आचार्य करणसिह नोएडा
'वेदवाणी'
"वाणी
और विदुषी विषय"
ऋषि-कण्व, वत्स
देवता-इन्द्र, सरस्वती
पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती।
यज्ञं वष्टु धियावसु:।।साम• १८९।।
पदार्थ-हे इन्द्र परमेश्वर! आपको
(वाजिनीवती)क्रियामयी अथवा कर्म का उपदेश देने वाली (सरस्वती) ज्ञानमयी वेदवाणी
(वाजेभि:)विज्ञान रूप बलो से (नः) हमे
(पावका)पवित्र करने वाली
हो।(धियावसु:)ज्ञान और कर्म के उपदेश से बसाने वाली वह (यज्ञं)हमारे जीवन यज्ञ को
(वष्टु ) भलीभांति चलाये, संस्कृत करें।।५।।
भावार्थ- जैसे परमेश्वर की वेद वाणी श्रोताओं
का हित-साधन करती है, और जैसे गुरु की वाणी शिष्यों का हित- साधन
करती है।वैसे ही विदुषी माता माताएं संतानों का हित सिद्ध करें।
विशेष-
इस मन्त्र मे विषय आया है कि वाणी में माधुर्य होना चाहिए अर्थात् हमें
मधुर बोलना चाहिए। हम अपने गुरु ,आचार्यों की सत्य वेदवाणी को प्राप्त
करते रहें, और हमारी माताएं विदुषी होवे।