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कोरोना महामारी के चलते हुए सावधानी बरतें और कानूनों का पालन कर ईद मनाएं




ईद उल फितर के मौके पर अल्लाह बेशुमार रहमत और बरकत बरसाता है, गुनाहों को माफ करता है


चौधरी शौकत अली चेची
ईद उल फितर मुसलमानों का एक बडा त्यौहार माना जाता है। हालांकि लाखों त्यौहार विश्व में अलग अलग ढंग से मनाए जाते हैं मगर इस ईदल उल फितर त्यौहारों को त्याग, अमन, .चैन, तरक्की और भाईचारे का प्रतीक माना जाता है। हिजरी कलेंडर के हिसाब से मोहर्रम का महीना 1 तारीख से नई साल मानी जाती है। चांद की तारीख के हिसाब से 1 साल के 356 दिन होते हैं। 10 वां महीना शव्वाल होता है इस महीने की 1 तारीख को ईद उल फितर का त्यौहार मनाया जाता है। शव्वाल से पहले रमजान का महीना होता है। रमजान के महीने में लोग पूरे 30 दिन रोजा रखते हैं। कई बार 29 रोजे के बाद ही चांद दिखने पर शव्वाल की पहली तारीख को ईदल फितर का त्यौहार जाता है। जब कि अमूमन 30 रोजे के बाद चांद दिखने के बाद ईदुल फितर मनाया जाता है। इस्लाम धर्म के पांच अरकान  यानी स्तंभ माने गए हैं। इनमें कलमा, नमाज, रोजा, जकात,  और हज होते हैं। कलमा का अर्थ है- नहीं है कोई माबूद अल्लाह के सिवाय अर्थात अल्लाह के अलावा दूसरा कोई भी इबादत के लायक नही है। दूसरा नमाज है, नमाज एक दिन में पांच वक्त अदा की जाती है। हर मुस्लिम पर पांचों वक्त की नमाज पढ़ना फर्ज है। तीसरा रोजा है। रमजान के महीने में हर मुस्लिम पर रोजे रखना फर्ज है। रोजों के साथ फितरा देना भी फर्ज है। फितरा का अर्थ है कि ऐसे लोग जो गरीब और मोहताज है उन्हें ईद की खुशी मिल सके इसलिए गरीबों के लिए परिवार के प्रति सदस्य पोने दो किलो अनाज या उसकी धनराशि दान देना अल्लाह का हुकुम माना गया है, ताकि कमजोर और मौहताज लोग भी ईद मना सकें। फितरा नहीं देने वाले को ईद मनाने का हक नही हैं। चौथा जकात है जिसका अर्थ है खैरात या दान। साल भर के लाभ का एक निश्चित हिस्सा गरीबों को दान दिया जाता है, जो कभी भी दिया जा सकता है। पांचवा अरकान है हज। हज बैतुल्लाह की जियारत करना। सऊदी अरब के मक्का शहर में काबा शरीफ है। यहां साल में एक बार ईदुल अजहा के मौके पर लोग हज के लिए आते हैं और अल्लाह को याद कर गुनाहों से तौबा कर  अमन, चैन, तरक्की और भाईचारे की दुआ की जाती है। हज पर जाने के लिए कई अनिवार्यताएं भी हैं। इनमें हज पर जाने से पहले सभी जिम्मेदारियों से फारिग होना जरूरी है साथ ही बगैर कर्ज के हज करना जायज माना गया है। पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब का जन्म 570 ईसवी में हुआ था। उन्होंने इस्लाम धर्म की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार किया और दुनिया में जागरूकता फैलाई। ईद उल फितर त्यौहार के मौके पर अल्लाह पाक रहमत और बरकत बेशुमार बरसाता है, गुनाहों को माफ करता है। इस्लाम धर्म के मानने वालों में अपार खुशी होती है, रोजे रखकर पूरी दुनिया के लिए रोजेदार दुआ मांगते हैं। ईदगाह मस्जिदों में एकत्रित होकर नमाज पढ़ते हैं। द्वेष भावनाओं को भूलकर एक दूसरे को गले लगा कर मिष्ठान खिलाते और खाते हैं। जरुरतमंद को दान देते एक दूसरे की संभव मदद करते हैं। विश्व में इस समय कोरोना वायरस भयंकर बीमारी है या कुदरती आफत है जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। ईद उल फितर त्यौहार की खुशियां फीकी पड़ रही हैं। परिस्थिति को देखते हुए इस्लाम धर्म के मानने वाले सभी रहनुमाओं से गुजारिश है कि सर्तक रहें, सावधानी बरतें, आदेशों कानूनों का पालन कर ईद मनाएं।
लेखकः- चौधरी शौकत अली चेची भारतीय किसान यूनियन ’’बलराज’’ के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष हैं।