प0 महेंद्र कुमार आर्य अजी शिल्प से जीवित है संसार । बिना शिल्प के चल नहीं सकता कोई
कारोबार ।। टेक। सबसे बड़ा शिल्पी पाँचों तत्वों को
मिलाया जिसने। समुद्र और पहाड़ बन भूमि को बनाया जिसने ।। शशि और भानु भूमि ब्रह्माण्ड रचाया जिसने। रंग वो बिरंगे फूल गन्ध को बसाया जिसने।। माता के गर्भाशय में भी खुराक भी पहुँचाता
रहा। माता और पिता को पता नहीं पर बनाता
रहा ।। आंख नाक कानों में मसाला क्या लगाता रहा। |
रसना को लगा कर सारे रसों को चवाता
रहा।
वो ईश्वर सर्वाधार ||१||
दूसरे नम्बर पर
शिल्पी ब्राह्मण हैं महान् देखो।
दुनियाँ में फैलावें जो ये ज्ञान और विज्ञान
देखो।।
जल में थल में आकाश में चलते हैं विमान देखो।
शिल्प को विसार ब्राह्मण बन गये नादान देखो।।
माना कि किसान लोग दुनियाँ की भलाई करें।
औज़ार न हो तो कहो फिर कैसे कमाई करे।।
हल फाली कुल्हाड़ी कस्सी दाँती से कटाई करें।
बारातों में रथ व गाडी नाज की ढुलाई करे।।
ये सब जाने नर नारी ।।2।।
सोहागा और गिरडा जिनसे डलों की सफाई
करें।
भोजन का सामान बर्तन चक्की से पिसाई करें ।।
तागड़ी और बाट जिनसे लाला जी तुलाई करें।
कलम और दवात् लाल बाबू जी लिखाई
करें।।
उस्तरा मशीन जिनसे बालों की कटाई करें।
कैंची और मशीन सुई कपड़ों की सिलाई
करें।।
टैंक और बन्दूक तोप योद्धा जो लड़ाई करें।
शिल्प से ही देश की रक्षा ज्यादा क्या
बढ़ाई करें।।
सारंगी सितार तबला दुनियाँ को सुनाते
फिरें ।।
बच्चों के खिलौने जिनसे बच्चों को खिलाते फिरें।
आर और राँपी जिससे जूतों की सिलाई
होती।
चक्की का सामान जिससे आटे की पिसाई
होती।
करनी और बसूली से मकान की चिनाई होती।
आरी और करौंत जिनसे लकड़ी की कटाई
होती।
डॉक्टरी के औज़ार ।।४।।
कपड़े के औजार और कपड़े भी तैयार
करें।
शिल्पी ने बनाया जेवर नर नारी श्रृंगार करें।।
मेज कुर्सी पलंग बैठे सोवें और बहार
करें।
शिल्पी ही बना कर नौका समुद्र से पार करें।।
किले कोट खाई का भी शिल्पी ही इन्तजाम करें।
रास्ते सड़क नल देखों कैसा २ काम करें।।
बाग बगीचे कोठी बंगले तैयार ये तमाम करें।
मन्दिर भी बनाया जिसमें सन्ध्या सुबह शाम करें।।
मूर्ति करी तैयार ।।५।।
राम कृष्ण हनुमान घण्टे और घड़ियाल सारे।
शिवजी और गणेश गौरी काली और टाल
सारे।।
शंख चक्र गदा मुकुट थाली और थाल सारे।
शिल्पी की बदौलत मिलें पुजारी को माल सारे।।
सबसे बड़ा शिल्पी है यों करके देखों ख्याल सारे।
वृथा ही अभिमान करें मन्दिरों के दलाल
सारे।।
शिल्प का विचार करके बिगड़े हाल चाल सारे।
कुली और काफिर बने दीन और निढाल
सारे।।
सब खुस छुट गये रोजगार ।।६।।
चौखट और किवाड़ बक्स शिल्पी ने बनाये
सभी ।
बिजली गैस लालटेन शिल्पी ने लगाये सभी
।
ताले ताली आदि लाकर चोरों से बचाये सभी।
कला कौशल यंत्र कैसे सीखे और सिखाये
सभी ।।
पाँचों धातुओं के गुण अच्छी तरह जानते हैं।
काष्ठ पत्थर आदि की सब क्रिया को
पहचानते हैं।।
दुनियाँ की तरक्की करना सच्चे दिल से ठानते हैं।
शिल्पी अग्निष्वात पितर ऋषि मुनिसब
मानते हैं ।
सबसे प्रीति प्यार ।।७।।
गिरे हुए देश को भी फिर से ये उठावें शिल्पी ।
निर्धन वो कंगाल को भी धनवान बना शिल्पी।।
सब से श्रेष्ठ ब्राह्मण जग में इसी से कहावें
शिल्पी।
जानकर पदार्थ विद्या औरों को जनावें
शिल्पी।
अपने को बतावें बड़ा जाति के अभिमानी लोग।
शिल्पियों से नफरत करें मूर्ख और
अभिमानी
लोग।
ठगी का फैला के जाल करते हैं शैतानी लोग।
शिल्प का उपदेश सुनें शिल्पी की जवानी
लोग।
घर २ में प्रचार ।।८।।
पहले कर्दम ऋषि ने था यान एक तैयार
किया।
सात योजन रोशनी थी भानु एक तैयार
किया।
यान में लगाया था निशान एक तैयार
किया।
पक्षियों को देखकर विमान एक तैयार
किया।
उज्जैनी का राजा चण्ड मन में कुछ विचार करके।
कौशांबी का राजा है जो उदयन उसको मार
करके।
उसकी हद में छोड़ा हस्ती यन्त्र एक तैयार करके।
सात योद्धा अन्दर बैठे पकड़े थे प्रहार करके ।
थे ऐसे शिल्पकार ।।9।।
रावण के संग युद्ध की जब राम ने
तैयारी करी।
सेना कैसे पार होगी अब सिन्धु ने ख्वारी
करी।।
नल नील ने बाँधा पुल कैसी थी होशियारी करी।
सौ योजन तक खम्भा नहीं सेना पार सारी
करी।।
कौरव और पाण्डवों की हुई थी लड़ाई भाई।
कुरुक्षेत्र की खबरें हस्तिनापुर में कैसे आई
भाई।।
धृतराष्ट्र से संजय ने वहाँ जो बातें
बताई भाई।
सुनने का और देखने का तार था हवाई
भाई।।
गीता में करो विचार ॥१०॥
भीष्म पितामह के बीर अर्जुन ने जब बाण मारा।
हाहाकार मचा जब ये ब्रह्मचारी बलवान
मारा।।
ढाई सौ वर्ष का योद्धा दुनियाँ का
निशान मारा।
पानी खातिर अर्जुन ने भूमि मे तीर तान
मारा।
निकली पिचकारी जल की ये तो सभी जानते हैं।
भोज के था कर का घोड़ा ये भी सभी मानते हैं।।
काशी में है मान मन्दिर जो उसको पहचानते हैं।
जयपुर में है यन्त्र मन्त्र फिर क्यों
झगडा ठानते हैं।।
यहाँ यन्त्र थे वे शुमार ।।११।।
कला कौशल सम्पत्ति में भारत था मशहूर पहले।
धन में और बल में भारत विद्या में भरपूर पहले।
यहाँ से बन के चीजें जाती दूर २ पहले।
चक्रवर्ती देश था ये स्वतन्त्रता जरूर पहले।।
दक्षिण में अणहिल पुर शहर जैन पुस्तकालय यहाँ।
उसमें शिल्प संहिता है कोई भी आजमाले
यहाँ।।
एक अंशुबोधिनी है पढ़ कर लाभ ठाले
यहाँ
ऋषि दयानन्द जी के सब ग्रन्थ भी मंगाले यहाँ।।
मिलते प्रमाण हजार ।।१२।।
विद्या का भण्डार वेद हज़ारों थी शाख कभी।
शिल्प की थी चित्र पुस्तक मूल्य छ: लाख कभी ।।
परन्तु उसको फूंक करके करी गई थी खाक कभी।
जब से दौरा फूट का घर २ अन्दर आम हुआ।
शिल्प विद्या छुट और गैरों का इन्तजाम हुआ।
आर्यों का आज देखो काले काफिर नाम हुआ।
जो सबका गुरू था देश आज भी गुलाम हुआ।।
कर कर के तकरार ।।१३।।
जावा में राम का मन्दिर शिल्प का
प्रमाण भाई।
आलामा में शिव का मन्दिर शिल्प का निशान भाई।।
शिवकुमार राजा इनका कर गया निर्माण भाई।
शिल्प से अमरीका उठा जर्मन और जापान भाई।।
भारतीयों को लेकर बैठा जाति का अभिमान भाई।
ऋषियों का बगीचा प्यारा कर दिया शमशान
भाई।।
स्वर्ण का खजाना भारत कर दिया वीरान
भाई।
भारत को बना कर छोड़ा आज पाकिस्तान
भाई।
हुए अनर्थ बेशुमार ।।१४।।
शिल्पकारी पहले ब्राह्मण करते थे तमाम
यहाँ।
होते थे विमान कला यंत्र घर २ आम
यहाँ।
बसते थे स्वतन्त्र सभी शहर कम्बे गाँव
यहाँ।
आजकल की तरह पहले कौन था गुलाम यहाँ।।
देवी और देवता थे नर नारी के नाम यहाँ।
भूखा नंगा कोई नहीं सब को था आराम यहाँ।।
शिल्पी ब्राह्मण थे महाभारत हाथ में उठाय पढ़ो।
छिसासठवाँ अध्याय आदि पर्व को मंगाय पढ़ो ।
पन्द्रह से बीस तक श्लोक ध्यान लाय पढ़ो।।
विश्वकर्मा का मामा बृहस्पति था ठाय पढ़ो।।
मत्स्य पुराण दो सौ बावन का अध्याय पढ़ो।।
अठारह ऋषि शिल्पकार क्यों रहे धोखा
खाए पढ़ो।।
होगा सबका उद्धार ।।१५।।
ये कैसे ब्राह्मण जो रोटी ढाबे में
बनावें रोज।
और सेठों की सेवा करें बिस्तरा उठावें रोज।।
धोती धोवें बर्तन माँजें बच्चे भी खिलावें रोज।
मन्दिर के पुजारी और प्याऊ भी पिलावें रोज।।
हल गाडी मझोली ताँगा इक्का भी चलावें रोज।
लेकर के शनिश्चर कोई दर २ गिड़गिडावें रोज।।
हलकारे और चौकीदार डाक भी पहुँचावें
रोज।
बन कर के जनाने रास साँग भी दिखावें रोज।।
तिलक गया बिन्दी आई सैन भी मटकावें रोज।
मद्य माँस खावें और रण्डियों में
जावें रोज।।
हुक्का बीड़ी सिगरेट पीवें ब्राह्मण भी कहावें
रोज।
"भीष्म" से जलें मक्कार ।।१६।।
भजन नं० १६
सुनो सुनायें तुम्हें कहानी
विश्वकर्मा भगवान की।
सारी दुनिया को शिक्षा दी शिल्प ज्ञान विज्ञान
की ।।
प्रथम नाम विश्वकर्मा ईश्वर जिसने जगत् रचाया
है।
पाँच तत्व से रचना रच कर अद्भुत दृश्य दिखया
है।।
असंख्य पृथिवी सूर्य चन्द्र का यह ब्रह्मांड
बनाया है।
इन सबको धारण करके ही सर्वाधार कहाया
है।।
ईश्वर जीव प्रकृति अनादि सत्ता सदा
बखान की ।1911
और दूसरा विश्वकर्मा जो ब्रह्म ऋषि
कहलाता है।
भूगर्भ और भूगोल खगोल ये वही सभी का आता है।
किया प्रकृति को वश में जो यान विमान
रचाता है।
सकल विश्व के तारक मारक मंत्र का निर्माता है।
वेद की वाणी गूंज रही है शिल्प यज्ञ
उत्थान की 1२॥
महर्षि अगिरा की पुत्री जो योग सिद्धा कहलाई थी।
बृहस्पति की भगिनी वो प्रभास ऋषि संग
ब्याही थी।।
सत्यकाम एक पुत्र हुआ ख्याति चहुँ ओर समाई थी।
शिल्पकला के कारण ही विश्वकर्मा पदवी पाई थी।
हुए हज़ारों विश्वकर्मा क्यों अकल शक्ल हैरान
की।।३।।
सिद्धहस्त महर्षि की कन्या नाम से सुशिक्षाबाई
थी।
कुल श्रेष्ठ विश्वकर्मा जी के साथ में जो परनाई
थी।
विश्वकर्मा के पाँचों पुत्रों की जननी कहलाई थी।
मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और दैवज्ञ
कहानी गाई थी।
मनुस्मृति जैसे ग्रन्थों से कथा यह निर्माण की ||४||
आज विश्व की दौड़ हो रही एटम तोप
विमानों की ।
सूर्य चन्द्र लोक से बाजी है राकेट
महानों की ।।
देश व जाति को आवश्यकता कल पुर्जे कारखानों की ।
वीर दुश्मनों का मुँह तोड़ें आयुध के निर्माणों
की ।
मातृभूमि और देश प्रेम के उत्तम गौरव
गान की ।।५।
उन्नतिशील कार्य अपना जग में करके दिखलाना।
विज्ञान ज्ञान विद्या बल मानवता में आगे बढ़
जाना।
सहयोग संगठन से जाति की ध्वजा विश्व में फहराना।
धर्मनीति और राजनीति में भी पीछे मत
रह जाना।
’’रतिराम’’ क्या कदर करोगे भीष्म के व्यात्यान की ।६।॥
कृतिः- शिल्प- दर्शन
संकलनकर्ताः-प0 महेंद्र कुमार आर्य, पूर्व प्रधान- आर्य
समाज मंदिर सूरजपुर, ग्रेटर नोएडा,
जिलाः- गौतमबुद्धनगर हैं।