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सब कुछ ऐसा ही चलता रहा तो फिर कृषि उत्पादन क्या शून्य नही हो जाएगा? और आत्मनिर्भर भारत के नारे की बात बेमानी भी साबित होगी





मजदूर नहीं होने की वजह से उद्योग धंधे बंद हैं, कंपनियां बंद हैं, छोटे-.छोटे रोजगार के साधन बंद है

चौधरी शौकत अली चेची

देश की आर्थिक स्थिति नाजुक मोड़ से होकर गुजर रही है। जीडीपी नीचे जा चुकी है बेरोजगारी, महंगाई, आसमान पर है। यदि आंकड़ों पर नजर डाली तो 12 करोड़ लोगों को रोजगार से वंचित होना पड़ा, लेकिन हम हर पहलुओं पर देखे तो बेरोजगारी का आंकड़ा लगभग 20 करोड पार करता दिखाई दे रहा है, जहां रोजगार के साधन थे लोग वहां से पलायन गए हैं। जहां रोजगार नहीं हैं वहां लोग पहुंच गए। असल सवाल यह है मजदूरी करने वाले या देश की आर्थिक स्थिति को संभालने वाले लोग वापस किस तरह लाए जाएं। सरकारें कह रही हैं कि हम उनके लिए स्थानीय रोजगार मुहैया करा रहे हैं,लेकिन यह समस्या का समाधान नहीं है,क्योंकि रोजगार पैदा करने में समय लगता है। इसके लिए बहुत सारी व्यवस्थाएं भी जुटाने पड़ती हैं, मजदूर नहीं होने की वजह से उद्योग धंधे बंद हैं, कंपनियां बंद हैं, छोटे-.छोटे रोजगार के साधन बंद हैं। खबर यह भी रही है साईकिल बनाने वाली एक नामी कंपनी बंद हो जान से बडी तादाद में लोग बेरोजगार हो गए हैं। समस्याएं जटिल हो रही हैं। लॉकडाउन में छूट सराहनीय कदम है, लेकिन सावधानियां भी जरूरी हैं, रोजी रोटी इंसान की जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए इंसान के दुख दर्द को कम करने के लिए आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए रोजगार के संसाधनों को सुचारू रूप से चलाने की आवश्यकता है। लॉकडाउन में देश के मजदूर, कर्म भूमि को छोड़कर जन्म भूमि की तरफ चले गए। समझना यह भी होगा मजदूरों को वापस लाने के लिए सुविधा तथा ठोस आश्वासन सरकारों को देना होगा क्योंकि कई कारणों से मजदूर एक राज्य से दूसरे राज्य में आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। सरकारों ने छूट दी है लेकिन कुछ असुविधा के अनुसार नाराज है या डर महसूस कर रहे हैं। जरूरत के हिसाब से कुछ वस्तुओं की जरूरी सप्लाई नहीं होने से कुछ वस्तुओं के दाम डबल हो गए हैं, सरकारों को इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। खेती क्यारी की बात करें तो कई राज्यों में धान की रोपाई की तैयारी हो चुकी है। मक्का, मूंग, उड़द, अरहर आदि फसलों की निराई गुड़ाई होनी है इनके लिए ज्यादातर मजदूर दूरदराज दूसरे प्रदेशों से आते हैं। यदि सब कुछ ऐसा ही चलता रहा तो फिर कृषि उत्पादन क्या शून्य नही हो जाएगा और आत्मनिर्भर नारे की बात बेमानी साबित नही हो जाएगी? ओलावृष्टि, बेमौसम बरसात और फिर टिड्डी दल से किसानों का भारी नुकसान। आखिर बेचारा किसान तो मारा गया ? लॉक डाउन की ही वजह से वैसे ही दूध, मछली, गेहूं, फल और सब्जी आदि उत्पादन में किसान के लाभ पर बुरा प्रभाव पड़ा। किसान और मजदूर एक दूसरे के घनिष्ठ सहयोगी हैं। देश की आर्थिक स्थिति को अपने कंधों पर रखकर चला रहे हैं। ऐसे प्रत्येक भारतवासी और सरकारों का फर्ज बनता है कि अन्नदाता किसान मजदूर के सहयोगी बनकर ऊर्जावान पहल करने में मुख्य भूमिका निभाएं। उद्योग धंधे, कंपनी, पैसेंजर, वाहन, आवश्यक वस्तुएं, किसानों के काम, रियल स्टेट यानी सभी काम धंधे मजदूर के सहयोग से ही चलते हैं। मजदूरों को अपने काम धंधे पर वापस लाने की जिम्मेदारी हम सब की है। यदि यह सब अलग अलग क्षेत्रों के लोग अपने अपने काम धंधों पर सकुशल लौट जाएंगे तो थमी हुई व्यवस्था पुनः संचालित हो सकेगी। इससे देश की आर्थिक स्थिति, देश की तरक्की और सारी व्यवस्था दोबारा से पटरी पर लौट आएंगी।
लेखकः- चौधरी शौकत अली चेची भारतीय किसान यूनियन ’’बलराज’’ के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष हैं।