्ध आदि में घर का नौजवान काम करने वाला मारा जाता है इस घर की पिण्डोदक क्रिया लुप्त हो जाती है। अर्थात् यह चिंता रहती हैकि इन बच्चों को कौन कमाकर खिलाएगा।
निरुक्त- अभ्रातृकाइव योषास्तिष्ठन्ति पिंडवानाय संतान कर्मणे हतवर्त्मानस्तिठन्ति।।
बिना पते की चिट्ठी जो डाले वो नादान है।
यह कैसे हमने जाना, मृतक पितरों का कहां बना टिकाना जो इसको माने वो जन नादान है।।
मृतकों की स्मृति भी की जा सकती है श्राद्ध नहीं आते हैं अपने महान पुरुषों समृति ही याद करनी चाहिए।