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कैसे मिला है यह तन तुम को कभी ना किया विचार।

 


 

                       

          भजन-९२

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कैसे मिला है यह तन तुम को कभी ना किया विचार।

 प्रभु भक्ति बिन जीवन है बेकार

 अन गिन शुभ कर्मों से मानव देह मिली।

 जड़ क्यों काट रहा जीवन की कली खिली

अमूल्य जीवन देह र्निघ की समझले अब भी सार प्रभु

 कितने आये यहाँ यात्री चले गये।

काल रूपी चक्की के अन्दर दले गये

 इच्छा तज कर फल पाने की परिश्रम कर हर बार प्रभु

 सोचना था जो सोच लिया अब चल निकल

 नीचे गहरी खाई है मत तू फिसल॥

प्रभु का उर विश्वास अटल ले मत हिम्मत को हार प्रभु

 लज्जा जय शंका जिसमें वह कर्म तुम्हें

कभी नहीं करने चाहिये कहें धर्म तुम्हें

शोभाराम कहे महेन्द्र आर्य कर जीवन उद्धार प्रभु॥

 

 


 

                  ईश्वर-प्रार्थना-९३ 

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भगवान मेरी नैया, उस पार लगा देना।

 अब तक तो निभाया है, आगे भी निभा देना।।

 दल-बल के साथ माया, घेरे जो मुझे आकर

 तो देखते रहना, झट आके बचा लेना ॥१॥

 सम्भव है झंझटों में, मैं तुम को भूल जाऊं

पुराना! कहीं तुम भी मुझ को भुला देना

 



 

                    ईश्वर-भेद-९४

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मैं जीव हूँ तुम जगदीश्वर हो, इतना तो भेद जरूरी है।

 अल्पज्ञ हूँ मैं, सर्वज्ञ पिता, इतना तो भेद जरूरी है।।

 मैं एक देश का वासी हूँ, तुम व्यापक घट-घट वासी हो।

मैं पुरुष हूँ, तुम परमेश्वर हो, इतना तो भेद जरूरी हैं

 मैं बिंदु हूँ, तुम सिन्धु हो, मैं रज-कण हूँ तुम पर्वत हो।

मैं गागर हूँ, तुम सागर हो, इतना तो भेद जरूरी है

 मैं दीन गरीब पपैया हूँ, तुम प्यास बुझैया बादल हो।

मैं हूँ चकोर, तुम चन्दा हो, इतना तो भेद जरूरी है

 मैं बालक हूँ, तुम पालक हो, मैं सेवक हूँ, तुम स्वामी हो।

मैं उदर-भर, तुम विश्वम्भर, इतना तो भेद जरूरी है ४॥

 में सुमन समान सुकोमल हूँ, तुम सुखद सुगन्धि समान सदा।

मैं तन हूँ, तुम प्रिय प्राण सखा, इतना तो भेद जरूरी है ॥५

 



 

                शास्त्रीय संगीत-९५ 

 

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पल-पल बीती जाय उमरिया पल-पल॥

प्रात: खिले जो फूल डाल पर शाम समय मुर्झाय ॥

 ढलती, ढलती ढल जायेगी जूं तरवर की छाँय

 दो दिन की मद मस्त जवानी फेर बुढ़ापा आय ।।

 तू 'बेमोल' अनारी अब तक कौन तुझे समझाए ४॥ 

 



                  शास्त्रीय संगीत-९६

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जपले प्रभु का नाम रे प्राणी

 काल चक्र का भेद ना पाये ना जाने किस क्षण हो जाये।

इस जीवन की शाम रे प्राणी ॥१॥

 जिसने आकर रौब जमाया काल बली ने उसको खाया।

राम रहा ना श्याम रे प्राणी ॥२॥

निशदिन करता है मनमानी करने से पहले अभिमानी।

 सोच जरा अन्जाम रे प्राणी

भूला क्यों 'बेमोल' अनारी हर प्राणी को है सुखकारी।

 एक प्रभु का धाम रे प्राणी ॥४॥

 


कृतिः- भजन संगीत सागर

संकलनकर्ताः-प0 महेंद्र कुमार आर्य, पूर्व प्रधान- आर्य समाज मंदिर सूरजपुर, ग्रेटर नोएडा, जिलाः- गौतमबुद्धनगर