'परमेश्वर किस गुण कर्म स्वभाव वाला है?'
आचार्य करणसिह नोएडा
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देवता-द्रविणोदा: ऋषि--वशिष्ठ:
त्वमग्ने गृहपतिस्त्वं होता नो अध्वरे।त्वं
त्वं पोता विश्ववार प्रचेता यक्षि यासि च
वार्यम्।।साम•अ•१/६१
पदार्थ--हे(अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशमान सबकेअग्रनेता परमात्मन्!
(त्वम्)जगदीश्वर आप(गृहपति) ब्रह्मांड उपग्रह के स्वामी और पालक हो।(त्वम्)आप(नः)हमारे(अध्वरे)हिंसाआदिदोषरहित जीवन यज्ञ मे(होता)सुख आदि के दाता हो ।हे (विश्ववार)सबसे वरणीय!वरण करने योग्य (प्रचेता:) प्रकृष्ट चित्त वाले(त्वम्)आप(पोता) सांसारिक पदार्थों के अथवा भक्तों के चित्तो शोधक हो।आप(वार्यम्)वरणीय
सब वस्तुयें (यक्षि)प्रदान करते हो,(यासि च)और उनमे व्याप्त होते हो।।
भावार्थ- जैसे यज्ञाग्नि यजमान के घर का रक्षक होता है, वैसे परमेश्वर ब्रह्मांड रूप घर का रक्षक है, जैसे यज्ञाग्नि अग्निहोत्र में उत्तम स्वास्थ्य का प्रदाता होता है, वैसे परमेश्वर जीवन यज्ञ में सुख संपत्ति आदि का प्रदाता होता है, जैसे यज्ञाग्नि वायु मंडल का शोधक होता है, वैसे परमेश्वर सूर्य आदि के द्वारा सांसारिक पदार्थों का और दिव्य गुणों के प्रदान द्वारा भक्तों के चित्तो का शोधक होता है।।
बोध- मंत्र में यही बताया गया है कि यज्ञ के द्वारा यजमान अपने धन आदि को बढ़ाएं उत्तम स्वास्थ्य आदि को बढ़ाएं और वायुमंडल आदि को शुद्ध करता हुआ दिव्य गुणों को धारण करके उत्तम चित्त वाला होवे।